सुबह करीब 9.30 बजे प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर चोपन–प्रयागराज पैसेंजर (13309) ट्रेन रुकी। बड़ी संख्या में श्रद्धालु इसी ट्रेन से उतरकर वाराणसी जाने के लिए दूसरे प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ रहे थे। भीड़ अधिक थी और हर कोई जल्दी में था। त्योहार का दिन होने के चलते स्टेशन पर चहल-पहल भी अधिक थी। इसी बीच कई श्रद्धालु जल्दबाजी में फुटओवर ब्रिज का इस्तेमाल न करते हुए सीधे रेलवे ट्रैक पार करने लगे। शायद उन्हें अंदाज़ा भी नहीं था कि अगले ही पल क्या होने वाला है।
जैसे ही वे ट्रैक पर उतरे, तभी मेन लाइन से तेज रफ्तार में आ रही कालका (नेताजी) एक्सप्रेस (12311) वहां पहुँची। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, ट्रेन इतनी अचानक आई कि लोगों के संभलने का कोई मौका ही नहीं मिला। कुछ लोग झटपट पीछे हटे, लेकिन कई श्रद्धालु ट्रेन की चपेट में आ गए। टक्कर इतनी भयानक थी कि कई शवों के चीथड़े उड़ गए और मौके पर ही उनकी मौत हो गई। प्लेटफॉर्म नंबर 3 और 4 के बीच एकदम अफरा-तफरी मच गई—चीख-पुकार, भगदड़, और चारों तरफ असहाय खड़े लोग।
हादसे के तुरंत बाद आरपीएफ और जीआरपी की टीम मौके पर पहुँची। उन्होंने ट्रैक से शव हटाए और घायलों को एंबुलेंस की मदद से नज़दीकी अस्पताल भेजा। अभी तक 7–8 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई घायल अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती हैं। मृतकों की पहचान की प्रक्रिया जारी है और उनके परिवारों को सूचना भेजी जा रही है।
उत्तर मध्य रेलवे के प्रयागराज डिवीजन के पीआरओ अमित सिंह ने बताया कि चोपन–प्रयागराज पैसेंजर प्लेटफॉर्म नंबर 4 पर रुकी थी। कई यात्री गलत दिशा से उतरे और ट्रैक पार करने लगे। उसी समय नेताजी एक्सप्रेस तेज रफ्तार में आई और लोग उसकी चपेट में आ गए। उन्होंने बताया कि शुरुआत में 3–4 मौतों की पुष्टि हुई थी, लेकिन संख्या बढ़ती गई।
देव दीपावली का यह दिन हर साल लाखों श्रद्धालुओं के लिए खुशी और आस्था का प्रतीक होता है। लोग अपने परिवारों के साथ वाराणसी पहुंचकर गंगा स्नान करते हैं, दीपदान करते हैं, और काशी की दिव्यता में डूब जाते हैं। लेकिन इस बार यह यात्रा कई परिवारों के लिए हमेशा के लिए दर्द बन गई। एक तरफ जहां गंगा किनारे लाखों दीये जगमगा रहे होंगे, वहीं दूसरी तरफ कुछ घरों में अंधेरा छा गया है।
यह हादसा एक बड़ी चेतावनी भी है—कभी भी जल्दीबाजी में अपनी और दूसरों की ज़िंदगी खतरे में नहीं डालनी चाहिए। रेलवे प्रशासन भी बार-बार नियमों का पालन करने की अपील करता है, लेकिन भीड़ और जल्दबाजी के आगे कई बार लोग खतरे को नजरअंदाज कर देते हैं। चुनार स्टेशन की यह त्रासदी शायद इसी चूक की कीमत है।
आज कई घरों में मातम है, कई माँ-बाप ने अपने बच्चों को खो दिया, कई बच्चों ने अपने माता-पिता को। त्योहार का दिन, जो खुशी देने वाला था, अब हमेशा के लिए एक दर्दनाक याद बन गया।