देश में पहली बार जाति जनगणना को मिली मंजूरी, 2026 तक सामने आएंगे आंकड़े
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केंद्र सरकार ने पहली बार जाति जनगणना को मंजूरी दी, जो 2025 में शुरू होकर 2026 तक पूरी की जाएगी।
इस जनगणना से ओबीसी सहित सभी जातियों की वास्तविक संख्या सामने आएगी, जिससे नीतियों और आरक्षण व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ेगी।
2011 में हुई SECC के बाद पहली बार जातिगत आंकड़े सार्वजनिक करने की तैयारी है, जिससे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
देश में आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी। केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को जाति जनगणना को मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। देश में इसी साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं।
कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जाति जनगणना की मांग लंबे समय से करते रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में हो सकती है। हालांकि, इस पूरी प्रक्रिया में एक साल का समय लग सकता है और अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में सामने आ सकते हैं। देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी, जिसे हर 10 साल में किया जाता है। कोविड-19 महामारी के चलते 2021 की जनगणना स्थगित कर दी गई थी।
2011 तक जनगणना फॉर्म में 29 कॉलम होते थे, जिनमें नाम, पता, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और माइग्रेशन जैसे सवाल होते थे। अब जातिगत आंकड़ों को शामिल करने के लिए अतिरिक्त कॉलम जोड़े जाएंगे। जनगणना एक्ट 1948 में केवल SC-ST की गणना का प्रावधान है, जबकि OBC की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे OBC की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आ सकेंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 1,270 SC और 748 ST जातियां हैं। SC की आबादी 16.6% और ST की आबादी 8.6% थी।
2011 में मनमोहन सिंह सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) करवाई थी, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं किए गए। केवल SC-ST हाउसहोल्ड के आंकड़े ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी किए गए थे।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अगस्त 2024 में कहा था कि जनगणना "उचित समय" पर होगी और यह 2025 में शुरू हो सकती है, जिसमें डेटा 2026 तक प्रकाशित किया जा सकता है।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 2023 में सबसे पहले जाति जनगणना की मांग उठाई थी। इसके बाद वे देश-विदेश की कई सभाओं और मंचों पर यह मुद्दा उठाते रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि 1947 के बाद से जाति जनगणना नहीं कराई गई। कांग्रेस सरकारों ने हमेशा इसका विरोध किया। 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि इस विषय पर कैबिनेट में विचार होना चाहिए, जिसके लिए मंत्रियों का एक समूह गठित किया गया था। कई राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की सिफारिश की, लेकिन कांग्रेस सरकार ने इसे लागू नहीं किया।
80 के दशक में जातियों पर आधारित कई क्षेत्रीय पार्टियां उभरीं, जिन्होंने सरकारी संस्थानों और नौकरियों में आरक्षण को लेकर आंदोलन चलाया। UP में बसपा नेता कांशीराम ने जातियों की संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग की शुरुआत की।
भारत सरकार ने 1979 में मंडल आयोग का गठन किया, जिसने OBC के लिए आरक्षण की सिफारिश की। इसे 1990 में प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लागू किया, जिसके बाद सामान्य वर्ग के छात्रों ने देशभर में उग्र विरोध प्रदर्शन किए।
2010 में लालू यादव और मुलायम सिंह यादव ने जातिगत जनगणना के लिए कांग्रेस सरकार पर दबाव बनाया। कांग्रेस के OBC नेता भी इसके पक्ष में थे। इसके बाद 2011 में SECC कराई गई, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े अब तक सामने नहीं आए।
केंद्र के जाति जनगणना कराने के फैसले के बाद बिहार में राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। सीएम नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद दिया है, वहीं लालू यादव ने तंज कसते हुए कहा कि जातिगत जनगणना की असली पहल 1996-97 में जनता दल की सरकार के दौरान की गई थी, जब वे राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और देश में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी।