डॉ. जितेंद्र सिंह का संबोधन: भारत की वैज्ञानिक प्रगति का नया युग

Fri 20-Jun-2025,10:58 AM IST +05:30

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डॉ. जितेंद्र सिंह का संबोधन: भारत की वैज्ञानिक प्रगति का नया युग भारत की वैज्ञानिक प्रगति का स्वर्णिम युग: तकनीक, अंतरिक्ष और जैव प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता राष्ट्र
  • चंद्रयान-3 और एक्सिओम-4 मिशन में भारत की ऐतिहासिक भागीदारी।

  • बायो-ई3 नीति से जैव प्रौद्योगिकी में नई क्रांति।​

  • तकनीक आधारित नागरिक सेवाओं में वैश्विक मॉडल के रूप में भारत।​

Delhi / New Delhi :

New Delhi / नई दिल्ली में आयोजित इकोनॉमिक टाइम्स एजुकेशन समिट 2025 में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने भाग लिया और एक प्रेरणादायक सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्रांति पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बीते 11 वर्षों में भारत में तकनीक का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है, जिसने विज्ञान को आम जनजीवन का अभिन्न हिस्सा बना दिया है।

डॉ. सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का उल्लेख करते हुए बताया कि भारत अब ड्रोन और मिसाइल हमलों का सामना आत्मनिर्भर रूप से कर सकता है। उन्होंने कहा कि देश में प्रतिभा की कभी कमी नहीं रही, परंतु प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व ने उस प्रतिभा को पनपने का अवसर दिया है।

प्रधानमंत्री के ऐतिहासिक निर्णयों जैसे अंतरिक्ष और परमाणु क्षेत्रों को निजी भागीदारी के लिए खोलने के प्रभाव को रेखांकित करते हुए डॉ. सिंह ने बताया कि इन कदमों से कृषि, शिक्षा, रक्षा, भूमि प्रबंधन, आपदा तैयारी और ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं।

उन्होंने भारत को विज्ञान और नवाचार द्वारा प्रेरित युवा आकांक्षाओं के केंद्र के रूप में उभरता हुआ बताया। विदेशों में बसे भारतवंशियों की वैज्ञानिक पहचान को सम्मान मिलने का भी उन्होंने विशेष उल्लेख किया।

डॉ. सिंह ने कहा कि अंतरिक्ष, समुद्री और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र भारत की आर्थिक उन्नति के नए स्तंभ बनेंगे। उन्होंने हाल ही में शुरू की गई बायो-ई3 नीति की जानकारी दी, जो अर्थव्यवस्था, रोजगार और पर्यावरण के त्रिस्तरीय दृष्टिकोण को अपनाकर भारत में जैव-क्रांति का मार्ग प्रशस्त करेगी।

भारत के कोविड-19 टीकाकरण अभियान को लेकर उन्होंने बताया कि भारत दुनिया का पहला देश बना जिसने डीएनए-आधारित वैक्सीन विकसित की और विश्व का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक चलाया।

भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए डॉ. सिंह ने चंद्रयान-3 की ऐतिहासिक उपलब्धि पर प्रकाश डाला, जिसके तहत भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बना। साथ ही उन्होंने एक्सिओम-4 मिशन में भारतीय पायलट शुभांशु शुक्ला की भागीदारी और भारत की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में सहभागिता की जानकारी दी।

इस मिशन में इसरो और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा संयुक्त रूप से विकसित माइक्रोग्रैविटी-अनुकूल बायोटेक किटों का प्रयोग होगा, जो अंतरिक्ष पोषण और आत्मनिर्भर जीवन रक्षक प्रणालियों पर केंद्रित होंगी। ये किटें मानव अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए नींव रखती हैं।

डॉ. सिंह ने बताया कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था वर्तमान में 8 अरब डॉलर मूल्य की है, जो निकट भविष्य में 44 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है। वर्ष 2014 में गिने-चुने अंतरिक्ष स्टार्टअप थे, जबकि अब इनकी संख्या 300 से अधिक हो चुकी है, जिनमें वैश्विक अवसर विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष चिकित्सा भारत का अगला बड़ा योगदान क्षेत्र होगा।

तकनीकी नवाचारों की नागरिक सेवाओं में भूमिका को रेखांकित करते हुए उन्होंने फेस रिकॉग्निशन टेक्नोलॉजी जैसे उदाहरण दिए, जिससे पेंशनभोगियों को पहचान सत्यापन में सहूलियत मिली है। साथ ही उन्होंने बताया कि सीपीजीआरएएमएस अब एक वैश्विक मॉडल बन चुका है, जहां शिकायत निपटारे की संख्या 2 लाख से बढ़कर 26 लाख प्रतिवर्ष हो चुकी है।

हालांकि, डॉ. सिंह ने केवल एआई पर निर्भरता को लेकर सावधानी बरतने की बात कही और एक हाइब्रिड मॉडल अपनाने का सुझाव दिया, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को मानवीय संवेदना और विवेक के साथ संतुलित किया जाए।

अपने निष्कर्ष में उन्होंने कहा कि आज भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान सिर्फ अकादमिक अभ्यास नहीं रह गया है, बल्कि यह अब एक रणनीतिक, सुरक्षित और संप्रभु राष्ट्र निर्माण का प्रमुख आधार बन चुका है। भारत एक वैज्ञानिक-संप्रभु राष्ट्र की दिशा में तेजी से अग्रसर है।