मिशनरियां और ग्लोबल फोर्सेस चालाकी से मूल निवासियों के नरसंहार दिवस को मनवाती हैं मूल निवासी दिवस

Sat 09-Aug-2025,02:07 PM IST +05:30

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मिशनरियां और ग्लोबल फोर्सेस चालाकी से मूल निवासियों के नरसंहार दिवस को मनवाती हैं मूल निवासी दिवस (9 अगस्त सन् 1610- मूल निवासी नरसंहार दिवस को भोले - भाले मूल निवासियों से मूल निवासी दिवस मनाए जाने का भयानक षडयंत्र पर सादर
  • 9 अगस्त के ऐतिहासिक नरसंहार का सच।

  • मिशनरियों और ग्लोबल फोर्सेस की रणनीति।

  • भारत में जनजातीय गौरव और सांस्कृतिक एकता।

Madhya Pradesh / Jabalpur :

Jabalpur / यह विश्व के मूल निवासियों के लिए कितना दुखद दुर्भाग्यपूर्ण और भयानक है कि जिस दिन उनका नरसंहार हुआ था उसी दिन को मिशनरियां और ग्लोबल फोर्सेस विश्व मूल निवासी दिवस मनवाती हैं।  इसकी दुर्गन्ध भारतवर्ष में भी फैलायी जाती है, भोले - भाले जनजाति समाज, को बहकाया जाता है, परंतु सच्चाई नहीं बताई जाती। यद्यपि भारत में मूल निवासी दिवस मनाए जाने का कोई औचित्य नहीं है परंतु कतिपय भटके हुए मूल निवासियों को मूल निवासी दिवस का आईना दिखाना आवश्यक है। 

इतिहास यह है कि 9 अगस्त सन् 1610 में अमेरिका के मूल निवासियों के पाँच कबीलों का नरसंहार किया गया था।  वस्तुतः 9 अगस्त मूलनिवासी कबीलों के विनाश का दिन है इसलिए शोक व्यक्त करने का दिन है जिसे मिशनरियों और ग्लोबल फोर्सेस ने बड़ी चतुराई से संयुक्त राष्ट्र संघ के मंचों का उपयोग करते हुए जातीय रुप से प्रस्तुत किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ को 9 अगस्त को जहाँ मूल निवासी नरसंहार दिवस और मूल निवासी शोक दिवस घोषित करना चाहिए था वहाँ मिशनरियों और ग्लोबल फोर्सेस के दवाब में मूल निवासी दिवस घोषित करते हुए उत्सव बना डाला। 

भारत में मिशनरियों और ग्लोबल फोर्सेस का मूल निवासी दिवस मनाए जाने की आड़ में जनजातियों को मतांतरित कर उनके अस्तित्व को समाप्त कराने का षड्यंत्र कदापि सफल नहीं हो सकेगा। क्योंकि फड़ापेन (बड़ा देव) ही महादेव हैं, वही 'सत्यम् शिवम सुंदरम्' के रुप में प्रकाशित होकर,भारत के मूल का शक्तिपुंज हैं। हम भगवान् बिरसा मुंडा के देश के हैं, वो हमारे पूर्वज हैं, इसलिए हम उनकी जयंती पर जनजाति गौरव दिवस मनाते हैं। अतः भारत में मूल निवासी दिवस मनाए जाने का कोई औचित्य नहीं है? ये तो भारत के विरुद्ध षड्यंत्र है। 

परंतु 9 अगस्त को मूल निवासी दिवस मनाए जाने के विश्व व्यापी षड्यंत्र का खुलासा अनिवार्य है। भारत का हर निवासी है मूल निवासी और आत्मा है जनजाति,यही है सनातन की थाती, जिससे मिशनरियों की फटती है छाती। इसलिए है मिशनरियों के इशारे पर ग्लोबल फोर्सेज के सहारे मूल निवासी दिवस मनाए जाने का भारत में  षड्यंत्र, जो है भारत को विभाजित करने दुष्कर्म। सावधान! विश्व के शेष बचे हुए मूल निवासियों क्योंकि ईसाई मिशनरियां  ग्लोबल फोर्सेज के साथ मिलकर  संयुक्त राष्ट्र महासभा के सहारे मूल निवासी दिवस के नाम पर सबका समूल विनाश करने के लिए उद्यत हैं।

परंतु भारत का दुर्भाग्य देखिए कि यहाँ के तथाकथित सेक्यूलर जय भीम - जय मीम और वामी, ईसाई मिशनरियों के षडयंत्र में सम्मिलित होकर विश्व मूल निवासी दिवस मनाए जाने की पैरवी कर रहे हैं इसलिए ईसाई मिशनरियों के साथ ग्लोबल फोर्सेस का मूल दिवासी दिवस मनाए जाने के षड्यंत्र का खुलासा करना अनिवार्य हो जाता है।गौरतलब है कि ईसाईयों ने प्रथम चरण में नरसंहार और द्वितीय चरण में सेवा की आड़ में विश्व के 85 देशों के मूल निवासियों का सफाया कर, ईसाई देश बना डाला और आधी दुनिया को चपेट लिया वहीं इस्लामियों ने तलवार की दम पर 58 मुस्लिम देश बना डाले। अब शेष दुनिया और विशेष कर भारत निशाने पर है। 

ईसाई मिशनरियों ने ग्लोबल फोर्सेस के साथ मिलकर किस तरह आधी दुनिया से मूल निवासियों का हर तरह से सफाया किया और भारत में मूल निवासियों के नाम पर क्या षडयंत्र किया? यह समझने के लिए ईसाई मिशनरियों के दुष्कर्मों को समझना होगा तभी सबकी आखें खुलेंगी!

इस संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता अफ्रीकी आर्कबिशप डेसमंड टुटू का कथन मार्गदर्शी है, उन्होंने ईसाई मिशनरियों पर तंज कसते हुए,  कहा था,कि ‘जब मिशनरी अफ्रीका आए तो उनके पास बाइबिल थी और हमारे पास धरती।’ मिशनरी ने कहा, ‘हम सब प्रार्थना करें। हमने प्रार्थना की। आंखें खोलीं तो पाया कि हमारे हाथ में बाइबिल थी और भूमि उनके कब्जे में।(’When the missionaries came to Africa they had the Bible and we had the land. They said "Let us pray." We closed our eyes. When we opened them we had the Bible and they had the land.) 

वहीं केन्या के पहले प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जोमो केन्याटा को 1914 में, ईसाई धर्म में बपतिस्मा दिया गया और उनका नाम जॉन पीटर रखा गया जिसे उन्होंने जॉनस्टोन में बदल दिया। बाद में उन्होंने 1938 में अपना नाम बदलकर जोमो रख लिया।

उन्होंने अपना पहला नाम किकुयू शब्द "जलते हुए भाले" से लिया और अपना अंतिम नाम मसाई शब्द से लिया, जिसका अर्थ है मनका बेल्ट जिसे वे अक्सर पहनते थे।उन्होंने ईसाई मिशनरियों पर डेसमंड टुटू की तरह तंज कसते हुए कहा कि "जब मिशनरी आये, तो अफ्रीकियों के पास जमीन थी और मिशनरियों के पास बाइबिल थी । उन्होंने सिखाया कि आंखें बंद करके प्रार्थना कैसे की जाती है। जब हमने उन्हें खोला, तो उनके पास ज़मीन थी और हमारे पास बाइबिल थी। हमारे बच्चे अतीत के नायकों के बारे में सीख सकते हैं।"( When the Missionaries arrived, the Africans had the land and the Missionaries had the Bible. They taught how to pray with our eyes closed. When we opened them, they had the land and we had the Bible. Our children may learn about the heroes of the past.")।

अब अमेरिका की ओर चलें तो वहाँ मूल निवासियों की संख्या 15वीं सदी में 14.5 करोड़ से 18वीं सदी तक मात्र 70 लाख रह गई थी। लेकिन विस्तारवादी शक्तियाँ इतने से संतुष्ट नहीं हुईं।

आगे इन 70 लाख मूल निवासियों को ‘इंडियन रिमूवल एक्ट 1830’ के द्वारा अमेरिका से खदेड़कर मिसिसिपी नदी के पश्चिम में बंजर इलाकों में धकेल दिया गया। अमेरिकी इतिहास में इसे ‘आंसुओं की नदी’ कहा जाता है। दुनिया के दूसरे हिस्सों जैसे, दक्षिण अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड व अन्य द्वीप समूहों में भी ऐसे ही नृशंस तरीके से वहां के मूल निवासियों का नरसंहार किया गया और इस तरह ये बर्बर लोग विश्व के सबसे सभ्य लोग बने। 

पश्चिम में कोलंबस डे को ‘डे आफ रेस’ भी कहा जाता है। पहला कोलंबस दिवस 12 अक्टूबर 1792 को मनाया गया था। उल्लेखनीय है कि कोलंबस 12 अक्टूबर सन् 1492 को अमेरिका पहुंचा था और मूल निवासियों के लिए विनाश के द्वार खोल दिए थे। इस दिन अमेरिका सहित सभी औपनिवेशिक ताकतों के अधिकांश क्षेत्रों में राष्ट्रीय अवकाश होता है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने कोलंबस दिवस को बड़ी भव्यता से मनाने का आदेश दिया था। परंतु मूल निवासियों के विरोध करने पर मिशनरियों के इशारे पर इन ग्लोबल फोर्सेस ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ आड़ में झाड़ काटते हुए 9 अगस्त को मूल निवासी नरसंहार दिवस को मूल निवासी दिवस उत्सव के रुप घोषित करवा दिया।

मिशनरियों और ग्लोबल फोर्सेस की दाल नहीं गलने वाली क्योंकि "जय सेवा. जय जोहार. सेवा जोहार - का मूल-कोयापुनेम (मानव धर्म और प्रकृति की शाश्वतता) में निहित है,जो" वसुधैव कुटुम्बकम् "के रुप में भारतीय संस्कृति का अमृत तत्व  है। "शम्भू महादेव दूसरे शब्दों में शम्भू शेक (महादेव की 88 पीढ़ियों का उल्लेख मिलता है - प्रथम..शंभू-मूला, द्वितीय-शंभू-गौरा और अंतिम शंभू-पार्वती) ही हैं"। संस्कारधानी में भगवान् श्रीराम द्वारा स्थापित रामेश्वरम उप ज्योतिर्लिंग, को सावन माह में एक दिन भील स्वरुप  में सजाया जाता है जिसे गुप्तेश्वर दिव्य "भील श्रृंगार दर्शन" के नाम से अभिहित किया जाता है।यही तो है, भारत के हर वासी हैं मूल निवासी के एकत्व का प्रतीक। 

डॉ. आनंद सिंह राणा,

श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।