कानपुर के DSP ऋषिकांत शुक्ला पर 100 करोड़ की बेनामी संपत्ति का खुलासा, निलंबन और विजिलेंस जांच शुरू

Tue 04-Nov-2025,07:16 PM IST +05:30

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कानपुर के DSP ऋषिकांत शुक्ला पर 100 करोड़ की बेनामी संपत्ति का खुलासा, निलंबन और विजिलेंस जांच शुरू Kanpur DSP corruption case
  • एसआईटी जांच में 100 करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति का खुलासा.

  • आर्यनगर में 11 दुकानें और कई शहरों में अवैध निवेश के सबूत.

  • निलंबन के बाद अब विजिलेंस जांच में होगी आगे की कार्रवाई. 

Uttar Pradesh / Kanpur :

Kanpur / यह मामला उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में उस समय सामने आया, जब पुलिस महकमे की साख एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गई। लंबे समय तक कानपुर में तैनात रहे पुलिस उपाधीक्षक (DSP) ऋषिकांत शुक्ला पर करीब 100 करोड़ रुपये की अवैध संपत्ति जुटाने का गंभीर आरोप लगा है। यह खुलासा कोई मामूली बात नहीं थी, बल्कि इतनी बड़ी रकम का भ्रष्टाचार सुनकर शासन से लेकर पुलिस विभाग तक में हड़कंप मच गया। जैसे ही मामला ऊपर तक पहुंचा, अधिकारियों ने तुरंत कार्रवाई करते हुए डीएसपी को निलंबित कर दिया और विजिलेंस जांच बैठा दी।

पूरा मामला तब उजागर हुआ जब कानपुर पुलिस कमिश्नर की रिपोर्ट के आधार पर एसआईटी जांच शुरू की गई। जांच टीम ने कई महीनों तक दस्तावेज, संपत्तियों के रिकॉर्ड, बैंक लेनदेन और संबंधित व्यक्तियों से पूछताछ कर पूरे नेटवर्क की गांठें खोलनी शुरू कीं। एसआईटी रिपोर्ट के अनुसार, 1998 से 2009 के बीच, जब शुक्ला दरोगा के पद पर थे और विशेष रूप से कानपुर में तैनात थे, तभी से उन्होंने अकूत संपत्ति इकट्ठा करना शुरू किया। उस समय उनकी आय का स्रोत बेहद सीमित था, लेकिन उनकी आलीशान जीवनशैली और तेजी से बढ़ती संपत्तियों को देखकर कई लोगों को शक होने लगा था।

जांच में सामने आया कि शुक्ला ने अपनी घोषित आय से कई गुना अधिक संपत्ति अपने परिवार, रिश्तेदारों, साझेदारों और करीबियों के नाम पर खरीद रखी थी। इसमें सबसे बड़ा खुलासा आर्यनगर में 11 दुकानों का हुआ, जो उनके सहयोगी देवेंद्र दुबे के नाम पर दर्ज थीं। यह वही इलाका है जहाँ जमीन और दुकानों के दाम बेहद ऊंचे हैं, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि यह कोई छोटा खेल नहीं था।

इसके अलावा, शुक्ला की नजदीकी अखिलेश दुबे नामक एक शातिर अपराधी से भी सामने आई। रिपोर्ट्स बताती हैं कि अखिलेश दुबे फर्जी मुकदमे दर्ज कराने, जबरन वसूली करने और जमीनों पर कब्जा करने का बड़ा नेटवर्क चलाता था। एसआईटी का मानना है कि यह गठजोड़ वर्षों से चलता आ रहा था और इस नेटवर्क में केवल अपराधी नहीं, बल्कि कुछ पुलिस अधिकारी, केडीए कर्मचारी और अन्य सरकारी विभागों के लोग भी शामिल हो सकते हैं।

शिकायतकर्ता सौरभ भदौरिया ने इस पूरे मामले का सबसे बड़ा खुलासा किया। उन्होंने बताया कि शुक्ला ने एसओजी में तैनाती के दौरान ठेकेदारी, बिल्डिंग निर्माण और जमीन कब्जाने के नाम पर बड़े स्तर पर अवैध वसूली की। भदौरिया का दावा है कि अभी तक भले ही 100 करोड़ रुपये की संपत्ति सामने आई हो, लेकिन असल में यह आंकड़ा 200 से 300 करोड़ के बीच होना चाहिए। यानी अभी काफी कुछ जांच से बाहर है।

सूत्रों के अनुसार, शुक्ला की बेनामी संपत्तियाँ केवल कानपुर तक सीमित नहीं हैं। उनके नोएडा, पंजाब, चंडीगढ़ और अन्य शहरों में भी कई प्राइम लोकेशनों पर संपत्तियाँ होने की आशंका है। कानपुर के अलावा उन्नाव और फतेहपुर में बिल्डरों के साथ मिलकर जमीनों पर अवैध कब्जे और बड़े पैमाने पर निवेश के सबूत भी मिले हैं।

सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि डीएसपी के बेटे विशाल शुक्ला ने अपराधी अखिलेश दुबे के साथ मिलकर 33 कंपनियाँ बनाई थीं। इन कंपनियों का इस्तेमाल काले धन को सफेद करने (मनी लॉन्ड्रिंग) के लिए किया जाता था। यह प्रक्रिया बेहद संगठित तरीके से की गई थी ताकि किसी को शक न हो और अवैध कमाई आसानी से वैध दिख सके।

एसआईटी ने अब तक 12 संपत्तियों का रिकॉर्ड इकट्ठा किया है, जिनकी बाजार कीमत करीब 92 करोड़ रुपये बताई गई है। हालांकि अभी भी तीन महत्वपूर्ण संपत्तियों के दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो पाए हैं, जिनके मिलते ही वास्तविक आंकड़ा और बढ़ सकता है। रिपोर्ट को देखते हुए अपर पुलिस महानिदेशक (प्रशासन) ने विजिलेंस जांच की सिफारिश की, जिसे शासन ने तुरंत मंजूरी दे दी।

वर्तमान में ऋषिकांत शुक्ला मैनपुरी में डीएसपी पद पर तैनात थे। लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए उन्हें निलंबित कर दिया गया है। अब पूरा मामला विजिलेंस के हाथों में है, जो इस ‘100 करोड़ के कुबेर’ की अवैध कमाई और नेटवर्क की तह तक जाएगी। जांच पूरी होने के बाद ही तय होगा कि शुक्ला पर क्या कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी—सिर्फ बर्खास्तगी या फिर अदालत में बड़ा मामला दर्ज होगा।

यह घटना केवल एक पुलिस अधिकारी के भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि यह सवाल भी उठाती है कि सिस्टम में बदलाव कब और कैसे आएगा। जनता जिन अधिकारियों पर अपनी सुरक्षा का भरोसा करती है, अगर वही भ्रष्टाचार में डूब जाएँ, तो विश्वास टूटना स्वाभाविक है। अब पूरे राज्य की नजर इस जांच पर टिकी है कि आखिर शासन इस बड़े घोटाले में कितना सख्त रुख अपनाता है।