महारथी बटुकेश्वर दत्त | तत्कालीन सरकारों और इतिहास से उपेक्षित महान् क्रांतिकारी योद्धा की वीरोचित किन्तु मार्मिक और दर्दनाक गाथा
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बटुकेश्वर दत्त: स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक।
भगत सिंह के साथी, जिन्होंने विधान सभा में बम फेंका।
आज़ाद भारत में उपेक्षित क्रांतिकारी की प्रेरक गाथा।
Jabalpur / आपकी आत्मा, हृदय और कलेजा काँप उठेगा, जब एक क्रांतिकारी की मार्मिक एवं दर्दनाक कहानी पढ़ेंगे, जिन्हें स्वाधीन भारत में न नौकरी मिली, न ईलाज और न इतिहास में समुचित स्थान!-कृपया पढ़ें और विचार व्यक्त करें! क्या ये आतंकवादी थे? न्याय करें!
देश की आजादी के लिए कालापानी सहित करीब 15 साल तक जेल की सजा काटने वाले क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के प्रशंसक थे, शहीद-ए-आजम भगत सिंह , लेकिन स्वतंत्रता मिलने के बाद हमारी व्यवस्था ने उनके साथ कैसा दुर्व्यवहार किया!! आज पुण्य तिथि पर जानते हैं इस महान् महारथी की दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण गाथा।
महारथी बटुकेश्वर दत्त की वीरोचित और दर्दनाक गाथा का शुभारंभ कहाँ से करुं? क्यों करुं?अक्सर क्यों लिखता हूँ? इन प्रश्नों के उत्तर में केवल इतना कहना है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इन जैंसे महानायकों को हाशिए में रखकर तथाकथित केवल उदारवादी नायकों को प्रमुख नायक बताकर, इतिहास लेखन का जो पाप हुआ है उसका शमन करना है। साथ ही बालीवुड के तथाकथित भांड, नर्तकों और विदूषकों को नायक और नायिकाओं के रुप में एक सोची समझी साजिश के साथ प्रतिष्ठित किया गया है जिस कारण हमारी पीढ़ियां वास्तविक नायक-नायिकाओं से अपरिचित सी हो गईं! इसलिए वास्तविकता का आईना दिखाने के लिए लिखने पर विवश हूँ। आईये आज मिलते हैं महारथी श्रीयुत बटुकेश्वर दत्त से, जिन्होंने 19 वर्ष की आयु में ही केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका था।
देश को स्वाधीन करवाने के लिए बटुकेश्वर दत्त, ऐंसे महान् क्रांतिकारी हैं जिनके प्रशंसक(फैन) शहीद-ए-आजम भगत सिंह भी थे। तभी तो उन्होंने लाहौर सेंट्रल जेल में बटुकेश्वर दत्त का स्वांकन (ऑटोग्राफ) लिया था। लेकिन स्वाधीन भारत की सरकारों को दत्त की कोई परवाह नहीं थी।इसका जीता जागता उदाहरण उनका जीवन संघर्ष है। देश की आजादी के लिए करीब 15 साल तक सलाखों के पीछे गुजारने वाले बटुकेश्वर दत्त को आजाद भारत में नौकरी के लिए भटकना पड़ा।उन्हें कभी सिगरेट कंपनी का एजेंट बनना पड़ा तो कभी टूरिस्ट गाइड बनकर पटना की सड़कों पर घूमना पड़ा। जिस आजाद भारत में उन्हें सिर आंखों पर बैठाना चाहिए था उसमें उनकी घोर उपेक्षा हुई।
'गुमनाम नायकों की गौरवशाली गाथाएं' नामक अपनी किताब में विष्णु शर्मा ने बटुकेश्वर दत्त के बारे में विस्तार से लिखा है। उनके मुताबिक दत्त के दोस्त चमनलाल आजाद ने एक लेख में लिखा, 'क्या दत्त जैसे कांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी भूल की है। खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत दयनीय स्थिति में अस्पताल में पड़ा एड़ियां रगड़ रहा है और उसे कोई पूछने वाला नहीं है।
बटुकेश्वर दत्त जन्म बटुकेश्वर दत्त, बर्धमान (बंगाल) से 22 किलोमीटर दूर 18 नवंबर 1910 को औरी नामक एक गांव में पैदा हुए थे।हाईस्कूल की पढ़ाई के लिए वो कानपुर आए और वहां उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद से हुई। वे सन् 1928 में गठित हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के सदस्य बने। यहीं पर उनकी भगत सिंह से मुलाकात हुई। उन्होंने बम बनाना सीखा।लाहौर अनुष्ठान और केन्द्रीय विधान सभा में सरदार भगत सिंह के साथ बम फेंका था। दोनों क्रांतिकारियों में दोस्ती कितनी गहरी थी इसकी एक मिसाल हुसैनीवाला में देखने को मिलती है।
तत्कालीन बिहार सरकार बटुकेश्वर दत्त के ईलाज पर ध्यान ही नहीं दिया। सन् 1964 में बटुकेश्वर दत्त बीमार पड़े।पटना के सरकारी अस्पताल में उन्हें कोई पूछने वाला नहीं था। जानकारी मिलने पर पंजाब सरकार ने बिहार सरकार को एक हजार रुपए का चेक भेजकर वहां के मुख्यमंत्री के बी सहाय को लिखा कि यदि पटना में बटुकेश्वर दत्त का ईलाज नहीं हो सकता तो राज्य सरकार दिल्ली या चंडीगढ़ में उनके इलाज का खर्च उठाने को तैयार है। इस पर बिहार सरकार हरकत में आई, बटुकेश्वर दत्त का इलाज प्रारम्भ किया गया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। 22 नवंबर 1964 को उन्हें दिल्ली लाया गया।यहां पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा था कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था जिस दिल्ली में उन्होंने बम फोड़ा था वहीं वे एक अपाहिज की तरह स्ट्रेचर पर लाए जाएंगे।
बटुकेश्वर दत्त को सफदरजंग अस्पताल में भर्ती किया गया। बाद में पता चला कि उनको कैंसर है और उनकी जिंदगी के कुछ ही दिन बाकी हैं। कुछ समय बाद पंजाब के मुख्यमंत्री रामकिशन उनसे मिलने पहुंचे। छलछलाती आंखों के साथ बटुकेश्वर दत्त ने मुख्यमंत्री से कहा, 'मेरी यही अंतिम इच्छा है कि मेरा दाह संस्कार मेरे मित्र भगत सिंह की समाधि के बगल में किया जाए।
20 जुलाई 1965 की रात एक बजकर पचास मिनट पर वो यह दुनिया छोड़ चुके थे। बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा को सम्मान देते हुए उनका अंतिम संस्कार भारत-पाक सीमा के करीब हुसैनीवाला में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव की समाधि के पास किया गया।
भगत सिंह की जेल डायरी के पेज नंबर 67 पर बटुकेश्वर दत्त का स्वांकन, भगत सिंह ने लिया था।भगत सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बटुकेश्वर दत्त के प्रशंसक थे। इसका एक सबूत उनकी जेल डायरी में है। उन्होंने बटुकेश्वर दत्त का एक स्वांकन लिया था।
बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह लाहौर सेंट्रल जेल में कैद थे। बटुकेश्वर के लाहौर जेल से दूसरी जगह शिफ्ट होने के चार दिन पहले भगत सिंह जेल के सेल नंबर 137 में उनसे मिलने गए थे। यह तारीख थी 12 जुलाई 1930 इसी दिन उन्होंने अपनी डायरी के पेज नंबर 65 और 67 पर उनका स्वांकन (ऑटोग्राफ) लिया।
डायरी की मूल प्रति भगत सिंह के वंशज यादवेंद्र सिंह संधू के पास है। शहीद भगत सिंह ब्रिगेड के अध्यक्ष और उनके प्रपौत्र संधू ने बताया कि शहीद-ए-आजम भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त को अपना सबसे प्रमुख दोस्तों में से एक मानते थे। यह स्वांकन (ऑटोग्राफ )भगत सिंह का उनके प्रति सम्मान था। शायद दोनों ने भांप लिया था कि अब उनकी मुलाकात नहीं होगी। इसलिए यह निशानी ले ली।
ब्रिटिश पार्लियामेंट में पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया। सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक, 1928, ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में पेश किया गया एक विवादास्पद कानून था, जिसका उद्देश्य मुख्य रुप से क्रांतिकारी राष्ट्रवाद की गतिविधियों पर अंकुश लगाना था। इस विधेयक में सरकार को बिना मुकदमा चलाए संदिग्ध व्यक्तियों को हिरासत में लेने और निर्वासित करने का व्यापक अधिकार देने का प्रावधान था। भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं ने इसे नागरिक स्वतंत्रता पर हमला और स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने का प्रयास माना।व्यापार विवाद अधिनियम सन् 1929 भी अत्यंत विवादास्पद और प्रतिकूल था।
अतः बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु इसका पुरजोर विरोध करना चाहते थे। इसलिए 19 वर्षीय बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह के साथ मिलकर केंद्रीय विधान सभा में दो बम फोड़े और इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते हुए गिरफ्तारी दी।इस समय इन्होंने वहाँ पर्चे भी बाटें, जिसका प्रथम वाक्य था कि- बहरों को सुनाने के लिये विस्फोट के बहुत ऊँचे शब्द की आवश्यकता होती है।बटुकेश्वर ही सेंट्रल असेंबली में बम ले गए थे। यादवेंद्र संधू कहते हैं कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर,बम फेंकने के अलावा सांडर्स की हत्या का आरोप भी था। इसलिए उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई।जबकि बटुकेश्वर दत्त को भारतीय दंड संहिता की धारा 307 और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धारा 4 के तहत, कालापानी की सजा हुई।
बटुकेश्वर दत्त को अंडमान की भयावह सेल्युलर जेल भेजा गया,उन्होंने कालापानी की जेल में ऐतिहासिक भूख हड़ताल भी की थी। तदुपरान्त वहाँ से सन् 1937 में उन्हें बांकीपुर सेंट्रल जेल, पटना लाया गया। यहाँ से बटुकेश्वर दत्त सन् 1938 में रिहा किये गए थे।
बटुकेश्वर दत्त,सन् 1942 में महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन आंदोलन में कूद पड़े। इसलिए उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया और चार साल बाद सन् 1945 में वे रिहा हुए। 15 अगस्त सन् 1947 में देश स्वाधीन हो गया, तब बटुकेश्वर दत्त पटना में रह रहे थे।
अत्यंत दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि महान् क्रन्तिकारी बटुकेश्वर दत्त को पटना में जीवन -यापन करने के लिए सिगरेट कंपनी का एजेंट बनना पड़ा।टूरिस्ट गाइड की नौकरी करनी पड़ी। उनकी पत्नी अंजली को एक निजी स्कूल में पढ़ाना पड़ा।समूचे सरकारी तंत्र ने उनका कोई सहयोग नहीं किया। विडंबना देखिए कि बटुकेश्वर दत्त ने पटना में बस परमिट के लिए आवेदन दिया, तो वहाँ के कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का सबूत मांगकर तिरस्कार किया।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के जैसी दोस्ती की मिसाल कम ही मिलती है।भगत सिंह के साथ फांसी न होने से बटुकेश्वर दत्त निराश हुए थे। वह देश के लिए बलिदान होना चाहते थे। उन्होंने भगत सिंह तक यह बात पहुंचाई। तब भगत सिंह ने उनको पत्र लिखा कि "वे दुनिया को ये दिखाएं कि क्रांतिकारी अपने आदर्शों के लिए मर ही नहीं सकते, बल्कि जीवित रहकर जेलों की अंधेरी कोठरियों में हर तरह का अत्याचार भी सह सकते हैं।" भगत सिंह की मां विद्यावती का भी बटुकेश्वर दत्त पर बहुत प्रभाव था, जो भगत सिंह के जाने के बाद उन्हें बेटा मानती थीं, बटुकेश्वर दत्त लगातार उनसे मिलते रहते थे। अब,जबकि स्वाधीनता के अमृत काल में स्वाधीनता संग्राम के इतिहास का पुनर्लेखन हो रहा है और वास्तविक नायकों को यथोचित स्थान तथा सम्मान मिल रहा है, तब बटुकेश्वर दत्त के साथ भी न्याय होने की सुनहरी आशा है।
पुनः महा महारथी श्रीयुत बटुकेश्वर दत्त के पुण्य तिथि पर शत् शत् नमन है|
डॉ. आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत