घटना शुक्रवार देर रात की बताई जा रही है। ग्रामीणों के अनुसार, नक्सली अचानक गांव में पहुंचे और दोनों युवकों को घर से बाहर बुलाया। देखते ही देखते उन्होंने धारदार हथियारों से दोनों पर हमला कर दिया, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गई। गांव में अफरातफरी मच गई, कोई कुछ समझ नहीं पाया। महिलाओं और बच्चों में चीख-पुकार मच गई। हत्या के बाद नक्सलियों ने गांव में पर्चे फेंके जिनमें पुलिस विरोधी बातें लिखी थीं और लोगों को सुरक्षा बलों से दूर रहने की चेतावनी दी गई थी।
घटना की सूचना मिलते ही थाना उसूर की पुलिस मौके पर रवाना हुई और देर रात तक घटनास्थल के आसपास सर्च ऑपरेशन जारी रहा। सुबह होते ही डीआरजी और सीएएफ के जवानों ने इलाके में कॉम्बिंग अभियान तेज कर दिया। पुलिस ने दोनों शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया है और जांच शुरू कर दी गई है। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि नक्सलियों को वास्तव में पुलिस मुखबिरी की कोई जानकारी थी या यह महज शक के आधार पर की गई हत्या थी।
इस पूरी घटना की खास बात यह भी है कि यह वारदात उपमुख्यमंत्री और गृह मंत्री विजय शर्मा के बीजापुर दौरे के कुछ ही घंटों बाद हुई। उन्होंने उसी दिन सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की थी और अधिकारियों से विकास कार्यों की प्रगति पर चर्चा भी की थी। नक्सलियों ने संभवतः इसी के जवाब में यह हमला कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है। यह नक्सलियों की पुरानी रणनीति रही है कि वे सरकार या सुरक्षा बलों की सक्रियता के बाद डर फैलाने की कार्रवाई करते हैं।
इस वारदात ने एक बार फिर यह साफ कर दिया है कि बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सलवाद की जड़ें पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। सरकार और सुरक्षा एजेंसियां लगातार विकास और सुरक्षा दोनों मोर्चों पर प्रयास कर रही हैं, लेकिन इस तरह की घटनाएं बताती हैं कि जमीनी स्तर पर अब भी डर, असुरक्षा और अविश्वास कायम है।
गांव में इस घटना के बाद गहरा सन्नाटा पसरा हुआ है। लोग घरों से निकलने में हिचकिचा रहे हैं। हर चेहरे पर भय और असुरक्षा का भाव साफ झलक रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि वे अब रात में चैन से सो नहीं पा रहे। प्रशासन ने लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिलाया है, लेकिन भय का माहौल अब भी बना हुआ है।
बीजापुर की यह घटना न केवल नक्सली हिंसा का ताजा उदाहरण है, बल्कि यह एक सवाल भी उठाती है – कब तक निर्दोष ग्रामीण नक्सली आतंक के शिकार बनते रहेंगे? सरकार और सुरक्षा बलों के सामने यह चुनौती है कि वे न केवल नक्सलियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें, बल्कि ग्रामीणों के दिलों में भरोसा भी दोबारा जगाएं ताकि वे भय के साये से बाहर आ सकें।