सबसे बड़ा शक फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी पर गया, जहां से हथियार, विस्फोटक और अमोनियम नाइट्रेट समेत कई आपत्तिजनक सामग्री जब्त की गई थी। इसके बाद दिल्ली, फरीदाबाद और जम्मू-कश्मीर में इंटर-स्टेट छापेमारी और पूछताछ का सिलसिला शुरू हो गया। सोमवार को फरीदाबाद क्राइम ब्रांच की टीम एक बार फिर यूनिवर्सिटी कैंपस पहुंची और ब्लास्ट मॉड्यूल से जुड़े कई पहलुओं पर गहराई से जांच की। हालांकि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आरोपी डॉक्टरों के साथ उनका संबंध केवल उनकी आधिकारिक भूमिका तक सीमित था और कैंपस में किसी भी संदिग्ध गतिविधि की अनुमति नहीं थी।
इस बीच खुफिया एजेंसियों को हवाला फंडिंग का बड़ा सुराग मिला है। जांच में पता चला कि 20 लाख रुपये की राशि जैश-ए-मोहम्मद के एक विदेशी हैंडलर द्वारा तीन डॉक्टरों—उमर, मुझम्मिल और शाहीन—को भेजी गई थी। शुरुआती जांच के अनुसार, इस रकम में से लगभग 3 लाख रुपये 26 क्विंटल NPK फर्टिलाइजर खरीदने में खर्च किए गए। यह फर्टिलाइजर आमतौर पर खेती में उपयोग होता है, लेकिन इसे विस्फोटक बनाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। इस वजह से यह लेन-देन और भी संदिग्ध हो जाता है।
जांच में यह भी सामने आया है कि आरोपी समूह जोड़ों में बांटकर कई स्थानों पर एक साथ IED ब्लास्ट करने की योजना पर काम कर रहा था। यह एक बड़ी और खतरनाक साजिश का संकेत है। रेड फोर्ट ब्लास्ट में इस्तेमाल वाहन को चलाने वाला शख्स डॉ. उमर उन-नबी था, जिसकी पहचान फॉरेंसिक DNA टेस्टिंग से पक्की हो चुकी है। उसके DNA सैंपल उसकी मां से मैच कर गए, जिससे उसकी पुष्टि हो पाई।
इस घटना को देखते हुए दिल्ली पुलिस ने शनिवार को रेड फोर्ट ब्लास्ट मामले में एक नई FIR दर्ज की है, और अब इसकी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंप दी गई है। यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मामला कई राज्यों और संभावित अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से जुड़ा हुआ दिखाई देता है। वहीं, नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने भी सख्त कार्रवाई करते हुए जम्मू-कश्मीर के चार डॉक्टरों—डॉ. मुझफ्फर अहमद, डॉ. आदिल अहमद राथर, डॉ. मुझम्मिल शाकिल और डॉ. शाहीन सईद—का मेडिकल रजिस्ट्रेशन तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है।
जांच अभी जारी है और रोज नई जानकारियाँ सामने आ रही हैं। यह साफ दिखता है कि मॉड्यूल बेहद संगठित, शिक्षित और खतरनाक था। इस मामले ने एक बार फिर यह चेतावनी दी है कि आतंकवाद अब केवल जंगलों या सीमावर्ती इलाकों से नहीं, बल्कि शहरों के भीतर मौजूद “सफेद कॉलर” नेटवर्क के रूप में भी सामने आ रहा है। देश की सुरक्षा एजेंसियां पूरी कोशिश कर रही हैं कि इस पूरे नेटवर्क को जड़ से खत्म किया जा सके ताकि ऐसी त्रासदियाँ दोबारा न हों।