राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने IIT धनबाद के 45वें दीक्षांत समारोह में छात्रों को नवाचार व करुणा का संदेश दिया
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |

राष्ट्रपति मुर्मु ने दीक्षांत समारोह में छात्रों को किया प्रेरित
IIT धनबाद की नवाचार संस्कृति और सामाजिक दृष्टिकोण की सराहना
शिक्षा को जनकल्याण और टिकाऊ विकास से जोड़ने का आह्वान
भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज झारखंड के धनबाद स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (भारतीय खनि विद्यापीठ), धनबाद के 45वें दीक्षांत समारोह की शोभा बढ़ाई।
इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी (आईएसएम) धनबाद की लगभग सौ वर्षों की गौरवशाली विरासत है। इसकी स्थापना खनन और भूविज्ञान के क्षेत्र में प्रशिक्षित विशेषज्ञ तैयार करने के उद्देश्य से की गई थी। समय के साथ इस संस्थान ने अपने अकादमिक क्षितिज को व्यापक किया है और यह आज उच्च शिक्षा और शोध का एक अग्रणी केंद्र बन चुका है। यह संस्थान तकनीकी विकास और नवाचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आईआईटी धनबाद ने एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित किया है जिसमें शिक्षा और नवाचार के उद्देश्य जन-जरूरतों और नागरिकों की आकांक्षाओं के साथ जुड़ते हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि आईआईटी-आईएसएम देश के समग्र विकास में एक अहम भूमिका निभाता है। यह संस्थान केवल उत्कृष्ट इंजीनियर और शोधकर्ता ही नहीं तैयार करता, बल्कि करुणाशील, संवेदनशील और उद्देश्यपूर्ण पेशेवरों को भी गढ़ता है। हमारे देश का भविष्य ऐसे ही संस्थानों की प्रतिबद्धता के माध्यम से आकार ले रहा है, जो अत्याधुनिक शोध, नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं और प्रतिभाशाली युवा मस्तिष्कों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज देश और दुनिया जलवायु परिवर्तन, संसाधनों की कमी, डिजिटल व्यवधान और सामाजिक असमानता जैसी जटिल और तीव्र परिवर्तनीय चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में आईआईटी-आईएसएम जैसे संस्थानों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। उन्होंने संस्थान से आग्रह किया कि वह टिकाऊ और नवीन समाधानों की खोज में अग्रणी भूमिका निभाए।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की सबसे बड़ी ताकत उसका विशाल मानव संसाधन है। तकनीकी शिक्षा की बढ़ती पहुंच और डिजिटल कौशल के प्रसार से भारत एक तकनीकी महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। हमारे शिक्षा तंत्र को अधिक व्यावहारिक, नवाचार-केंद्रित और उद्योगोन्मुखी बनाने से हमारे युवाओं की प्रतिभा को सही दिशा मिलेगी और वे वैश्विक मंच पर आगे बढ़ पाएंगे।
राष्ट्रपति ने कहा कि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए अनुसंधान एवं विकास (R&D) और स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के साथ-साथ पेटेंट संस्कृति को भी प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। छात्रों में समग्र सोच विकसित करने और जटिल समस्याओं के रचनात्मक समाधान खोजने के लिए शिक्षा में बहुविषयक (इंटरडिसिप्लिनरी) दृष्टिकोण को अपनाना भी अत्यंत आवश्यक है।
राष्ट्रपति ने छात्रों को सलाह दी कि वे अपने ज्ञान को केवल व्यक्तिगत प्रगति तक सीमित न रखें, बल्कि उसे जनकल्याण का माध्यम बनाएं। उन्होंने आग्रह किया कि वे अपने ज्ञान का उपयोग एक सशक्त और न्यायसंगत भारत के निर्माण में करें – जहां सभी को आगे बढ़ने के समान अवसर मिलें। उन्होंने कहा कि वे एक हरित भारत का निर्माण करें – जहां विकास प्रकृति की कीमत पर नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य में हो। उन्होंने कहा कि भविष्य में वे जो भी करें, उसमें उनकी करुणा, उत्कृष्टता, नैतिकता और बुद्धिमत्ता की झलक अवश्य हो। उन्होंने कहा – "सिर्फ नवाचार नहीं, बल्कि करुणा से प्रेरित नवाचार ही इस दुनिया को बेहतर बनाता है।"