सेक्स एजुकेशन क्यों ज़रूरी है: सुरक्षा, जागरूकता और स्वस्थ सामाजिक विकास की आवश्यकता
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आधुनिक समय में इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच वैज्ञानिक और सही सेक्स एजुकेशन युवाओं को गलत जानकारी के खतरे से प्रभावी रूप से बचाता है। स्कूल स्तर पर व्यापक सेक्स एजुकेशन किशोरों को सुरक्षा, सहमति, व्यक्तिगत सीमाएँ और शरीर के बदलावों को समझने में मदद करता है, जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सही सेक्स एजुकेशन से यौन-शोषण के मामलों में कमी आती है और पीड़ित बच्चों में रिपोर्टिंग व आत्मसुरक्षा की क्षमता बढ़ती है।
नई दिल्ली / आज के बदलते समाज और डिजिटल युग में सेक्स एजुकेशन की आवश्यकता पहले से अधिक बढ़ गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों और किशोरों को शरीर, सुरक्षा, सहमति और संबंधों से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी देना अब एक बुनियादी शिक्षा का हिस्सा होना चाहिए। खासतौर पर ऐसे समय में जब इंटरनेट बिना फिल्टर की सूचनाओं से भरा हुआ है, सेक्स एजुकेशन युवाओं को गलत जानकारी, भ्रम और शोषण के जोखिम से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
भारत में बच्चों और किशोरों के लिए आधिकारिक सुरक्षा रिपोर्ट बताती है कि कई मामलों में बच्चे यह नहीं समझ पाते कि उनके साथ क्या गलत हो रहा है। ऐसे में सेक्स एजुकेशन उन्हें सही-गलत छूने, अनुचित व्यवहार या संभावित शोषण की पहचान करने की क्षमता देता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि जब बच्चा अपने शरीर की सीमाओं और अधिकारों को जानता है, तो वह आत्मसुरक्षा सीखता है और अपनी बात रखने में सक्षम होता है।
इसके अलावा, किशोरावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव, भावनात्मक उतार-चढ़ाव और शारीरिक परिवर्तन बच्चों के लिए कई बार उलझनें पैदा करते हैं। सही मार्गदर्शन न मिलने पर बच्चे सोशल मीडिया, गलत साथ या इंटरनेट से भ्रामक जानकारी ले लेते हैं, जिससे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। सेक्स एजुकेशन उन्हें समझदारी, जिम्मेदारी और स्वस्थ निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है।
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सेक्स एजुकेशन केवल शारीरिक शिक्षा नहीं है, बल्कि यह मानसिक स्वास्थ्य, आत्मसम्मान, सहमति, निजी सीमाओं और सम्मानजनक संबंधों की शिक्षा भी है। यह सीख युवाओं को सशक्त बनाती है और समाज में असमानता, लैंगिक भेदभाव, यौन उत्पीड़न और हिंसा जैसी समस्याओं को कम करने में मदद करती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और कई देशों के शिक्षा शोधों के अनुसार, वैज्ञानिक और चरणबद्ध तरीके से दी गई सेक्स एजुकेशन से किशोर सुरक्षित व्यवहार अपनाते हैं, गलत धारणाएँ खत्म होती हैं और यौन अपराधों में कमी देखी जाती है। भारत में भी कई राज्यों में इसे स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने की दिशा में चर्चा जारी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता और शिक्षकों को बच्चों से खुले मन से संवाद करना चाहिए ताकि बच्चे अपने सवालों को सुरक्षित माहौल में पूछ सकें। एक जागरूक समाज ही सुरक्षित समाज बनाता है, और सेक्स एजुकेशन उसका सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है।