भारत में पहली जीनोम-संपादित चावल की किस्मों का ऐतिहासिक विमोचन: कृषि क्षेत्र में नई क्रांति की शुरुआत
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भारत में पहली बार जीनोम एडिटेड धान की किस्में विकसित।
19% अधिक उत्पादन, 7500 मिलियन घन मीटर जल की बचत।
केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने 21 जून 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारत रत्न सी. सुब्रह्मण्यम ऑडिटोरियम, नई दिल्ली में एक ऐतिहासिक पहल की घोषणा की। इस अवसर पर उन्होंने देश में विकसित विश्व की पहली दो जीनोम-संपादित चावल की किस्मों—डीआरआर धान 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1—का विमोचन किया। इस कार्यक्रम में वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और किसानों की भारी भागीदारी देखी गई।
श्री चौहान ने इस मौके पर वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए कहा कि यह दिन भारतीय कृषि के लिए स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उन्होंने कहा कि ये किस्में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। चावल उत्पादन में नवाचार के साथ-साथ सिंचाई जल की बचत और ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी एक बड़ी उपलब्धि है।
जीनोम-संपादित किस्मों के फायदे:
इन दोनों किस्मों को सीआरआईएसपीआर-कैस आधारित जीनोम एडिटिंग तकनीक से तैयार किया गया है, जिसमें पौधों के जीन में बिना किसी बाहरी डीएनए के परिवर्तन किए जाते हैं। भारत सरकार के जैव सुरक्षा नियमों के तहत इन्हें मंजूरी मिल चुकी है। डीआरआर धान 100 को आईसीएआर-आईआईआरआर, हैदराबाद द्वारा सांबा महसूरी के आधार पर विकसित किया गया है और यह 9 टन/हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम है। वहीं, पूसा डीएसटी राइस 1 को आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है और यह खारे व क्षारीय मिट्टी में 30% तक उपज वृद्धि करने की क्षमता रखती है।
इन किस्मों के प्रमुख लाभ हैं:
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उपज में 19% तक वृद्धि
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सिंचाई जल की 7,500 मिलियन घन मीटर तक बचत
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ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 20% तक की कमी
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सूखा और जलवायु परिवर्तन के प्रति बेहतर सहनशीलता
श्री चौहान ने अपने संबोधन में ‘जय जवान, जय किसान’ के नारे के साथ ‘जय विज्ञान’ और ‘जय अनुसंधान’ को जोड़ते हुए कहा कि यह कृषि क्षेत्र के सतत विकास की दिशा में भारत का मजबूत कदम है। उन्होंने कहा कि अब हमें माइनस 5 प्लस 10 फॉर्मूला अपनाना होगा—यानि 5 मिलियन हेक्टेयर चावल की खेती में कमी लाकर 10 मिलियन टन अतिरिक्त उत्पादन सुनिश्चित करना, जिससे दलहन व तिलहन की खेती के लिए अधिक ज़मीन उपलब्ध हो सके।
उन्होंने वैज्ञानिकों के बेहतरीन कार्य की सराहना करते हुए भारत को फूड बास्केट ऑफ द वर्ल्ड बनाने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि भारत आज 48,000 करोड़ रुपये का बासमती चावल निर्यात कर रहा है, और यह कृषि क्षेत्र की प्रगति का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
पृष्ठभूमि और भावी योजनाएं:
ICAR ने 2018 में जीनोम एडिटिंग अनुसंधान की शुरुआत की थी और अब इन उन्नत किस्मों का निर्माण करके एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। ये किस्में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उपयोग के लिए विकसित की गई हैं।
भारत सरकार ने वर्ष 2023-24 के बजट में ₹500 करोड़ जीनोम एडिटिंग अनुसंधान के लिए आवंटित किए हैं। इन प्रयासों से स्पष्ट है कि भारत अब पारंपरिक कृषि से आगे बढ़कर नवाचार और सतत विकास के मार्ग पर अग्रसर है।
निष्कर्षतः, यह पहल न केवल कृषि उत्पादन बढ़ाने में सहायक होगी, बल्कि खाद्य सुरक्षा, जल संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता की दिशा में भी मील का पत्थर साबित होगी। वैज्ञानिकों, किसानों और नीति-निर्माताओं के संयुक्त प्रयास से भारत एक नई कृषि क्रांति की ओर अग्रसर हो चुका है।