राजस्थान में मुफ्त बांटी जा रही खांसी की दवा पर सवाल, बच्चों की मौत और बिगड़ी तबीयत के मामले सामने आए

Wed 01-Oct-2025,08:42 PM IST +05:30

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राजस्थान में मुफ्त बांटी जा रही खांसी की दवा पर सवाल, बच्चों की मौत और बिगड़ी तबीयत के मामले सामने आए Rajasthan cough syrup news
  • राजस्थान में मुफ्त कफ सिरप से बच्चों की तबीयत बिगड़ी.

  • भरतपुर, सीकर और जयपुर से मामले सामने आए.

  • सरकार ने दवा पर रोक लगाई और जांच शुरू की.

Rajasthan / Jaipur :

Jaipur / राजस्थान के सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर मुफ्त में बंटने वाली डेक्सट्रोमेथॉरफन हाइड्रोब्रोमाइड सिरप अब सवालों के घेरे में आ गई है। दावा है कि इसी दवा की वजह से भरतपुर, सीकर और जयपुर में मासूम बच्चों की जिंदगी खतरे में पड़ गई। भरतपुर में 4 साल के गगन की हालत इस दवा को पीने के बाद अचानक बिगड़ गई। यही नहीं, जब उसी दवा को वहां के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डॉक्टर ताराचंद योगी ने पीकर देखा तो उनकी तबीयत भी बिगड़ गई। यह घटनाक्रम अपने आप में चौंकाने वाला है, क्योंकि यही दवा मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत सरकारी हेल्थ सेंटर्स पर मुफ्त में बांटी जा रही थी।

भरतपुर का मामला इकलौता नहीं है। सीकर के खोरी ब्राह्मणान गांव में 5 साल के मासूम नित्यांश की मौत भी इसी कफ सिरप को पीने के बाद हो गई। परिवार को उम्मीद थी कि मामूली खांसी से राहत पाने के लिए दी गई दवा बच्चे को स्वस्थ कर देगी, लेकिन यह दवा उसकी सांस तक रोक गई। परिवार के लिए यह क्षण किसी बड़े सदमे से कम नहीं रहा। जयपुर के सांगानेर इलाके से भी एक मामला सामने आया है, जहां 2 साल की बच्ची की हालत इसी सिरप को पीने के बाद गंभीर हो गई और उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा।

लगातार सामने आ रहे इन मामलों ने यह बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर बच्चों की जिंदगी के लिए खतरनाक कफ सिरप बंटता रहा है? अगर हां, तो यह जिम्मेदारी किसकी है?

राजस्थान सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तीन सदस्यों की जांच समिति गठित कर दी है। साथ ही डेक्सट्रोमेथॉरफन हाइड्रोब्रोमाइड सिरप के वितरण और उपयोग पर रोक लगा दी गई है। राजस्थान के ड्रग कंट्रोलर अजय फाटक ने स्वीकार किया कि भरतपुर, सीकर और अन्य जिलों से शिकायतें मिली हैं। उन्होंने बताया कि दवा के सैंपल उठाकर जांच के लिए भेज दिए गए हैं और फिलहाल इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है। झुंझुनूं जिले में भी इसी तरह के सैंपल जांच के लिए भेजे गए हैं।

हालांकि, सवाल यह है कि जब यह दवा जून 2024 से मुख्यमंत्री निशुल्क दवा योजना के तहत बांटी जा रही थी, तो इसकी गुणवत्ता पर पहले ही जांच क्यों नहीं हुई? सरकार का दावा है कि हर दवा की जांच राजस्थान चिकित्सा सेवा निगम (आरएमएससीएल) की तरफ से होती है, लेकिन अब जो घटनाएं सामने आ रही हैं, वे इस दावे पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं।

जांच से जुड़े दस्तावेज भी कई चौंकाने वाली बातें उजागर करते हैं। 5 अक्टूबर 2023 को जारी एक सरकारी पत्र में साफ लिखा गया था कि के. संस फार्मा (K. Sans Pharma) द्वारा बनाई गई खांसी की दवा और दूसरी दवाएं गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरी थीं। इसके बावजूद यही कंपनी अलग नाम से दवा बनाकर फिर से राजस्थान में टेंडर हासिल कर लेती है और उसकी दवाएं सरकारी हेल्थ सेंटर्स पर पहुंच जाती हैं। यानी जिस कंपनी की दवा पहले ही फेल साबित हो चुकी थी, वही कंपनी दूसरे नाम से फिर से बाजार और सरकारी सिस्टम में घुस जाती है।

अब तीन जगहों से सामने आए मामले इस बात की पुष्टि करते हैं कि गुणवत्ता पर लापरवाही का खामियाजा आम जनता, खासकर मासूम बच्चों की जिंदगी को भुगतना पड़ रहा है। सीकर का परिवार नित्यांश को खोकर बर्बाद हो गया, भरतपुर में गगन के माता-पिता अस्पताल के चक्कर काट रहे हैं और जयपुर की बच्ची का परिवार अभी भी डर और चिंता में जी रहा है।

इन घटनाओं ने सरकार की स्वास्थ्य नीतियों और मुफ्त दवा वितरण प्रणाली की विश्वसनीयता पर गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या केवल दवा पर रोक लगाना और जांच समिति बना देना पर्याप्त है? या फिर दवा कंपनियों से लेकर टेंडर प्रक्रिया तक की गहन जांच की जानी चाहिए ताकि भविष्य में मासूमों की जान बच सके?

जनता को मुफ्त इलाज और दवा देना सरकार का दायित्व है, लेकिन जब वही दवा मौत का कारण बन जाए, तो इसे अनदेखा करना बेहद खतरनाक है। यह मामला केवल राजस्थान का नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक चेतावनी है कि दवा की गुणवत्ता पर कभी भी समझौता बच्चों और आम लोगों की जान को जोखिम में डाल सकता है।