प्रधानमंत्री मोदी ने दी जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की शुभकामनाएं
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पीएम मोदी ने दी रथ यात्रा की शुभकामनाएं।
भगवान जगन्नाथ से देशवासियों के कल्याण की कामना।
एक्स (Twitter) पर प्रधानमंत्री का श्रद्धाभावपूर्ण संदेश।
Delhi / प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के शुभ अवसर पर लोगों को शुभकामनाएं दीं।
PM Modi ने एक्स पर अलग-अलग पोस्ट में उन्होंने लिखा: “भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के पवित्र अवसर पर सभी देशवासियों को मेरी ढेरों शुभकामनाएं। श्रद्धा और भक्ति का यह पावन उत्सव हर किसी के जीवन में सुख, समृद्धि, सौभाग्य और उत्तम स्वास्थ्य लेकर आए, यही कामना है। जय जगन्नाथ!”
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा भारत के ओडिशा राज्य के पुरी नगर में हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया (जून-जुलाई) को मनाया जाने वाला एक अत्यंत भव्य और पवित्र पर्व है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथों पर सवार होकर उनके मंदिर से मौसी के घर गुंडिचा मंदिर तक जाने की यात्रा होती है।
धार्मिक महत्व:
यह यात्रा प्रतीक है भगवान की अपने भक्तों तक स्वयं चलकर आने की भावना का। सनातन परंपरा में यह पर्व “भक्त और भगवान” के आपसी संबंध का जीवंत उदाहरण है, जहाँ भगवान अपने घर से बाहर आकर भक्तों को दर्शन देते हैं।
प्रमुख बातें:
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भगवान जगन्नाथ का रथ – नंदिघोष (१६ पहिए)
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बलभद्र का रथ – तालध्वज (१४ पहिए)
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सुभद्रा का रथ – दर्पदलन (१२ पहिए)
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रथों को भक्तजन खींचते हैं, जिसे पुण्य और मोक्षदायक माना जाता है।
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यह यात्रा करीब 3 किलोमीटर लंबी होती है।
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हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से इसमें भाग लेने आते हैं।
आयोजन की विशेषताएँ:
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रथ यात्रा के पूर्व रथों का निर्माण पारंपरिक कारीगरों द्वारा किया जाता है।
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यात्रा के दौरान “हरे कृष्ण”, “जय जगन्नाथ” जैसे नारे गूंजते हैं।
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पूरे पुरी नगर में आस्था, भक्ति और उत्सव का माहौल रहता है।
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यात्रा के 9वें दिन “बहुदा यात्रा” होती है, जब भगवान वापसी करते हैं।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पक्ष:
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रथ यात्रा की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।
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आदि शंकराचार्य, चैतन्य महाप्रभु, तुलसीदास आदि संत भी रथ यात्रा में शामिल हुए थे।
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UNESCO ने पुरी रथ यात्रा को विश्व सांस्कृतिक धरोहर की मान्यता दी है।
निष्कर्ष:
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आस्था, सनातन धर्म और मानवता की एक महान परंपरा है। यह पर्व दर्शाता है कि ईश्वर स्वयं अपने भक्तों के लिए मार्ग बनाते हैं।