Indian Election Commission controversy | देश के 272 दिग्गजों का खुला खत: चुनाव आयोग के समर्थन में बड़ा बयान
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Indian Election Commission controversy
दिग्गजों ने बिना सबूत EC पर लगाए गए आरोपों को राजनीतिक रणनीति बताया.
खुले पत्र में लोकतांत्रिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर हमला चिंताजनक बताया.
मतदाता सूची की शुचिता और पारदर्शिता बनाए रखने पर जोर.
Bihar / देश की राजनीति इन दिनों एक नए मोड़ पर खड़ी दिखाई देती है। इसी माहौल में देश के 272 प्रतिष्ठित दिग्गजों—पूर्व जजों, सेवानिवृत्त नौकरशाहों, राजदूतों और सैन्य अधिकारियों—ने चुनाव आयोग के समर्थन में एक खुला पत्र जारी कर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि राजनीतिक दल, खासकर विपक्ष, लगातार बेबुनियाद आरोपों के जरिए चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं की साख गिराने की कोशिश कर रहे हैं।
पत्र में साफ कहा गया है कि भारत का लोकतंत्र किसी बाहरी खतरे से नहीं, बल्कि "जहरीली राजनीतिक बयानबाजी" से चुनौती झेल रहा है। सिग्नेटरी समूह का आरोप है कि विपक्ष सिर्फ मंचों पर "प्रूफ होने" की बातें करता है, लेकिन कोई औपचारिक शिकायत या हलफनामा तक प्रस्तुत नहीं करता। इससे साफ होता है कि ये आरोप राजनीतिक रणनीति हैं, तथ्य नहीं।
पत्र में राहुल गांधी की हालिया टिप्पणियों का विशेष उल्लेख किया गया है—जहां उन्होंने चुनाव आयोग पर “वोट चोरी” और “गद्दारी” जैसे गंभीर आरोप लगाए। दिग्गजों का कहना है कि ऐसे बयानों से EC के अधिकारियों को धमकाने की झलक मिलती है। यह लोकतंत्र और संस्थाओं की गरिमा को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृत्ति है।
इन वरिष्ठ हस्तियों के अनुसार, EC ने SIR प्रक्रिया को कोर्ट की निगरानी में पूरी पारदर्शिता से लागू किया है। फर्जी मतदाताओं को हटाने और नए पात्र मतदाताओं को जोड़ने में आयोग ने लगातार तथ्यात्मक और तकनीकी ढंग से काम किया है। ऐसे में आयोग को "BJP की बी-टीम" कह देना केवल “राजनीतिक हताशा” है।
दिग्गजों ने यह भी कहा कि विपक्ष का रुख चुनिंदा और विरोधाभासी है—जब चुनाव नतीजे उनके पक्ष में आते हैं तो आयोग पर कोई सवाल नहीं उठता, लेकिन प्रतिकूल परिणाम मिलते ही आयोग अचानक “गुनहगार” बन जाता है। यह रवैया राजनीतिक अवसरवाद और जिम्मेदारी से बचने की मानसिकता को दर्शाता है।
खुले पत्र में यह भी चेतावनी दी गई है कि मतदाता सूची से फर्जी मतदाताओं, गैर-नागरिकों और अवैध प्रवासियों को हटाना लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है। अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा गया कि नागरिकता आधारित मतदान ही लोकतांत्रिक व्यवस्था की बुनियाद माना जाता है। भारत को भी इसी सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
ईमानदार, तथ्य-आधारित और संस्थान-सम्मानित राजनीति की अपील करते हुए दिग्गजों ने EC से कहा है कि वह पारदर्शिता बनाए रखे और यदि आवश्यक हो तो कानूनी रास्ते से अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करे। साथ ही राजनीतिक दलों से आग्रह किया गया है कि वे सबूत पेश करें, नीतिगत विकल्प सामने रखें और संवैधानिक संस्थाओं को लगातार बदनाम करने की प्रवृत्ति छोड़ दें।
यह पत्र खासतौर पर उस समय सामने आया है जब राहुल गांधी ने कई मौकों पर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए। बिहार में उन्होंने मंच पर ऐसे मतदाताओं को बुलाया जिनका दावा था कि उनके नाम वोटर लिस्ट से काट दिए गए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा में 3.5 लाख वोटर्स को लिस्ट से हटाया गया और बिहार में भी वैसा ही हो रहा है। इसके अलावा कर्नाटक की आलंद सीट का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस समर्थकों के वोट व्यवस्थित तरीके से हटाए गए।
राहुल ने वोटर लिस्ट में गड़बड़ी पर 22 पेज का प्रेजेंटेशन देकर दावा किया कि महाराष्ट्र के नतीजों के बाद उनका संदेह मजबूत हुआ कि “चुनाव में चोरी हुई है।”
दूसरी ओर दिग्गजों के पत्र में कहा गया है कि ऐसे आरोप बिना सबूत के लोकतंत्र में अविश्वास फैलाने वाले हैं। दोनों पक्षों की दलीलों के बीच यह मुद्दा सिर्फ राजनीतिक नहीं रहा, बल्कि संस्थाओं की विश्वसनीयता और लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थिरता से जुड़ गया है।
इसीलिए यह खुला पत्र सिर्फ आलोचना नहीं, बल्कि चेतावनी भी है—कि भारत की संवैधानिक संस्थाओं की साख को बचाना सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है, चाहे वह राजनेता हों या नागरिक।