Buddh Bhagwan | Ek Rajkumar Se Bhagwan Banane Ki Kahani | Dr. Katheriya | Dr. K C Pandey | PART-1
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
सिद्धार्थ से बुद्ध बनने की प्रेरक कथा।
ज्ञान की प्राप्ति और बोधगया का महत्व।
करुणा, सत्य और अहिंसा का संदेश।
गौतम बुद्ध, जिनका मूल नाम सिद्धार्थ था, एक शक्तिशाली क्षत्रिय राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। उनका जन्म लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल) में हुआ था। बचपन से ही सिद्धार्थ को विलासिता और सुख-सुविधाओं में रखा गया था ताकि वे जीवन के दुखों से दूर रहें। लेकिन एक दिन जब वे महल से बाहर निकले, तो उन्होंने चार दृश्य देखे — एक वृद्ध व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति, एक मृत शरीर और एक संन्यासी। ये चार दृश्य उनके जीवन को पूरी तरह बदल देने वाले साबित हुए।
उन्होंने समझा कि जीवन अनित्य है और दुखों से भरा है। इस सत्य को जानने की तीव्र इच्छा ने उन्हें एक रात महल, पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को छोड़कर संन्यास लेने के लिए प्रेरित किया। वे ज्ञान की तलाश में जंगलों में भटकते रहे, कठोर तप किया, अनेक गुरुओं से मिले, लेकिन उन्हें पूर्ण शांति नहीं मिली।
अंततः, बोधगया (बिहार) में पीपल के पेड़ के नीचे ध्यान करते हुए उन्हें "बोधि" यानी ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद वे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए — बुद्ध यानी "जाग्रत व्यक्ति"। उन्होंने जीवन, दुख, उसके कारण और उससे मुक्ति के मार्ग (आठfold path) का उपदेश दिया।
बुद्ध की यह यात्रा एक राजकुमार से भगवान बनने तक की है, जिसमें उन्होंने त्याग, तपस्या और सत्य की खोज से मानवता को शांति और करुणा का मार्ग दिखाया।
AGCNN द्वारा इस साक्षात्कार/ब्रॉडकास्ट का उद्देश्य विकसित भारत की अवधारणा और इसके लक्ष्यों को पाना है। साथ ही यह भी बताना कि एक विकसित राष्ट्र केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के दृष्टिकोण से भी कैसा होता है। अपने लगभग हजार वर्षों की दासता के बाद जब भारतवर्ष जागा, तब उसने जैसे और जिस रूप में पश्चिमी औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध, अपने शोषकों के विरुद्ध आवाज उठायी, स्वामी जी का प्रथम संभाषण “स्वागत् का उत्तर” ही उसका सर्वोत्तम उदाहरण है। स्वामी जी की आवाज़ में भारत ने अपने को पहचाना तथा दासता के विरुद्ध संघर्ष में अपनी राह पाई। यह उचित ही था, जो उस धर्म सभा में स्वामी जी द्वारा विशद और व्यापक रूप में प्रतिपादित हुआ कि धर्म ही भारतीय संस्कृति का आधार है, और धर्म का आधार हैं वेद, जिसका अर्थ ज्ञान अथवा ज्ञानराशि होता है, कभी नष्ट नहीं हो सकता। यह ज्ञान ऋषियों के द्वारा खोजा गया है, और ऐसे ऋषि भारत में समय समय पर होते रहते हैं। इसलिए भारतीय धर्म संस्कृति बनी रहती है—बनी रहेगी। स्वामी विवेकानंद द्वारा स्वानुभूति और तर्क के आधार पर पश्चिमी विद्वत् परिषद के समक्ष इस तथ्य का प्रतिपादन एक अत्यंत महिमाशाली घटना थी। यह भारत के नवजागरण का सूत्रपात था।