संघ के अभिन्न सहभागी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व्यौहार राजेन्द्र सिंहा

Thu 02-Oct-2025,12:58 PM IST +05:30

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संघ के अभिन्न सहभागी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व्यौहार राजेन्द्र सिंहा Vyohar Rajendra Singh freedom fighter
  • जबलपुर के स्वतंत्रता सेनानी व्यौहार राजेंद्र सिंहा का योगदान.

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदी आंदोलन से जुड़ाव.

  • भारत छोड़ो आंदोलन में दो वर्ष का कारावास.

  • हिंदी को राजभाषा बनाने में अहम भूमिका.

Madhya Pradesh / Jabalpur :

Jabalpur / भारत में स्वाधीनता संग्राम का विस्तार होता जा रहा था, जिसकी दशा और दिशा देखकर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की थी।संघ का उद्देश्य स्वाधीनता संग्राम को सकारात्मक गति देकर, हिंदुत्व तथा भारत राष्ट्र की रक्षा करना था। महाकौशल में स्वाधीनता संग्राम के साथ संघ का विस्तार भी हो रहा था और शाखाएं स्थापित भी हो रही थीं, जिनमें हिन्दुओं के सभी वर्गों से स्वयंसेवकों का प्रतिनिधित्व बढ़ने लगा था। ऐंसे में व्यौहार राजेंद्र सिंहा का नाम उल्लेखनीय है।

व्यौहार राजेंद्र सिंहा के परिवार का संबंध विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना रानी दुर्गावती के मंत्री और सेनापति आधार सिंहा से है। व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्म जबलपुर में भाद्रपद शुक्लपक्ष षष्ठी विक्रम संवत्सर 1957, तदनुसार शुक्रवार 14 सितम्बर 1900, को जबलपुर के "व्यौहार" कायस्थ राजवंश में हुआ था। 

सन् 1917 में माननीय लोकमान्य तिलकजी के जबलपुर आगमन की उपरांत ही आप स्वाधीनता संग्राम से जुड़ गए। महात्मा गांधी, देशव्यापी हरिजन द्वारा करते हुए सन् 1933 में जब नगर में पधारे, तब आपके निवास पर अतिथि के रुप में रहे।

जबलपुर में सन् 1934 में संघ कार्यालय सिमरिया वाली कोठी में प्रारम्भ हुआ था और संघ शाखा का शुभारंभ श्री चंद्रकांत ठोसर के अनुसार 6 जुलाई 1935 को हुआ था। श्री केतकर जी के द्वारा पुराना बरफ घर वर्तमान में नर्मदेश्वर मंदिर राइट टाउन में प्रथम शाखा प्रारंभ हुई। श्री ठोसर जी के अनुसार दो-तीन माह बाद शाखा श्रीनाथ की तलैया में लगना प्रारंभ हुई। यह बाबा साहब आपके तथा दादा राव परमार्थ जी की प्रेरणा से कार्य आरंभ हुआ। सन् 1939 में एकनाथ जी रानाडे प्रथम प्रांत प्रचारक बनकर आए।

सिमरिया वाली कोठी से संघ कार्यालय कृष्ण कुंज बना और शाखा लगने लगी तब प्रथम नगर संघ चालक पंडित कुंजीलाल दुबे बने थे, तभी से व्यौहार राजेंद्र सिंहा का जुड़ाव संघ से हुआ।दूसरी शाखा गोल बाजार (वर्तमान में शहीद स्मारक) में प्रारंभ हुई।इस शाखा में 24 मार्च सन् 1939 में परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी एवं परम पूज्य गुरु जी आए थे, वे भी पूर्ण गणवेश जो उस समय का था, उपस्थित थे। 400 स्वयंसेवक उपस्थित थे, उक्त कार्यक्रम में पंडित कुंजीलाल दुबे, श्रीराम नन्होरिया एडवोकेट तथा सर कार्यवाह मोती शंकर झा उपस्थित थे। 

व्यौहार राजेंद्र सिंहा के पोते डॉ. अनुपम सिंहा जो स्वयं इतिहास मर्मज्ञ हैं, उनसे और उनके अभिलेखागार से प्राप्त जानकारी के अनुसार, 24 मार्च सन् 1939 को प्रातः काल में शाखा के उपरांत परम पूज्य डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार एवं श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर जी का प्रवास, तत्समय संघ के सहभागी व्यौहार राजेंद्र सिंहा के यहाँ हुआ,जहाँ संघ पर गहन विचार विमर्श हुए। तदुपरान्त व्यौहार वंश के जुगल किशोर मंदिर के दर्शन भी किए। गौरतलब है कि सन् 1939 में वीर सावरकर भी जबलपुर व्यौहार राजेंद्र सिंहा के यहाँ आए थे और उन्होंने ने भी जुगल किशोर मंदिर के दर्शन किये थे।

व्यौहार राजेंद्र सिंहा का स्वाधीनता संग्राम में उल्लेखनीय योगदान रहा। सन् 1939 में जबलपुर में हुए त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन के समय आपने त्रिपुरी का इतिहास लिखा। आपने सन् 1941 में हुए व्यक्तिगत सत्याग्रह में 6 माह तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में दो वर्ष का कारावास भोगा।

यद्यपि व्यौहार राजेन्द्र सिंह का संस्कृत, बांग्ला, मराठी, गुजराती, मलयालम, उर्दू, अंग्रेज़ी आदि पर भी बहुत अच्छा अधिकार था परन्तु फिर भी हिंदी को ही राष्ट्रभाषा बनाने के लिए उन्होंने लंबा संघर्ष किया। आपने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व सर्वधर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया जहां उन्होंने सर्वधर्म सभा में हिन्दी में ही भाषण दिया जिसकी जमकर प्रशंसा हुई। 

आप हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार थे, जिन्होने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में अति महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके पोते डॉ. अनुपम सिंहा के अनुसार व्यौहार राजेंद्र सिंहा के 50 वें जन्मदिन के दिन ही, अर्थात् 14 सितम्बर 1949 को, हिन्दी को राजभाषा के रुप में स्वीकार किया गया। पचासवें जन्मदिन पर उपहार स्वरुप यह शुभ-समाचार दिल्ली से सबसे पहले जबलपुर के तत्कालीन सांसद सेठ गोविन्ददास ने भेजा क्योंकि इस विशेष दिन को ही राजभाषा-विषयक निर्णय लिए जाने के लिए उन्होंने प्रयास किये थे।

व्यौहार निवास में दुर्लभ पांडुलिपियों, पुस्तकों और पत्रों आदि का अनमोल संग्रह था। अतिविशिष्टता (वी.आई.पी. संस्कृति) के वो सख्त विरुद्ध थे। यद्यपि अपनी युवावस्था में वे "राजन" के नाम से संबोधित किये जाते थे, परन्तु अपनी सादगी, अपनत्व व्यवहार के कारण कुछ आत्मीय जन उन्हें "काकाजी" भी संबोधित करते थे। वे इतने महान् गांधीवादी थे कि वृद्धावस्था व रुग्णावस्था में भी उन्होंने किसी महानगर के अतिविशिष्ट या बहुविशेषज्ञता वाले अस्पताल में जाने से स्पष्ट मना कर दिया था। उनका निधन स्थानीय शासकीय विक्टोरिया जिला अस्पताल (अब सेठ गोविन्ददास जिला चिकित्सालय) में 2 मार्च 1988 को हुआ।

व्यौहार राजेन्द्र सिंह ने हिंदी के लगभग 100 से अधिक बौद्धिक ग्रंथों की रचना की, जो सम्मानित-पुरस्कृत भी हुईं और कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अनिवार्य रूप से संस्तुत-समाविष्ट भी की गईं।
'साहित्य वाचस्पति', 'हिन्दी भाषा भूषण', 'श्रेष्ठ आचार्य', 'कायस्थ रत्न' आदि कई अलंकरणों से व्यौहार राजेन्द्र सिंह को विभूषित किया गया। उनके नाम से ही जबलपुर के एक हिस्से को व्यौहार बाग के नाम से जानते है।
 
यहाँ अत्यंत उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान - अंगीकृत, अधिनियमित, आत्मार्पित किया गया (स्वीकार किया गया) और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। संविधान के मुख पृष्ठ - प्रस्तावना पृष्ठ का अभिकल्प (डिजाइन) जबलपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और संघ के सहभागी व्यौहार राजेंद्र सिंहा के सुपुत्र श्रीयुत व्यौहार राममनोहर सिन्हा जी ने तैयार किया तदुपरांत "राम "शब्द भी अंकित किया। संविधान में अंकित भारतीय सांस्कृतिक विरासत के 22 चित्रों में से 12 चित्र डॉ. राममनोहर सिंहा जी के हैं।

डॉ.आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं 
इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।