कर्नाटक में आवारा कुत्तों का खतरा और बढ़ते काटने के मामले

Wed 13-Aug-2025,01:23 PM IST +05:30

ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |

Follow Us

कर्नाटक में आवारा कुत्तों का खतरा और बढ़ते काटने के मामले कर्नाटक में 2.86 लाख से अधिक कुत्ता काटने की घटनाएं, विधान परिषद में सुरक्षा बनाम पशु अधिकार पर बहस
  • कर्नाटक में आवारा कुत्तों के काटने के 2.86 लाख मामले।

  • विधान परिषद में सुरक्षा और पशु अधिकारों पर बहस।

  • मुख्यमंत्री ने मानवीय समाधान और सामुदायिक देखभाल की वकालत।

Karnataka / Bengaluru :

karnataka / कर्नाटक में आवारा कुत्तों की समस्या एक गंभीर सामाजिक और स्वास्थ्य संकट के रूप में उभर रही है। जनवरी से अगस्त 2025 के बीच राज्य में कुत्तों के काटने के 2.86 लाख से अधिक मामले दर्ज हुए हैं, जो यह दर्शाता है कि आवारा कुत्तों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है और उनके नियंत्रण के उपाय अपर्याप्त हैं। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि आवारा कुत्तों की बढ़ती आबादी आम जनता के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा बनती जा रही है, जिसमें रेबीज जैसी घातक बीमारियों का खतरा भी शामिल है।

यह मुद्दा दिल्ली-एनसीआर की सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के एक दिन बाद कर्नाटक विधान परिषद में भी जोर-शोर से उठा। जनता दल (सेक्युलर) के सदस्य एस.एल. भोजे गौड़ा ने इस विषय पर चर्चा की पहल की, जिसके बाद कई सदस्यों ने राज्य सरकार से आग्रह किया कि वह सर्वोच्च न्यायालय से इसी तरह का निर्देश प्राप्त करने के लिए याचिका दायर करे। सदस्यों का कहना था कि आम लोगों के लिए सड़कों पर पैदल चलना मुश्किल हो गया है, खासकर ग्रामीण और शहरी गरीब इलाकों में जहां लोग रोज़ाना आवारा कुत्तों का सामना करते हैं।

विधान परिषद में कई विधायकों ने यह आरोप लगाया कि जबकि मंत्रियों, विधायकों और नौकरशाहों के बच्चे सुरक्षित कारों में स्कूल जाते हैं, आम जनता के बच्चे और बुजुर्ग रोज़ाना इन खतरों का सामना करते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यभर में आवारा कुत्तों के हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और कई पीड़ितों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता है।

नगर प्रशासन मंत्री रहीम खान ने सदन में स्पष्ट किया कि वर्तमान में सड़कों से आवारा कुत्तों को हटाने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि मौजूदा कानून के तहत केवल कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण किया जा सकता है। इस पर कई सदस्यों ने सुझाव दिया कि जो लोग खुद को कुत्ता प्रेमी बताते हैं, उन्हें इन आवारा कुत्तों को अपने घरों में रखकर उनकी देखभाल करनी चाहिए, ताकि वे समस्या की गंभीरता समझ सकें।

एस.एल. भोजे गौड़ा ने भी यही सुझाव दोहराया और कहा कि यदि आवारा कुत्तों को कुत्ता प्रेमियों के परिसर में छोड़ दिया जाए, तो वे समस्या को वास्तविक रूप से महसूस करेंगे। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब वे चिकमगलुरु नगर परिषद के अध्यक्ष थे, तब 2,500 से अधिक आवारा कुत्तों को मारकर नारियल और कॉफी के बागानों में दफना दिया गया था। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उस समय आवारा कुत्तों को मारने के खिलाफ कोई कानून नहीं था।

वहीं, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस मुद्दे पर अलग दृष्टिकोण रखते हुए "मानवीय समाधान" की अपील की। उन्होंने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “आवारा कुत्तों को एक उपद्रवी मानकर उन्हें हटाना शासन नहीं है, यह क्रूरता है। मानवीय समाज ऐसे समाधान खोजते हैं जो पशुओं की रक्षा करते हैं। नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल ही कारगर उपाय हैं। भय से प्रेरित कदम केवल कष्ट को बढ़ाते हैं, सुरक्षा को नहीं।”

इस पूरे विवाद ने राज्य में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या, कानूनी सीमाओं और मानवीय दृष्टिकोण के बीच संतुलन बनाने की चुनौती को उजागर कर दिया है। एक ओर आम जनता की सुरक्षा की चिंता है, वहीं दूसरी ओर पशु अधिकार और उनके मानवीय संरक्षण का मुद्दा भी उतनी ही गंभीरता से सामने है। आने वाले समय में सरकार को कानून, प्रशासन और सामाजिक भागीदारी के माध्यम से इस जटिल समस्या का समाधान ढूंढना होगा।