सनातन धर्म की अनमोल विरासत : 'करवा चौथ' महाव्रत
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Karwa Chauth 2025
करवा चौथ: अमर प्रेम और समर्पण का प्रतीक व्रत.
माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा का शुभ पर्व.
पंच तत्व, चंद्र अर्घ्य और पारिवारिक सुख का प्रतीक.
Jabalpur / सनातन धर्म में करवा चौथ (करक चतुर्थी) अमर प्रेम, समर्पण, पवित्रता,पति की दीर्घायु, पारिवारिक समरसता, और शक्ति के अपूर्व सामर्थ्य का महाव्रत-महापर्व है। यह महाव्रत चौथ माता अर्थात् आदि शक्ति माता पार्वती क़ो समर्पित है।
अतः यह महाव्रत सादगी और पारंपरिक रुप से ही रखा जाना श्रेयस्कर है परंतु वर्तमान संदर्भ में बालीवुड के तथाकथित सेक्युलर निर्देशकों,अभिनेता और अभिनेत्रियों ने इस महाव्रत को फिल्मी बना कर खराब करने प्रयास किया।
देवासुर संग्राम में परम पिता ब्रम्हा ने देवताओं की विजय और दीर्घायु के लिए देवियों को इस व्रत का विधान बताया था। सावित्री ने सत्यवान के लिए इस व्रत को रखा और यमराज से अपने पति के प्राणों क़ी रक्षा की।भगवान् श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को अर्जुन के लिए इस व्रत को रखने के लिए वृत्तांत बताया था। स्वयं भगवान् शिव ने माता पार्वती को इस महान् व्रत के माहात्म्य को बताया है इसके साथ ही अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं,जिनमें करवा माता एवं वीरावती क़ी कथा भी प्रचलित है।
करवा चौथ शुभ मुहूर्त के परिप्रेक्ष्य में, हिंदू पंचांग के अनुसार, इस बार 10 अक्टूबर को करवा चौथ व्रत किया जाएगा।कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 09 अक्टूबर को देर रात 10 बजकर 54 मिनट पर प्रारंभ होगी और समापन कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 10 अक्टूबर को शाम 07 बजकर 38 मिनट पर होगा। इस दिन पूजा-अर्चना करने का शुभ मुहूर्त 05 बजकर 16 मिनट से लेकर शाम 06 बजकर 29 मिनट तक रहेगा। चंद्रोदय शाम 07 बजकर 42 मिनट पर होगा।
देश के अलग-अलग राज्यों और शहरों में चन्द्रमा दिखने का समय इससे थोड़ा अलग हो सकता है। अपने नगर के हिसाब से चन्द्रमा निकलने का सही समय एक बार अवश्य देख लें।
सास माँ आज आत्मीय भाव से बहू को सरगी देती है जो दोनों के रिश्तों को वात्सल्य रस से भर देता है। मिट्टी का करवा (पात्र) का विशेष महत्व है यह करवा देवी और चौथ देवी का प्रतीक है।
मिट्टी का करवा पंच तत्व का प्रतीक है, मिट्टी को पानी में गला कर बनाते हैं जो भूमि तत्व और जल तत्व का प्रतीक है, उसे बनाकर धूप और हवा से सुखाया जाता है जो आकाश तत्व और वायु तत्व के प्रतीक हैं फिर आग में तपाकर बनाया जाता है।
भारतीय संस्कृति में पानी को ही परब्रह्म माना गया है, क्योंकि जल ही सब जीवों की उत्पत्ति का केंद्र है। इस तरह मिट्टी के करवे से पानी पिलाकर पति पत्नी अपने रिश्ते में पंच तत्व और परमात्मा दोनों को साक्षी बनाकर अपने दाम्पत्य जीवन को सुखी बनाने की कामना करते हैं। आयुर्वेद में भी मिट्टी के बर्तन में पानी पीने को फायदेमंद माना गया है इस कारण वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह उपयोगी है।
अविवाहित लड़कियों के लिए करवा चौथ व्रत नियम पृथक हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जो अविवाहित लड़कियां होती है उन्हें निर्जला व्रत रखने की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि निर्जला व्रत के लिए सरगी की आवश्यकता होती है और अविवाहित लड़कियों के लिए सरगी आदि नहीं मिल पाती है।
करवा चौथ के दिन अविवाहित महिलाओं द्वारा व्रत में भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और चंद्रमा की पूजा की जाती है। साथ ही माँ करवा की कथा भी होती है। मान्यता है, लड़कियाँ विधि-विधान से व्रत करती है उन्हें माता करवा का आशीर्वाद मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अविवाहित महिलाओं को चांद को देखकर अर्घ्य नहीं देना चाहिए बल्कि तारों को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोल सकती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रमा को अर्घ्य देने का नियम केवल विवाहित महिलाओं के लिए होता है।
यदि आपके शहर में खराब मौसम के कारण चंद्रमा दिखाई नहीं देता है, तो ऐसी स्थिति में आप अपने किसी परिचित को मोबाइल कॉल कर सकते हैं जो दूसरे शहर में रहता है। तो आप वीडियो कॉल के माध्यम से चन्द्र दर्शन कर अपना व्रत खोल सकते हैं। यदि वीडियो कॉल के माध्यम से व्रत खोलना संभव नहीं है, तो आप जिस दिशा में चंद्रमा उगता है उस दिशा की ओर मुंह करके व्रत खोल सकते हैं।
यदि आकाश में चंद्रमा न दिखे तो आप भगवान शिव के सिर पर चंद्रमा की पूजा करके भी व्रत कर सकते हैं।यदि करवा चौथ के दिन आकाश में चंद्रमा नहीं दिखाई देता है तो आपको मंदिर में जिस दिशा की ओर एक स्थान रखना होता है उस दिशा में चन्द्रमा निकल रहा होता है।
भगवान शिव, पार्वती, कार्तिकेय, श्रीगणेश और चन्द्रमा चंद्रमा की पूजा का विधान है, और चंद्रमा को अर्घ्य देकर परायण और छलनी ने सभी राग-द्वेष छान दिए हैं अब केवल निर्मल प्रेम ही शेष है,यही करवा चौथ व्रत का मूलाधार है।
हर हर महादेव | सभी आत्मीय जनों को करवा चौथ महाव्रत - महापर्व की अनंत कोटि शुभकामनायें |
डॉ आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकोशल प्रांत