रानी दुर्गावती की आत्मनिर्भर अर्थ नीति और जल प्रबंधन,विश्व के लिए आज भी मार्गदर्शी
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गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का स्वर्ण युग.
समान कर व्यवस्था और जल प्रबंधन की अद्वितीय नीति.
महिला शिक्षा और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का विकास.
52 युद्धों में 51 विजय पाने वाली भारत की महान रानी.
Jabalpur / यह आलेख उन हिंदू वीरांगनाओं को सादर समर्पित है, जो जीवन के संग्राम में स्व के लिए मां, बेटी, बहन, पत्नी के रुप में देश की रक्षा के लिए अनादि काल से पूर्णाहुति देती आ रही हैं और दे रहीं हैं, जिनकी आस्था और समर्पण अटल है और उन्हें विपरीत परिस्थितियाँ भी हरा नहीं सकीं। हिन्दुओं में बेटी का जन्म एक परिवार, एक कुटुम्ब का जन्म है इसलिए मातृशक्ति हिंदुत्व का मूलाधार है।
हिंदू धर्म में एक बेटी का जन्म शक्ति के अवतार के रूप में शिरोधार्य किया जाता है, फिर तो रानी दुर्गावती का जन्म 5 अक्टूबर सन् 1524 को दुर्गा अष्टमी को हुआ था, इसलिए उनका नाम दुर्गावती रखा गया था, कालिंजर किले में राजा कीरत सिंह ने प्रसन्नता पूर्वक उत्सव मनाया और मध्यकाल में वही नन्ही बालिका युवा अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते शास्त्र और शास्त्रों में पारंगत हो गई। अपने पिता कीरत सिंह के साथ साथ कालिंजर किले का प्रबंधन संभाला और युद्ध भी लड़े।
मुस्लिम आक्राताओं के विरुद्ध बुंदेलखंड और गोंडवाना में रक्षात्मक संधि हुई तो आखिर गोंडवाना क़े महान् राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपति शाह क़े लिए रानी दुर्गावती को वधू के रुप में मांग ही लिया। धूमधाम से बुंदेलखंड की वीरांगना रानी दुर्गावती गोंडवाना की बहू बनकर आईं, तब रानी दुर्गावती 18 वर्ष की थी। यह रानी दुर्गावती का प्रारब्ध था या दुर्भाग्य, जिसने उनका पीछा किया, एक समय ऐसा आया जब क्रमशः होने वाले ससुर, फिर पिता और पति का अक्समात् देहावसान भी हुआ।
ऐंसी अवस्था में भी वीरांगना ने दुर्भाग्य को पलटते हुए, सन् 1548 में गोंडवाना साम्राज्य की बागडोर संभाली, 5 वर्षीय बालक वीर नारायण सिंह को युवराज घोषित करते हुए वह गोंडवाना की साम्राज्ञी बनीं। वीरांगना रानी दुर्गावती ने 16 वर्षों के शासनकाल में गोंडवाना के साम्राज्य को स्वर्ण युग में तब्दील कर दिया। आगे चलकर यही रानी दुर्गावती स्वतंत्रता, स्वाभिमान और शौर्य की देवी और राजमाता केे रुप प्रतिष्ठित हुईं। अब विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना मानी जाती हैं।
रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्ष शासन किया और यही काल गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग था। गोंडवाना साम्राज्य राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,कला एवं साहित्य के क्षेत्र में सुव्यवस्थित रुप से पल्लवित और पुष्पित होता हुआ अपने चरमोत्कर्ष तक पहुँचा।वर्तमान में प्रचलित जी.एस. टी. जैंसी कर प्रणाली रानी दुर्गावती के शासनकाल में लागू की गई थी, फलस्वरुप तत्कालीन भारत वर्ष गोंडवाना ही एकमात्र राज्य था जहाँ की जनता अपना लगान स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों में चुकाते थे, इसका उल्लेख स्वयं अकबर के दरबारी लेखक अबुल फजल ने भी किया है।
रानी दुर्गावती ने महिलाओं को शिक्षित करने का प्रयास किया और उनके लिए लाख के आभूषणों के लघु उद्योग स्थापित कराए। चिरौंजी, सिंघाड़ा, महुआ एवं इमारती लकड़ी के व्यापार को प्राथमिकता दी। गढ़ा में उन्नत वस्त्र उद्योग था। जड़ी बूटियों से बनी औषधियों के व्यापार को भी बढ़ावा दिया।
जी. एस. टी. जैंसी कर व्यवस्था और आर्थिक विकास की अधोसंरचना बनाई गई थी। गढ़ा-मंडला की वीरांगना, रानी दुर्गावती के शासन में जी.एस.टी. जैंसी कर प्रणाली लागू थी। इस प्रणाली से तत्कालीन राज्य की जनता और व्यापारी वर्ग भी अत्यंत प्रसन्न था। जिसके चलते वे कर के रूप में सोने के सिक्के और हाथी तक दिया करते थे। रानी दुर्गावती का गोंडवाना राज्य समृद्ध और संपन्न था, जिसकी चर्चा मुगल शासक अकबर तक पहुंच गई थी और उसने अब्दुल मजीद आसफ खां को रानी दुर्गावती के राज्य पर चढ़ाई करने भेजा। यह सारी बातें कपोल कल्पना नहीं हैं। अबुल फजल द्वारा लिखी गई आईन -ए-अकबरी में रानी दुर्गावती के शासन और कर-प्रणाली का उल्लेख है। वहीं कर्नल स्लीमन द्वारा संपादित ग्रंथ 'स्लीमन की जीवनी तथा उनकी उपलब्धियाँ' में संगृहीत है, कि जबलपुर में रानी दुर्गावती के राज्य के बारे में उसने क्या-क्या समझा और जाना।
प्राचीन लेखों में शासकों द्वारा भाग, सीता और हिरण्य नामक करों का वर्णन मिलता है। रानी दुर्गावती एक समान कर व्यवस्था लागू करना चाहती थी, इसलिए बिहार से आए महेश ठाकुर और आधारसिंह की सलाह पर भाग नामक कर प्रणाली लागू की। इसकी गणना भाग= औसत उपज/3 के आधार पर होती थी। जिसमें वनोपज और कृषि दोनों पर समान कर लगाया जाता था। यही व्यवस्था अन्य कुटीर और वर्ग व्यवसाय करने वाले व्यापारियों पर भी लागू थी। भाग कर के पहले वस्तु विनिमय प्रथा लागू थी।
80 हजार गांवों में एक कर प्रणाली थी। जिस प्रकार जीएसटी में केन्द्रीयकृत व्यवस्था के अंतर्गत हर राज्य को एक दर से कर देना निर्धारित किया है। ठीक उसी तरह रानी दुर्गावती के शासन में लगभग 80 हजार गांव भी भाग देते थे। उस दौरान गौंडवाना में 52 गढ़ों के जरिए शासन होता था। जबलपुर केन्द्र था, अन्य क्षेत्रों में सागर, सिवनी, मंडला, छिंदवाड़ा, भोपाल नरसिंहपुर, दमोह, होशंगाबाद, बिलासपुर और नागपुर भी गढ़ों में सम्मिलित थे। कर्नल स्लीमन ने एक गढ़ में 750 गांवों की संख्या बताई है। जबकि अबुल फजल ने रानी के शासन में गांवों की संख्या 80 हजार लिखी है।
पहले हर रियासत जनता से अपने हिसाब से कर वसूलती थी। इसका निश्चित भाग राजा को दिया जाता था। कराधान कहीं ज्यादा तो कहीं कम था। वह रियासतदार के स्वभाव और मर्जी पर आधारित था। रानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में इसमें बदलाव किया। उन्होंने पूरे राज्य में एक जैसे कर की घोषणा की। यह कर राज दरबार पर केन्द्रित हो गया। एक समान कर प्रणाली के तहत राजा को जो कर मिलता था, उसका उचित हिस्सा रियासतों को दिया जाता था। इससे रियासतों की ज्यादती और कर की विसंगतियों पर लगाम लगी।
गोंडवाना में विपुल पशुधन और उन्नत कृषि थी यहाँ का मोटा अनाज(मिलेट्स) पूरे भारत में हुआ।वहीं वस्त्र उद्योग, काष्ठ उद्योग, जड़ी बूटियों से तैयार औषधि उद्योग और शस्त्र उद्योग को बढ़ावा दिया गया। वनांचल में रहने वालों को लाख, औषधि निर्माण, शहद, चार-चिरोंजी और गोंद उद्योग को बढ़ाया गया।नगरीय क्षेत्र में आम, जामुन सीताफल और अमरुद के बगीचे विकसित किए तो ग्रामीण क्षेत्रों में साल, सागौन, खैर, तेंदू और महुआ आदि का संरक्षण और रोपण हुआ।जल संसाधन विकसित किए गए जिससे मत्स्य और सिंघाड़ा उद्योग उन्नत हुआ। रानी दुर्गावती के समय गोंडवाना साम्राज्य के स्वर्ण युग बनाने में कर प्रणाली और आर्थिक नीतियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
जल प्रबंधन और पर्यावरण की दृष्टि से वीरांगना रानी दुर्गावती की योजनाएं आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं जितनी उस काल में थीं। यूँ तो अपने साम्राज्य में 1000तालाब और 500 बावलियों का निर्माण कराया था परंतु जबलपुर में 52 सरोवर (तालाब) और 40 बावलियों का अद्भुत एवं अद्वितीय प्रबंधन किया गया था।
सरोवर 3 प्रकार के होते थे प्रथम - शिखर सरोवर - पहाड़ी सरोवर थे जो वनस्पतियों और वन्य जीवों की रक्षा के लिए थे। द्वितीय - तराई सरोवर - पहाड़ियों की तराई में जल संग्रहण हेतु बनाये गये थे। तृतीय - नगरीय सरोवर थे। तीनों प्रकार के सरोवर भूमिगत नहरों द्वारा एक दूसरे से जुड़े हुए थे, इस योजना को पंचासर योजना के नाम से जाना जाता है। जल संवर्धन के लिए वैज्ञानिक तकनीक का प्रयोग किया गया और भूजल विशेषज्ञ कीकर सिंह पानीकार का नाम उल्लेखनीय है।
जल प्रबंधन और पर्यावरण की दृष्टि से गोंडवाना साम्राज्य की व्यवस्थाएं संपूर्ण विश्व में अद्भुत एवं अद्वितीय रही हैं। गोंडवाना के महान् राजा संग्राम शाह ने महान् भूजल विशेषज्ञ कीकर सिंह पानीकार के सहयोग से जल शोधन और प्रबंधन की अनोखी प्रणाली को विकसित किया था।
जल प्रबंधन के अंतर्गत 3 प्रकार के तालाब निर्मित किए गए थे और उनको पंचसर (पंचासर) प्रणाली के अंतर्गत भूमिगत नहरों से जोड़ा गया था। पंचसर का तात्पर्य एक तालाब से 5 तालाबों का जुड़ाव था उसके बाद अन्य तालाब जुड़ते थे। यह योजना संग्राम सागर से प्रारंभ हुई थी। संग्राम सागर से सगड़ा ताल, बाल सागर, कोलाताल, देवताल और सूपाताल क्रमशः जुड़े हुए थे। तदुपरांत इन तालाबों से अन्य तालाब भूमिगत नहरों से जुड़े थे।इसलिए उन दिनों जबलपुर को जलहलपुर के नाम से भी जाना जाता था। संग्राम सागर स्थित महल 5 मंजिला था परंतु अब जीर्ण - शीर्ण हो गया है। भूतल पर 32 कमरों के बीच में एक विशाल कक्ष था जहाँ मंत्रिपरिषद की बैठक होती थीं। मदन महल से भूमिगत चार सुरंग निकलती थीं, जिसमें एक सुरंग महल में खुलती थी, जिसे आम खास कहा जाता है। तालाबों के निकट देवालयों और मठों की स्थापना की गई थी इसलिए तालाबों को अस्वच्छ करने वालों पर अर्थ दंड भी लगाया जाता था। गोंडवाना का जल प्रबंधन विश्व के लिए रोल मॉडल बन सकता है।
वीरांगना रानी दुर्गावती ने अपने शासनकाल में जलसंरक्षण के लिए प्राकृतिक साइफन व्यवस्था को अपनाया था। यही वजह है कि गढ़ा-कटंगा में जलसंरक्षण और जलनिकासी व्यवस्था श्रेष्ठ थी। आज जल संरक्षण के प्रति उदासीनता के कारण बड़े-बड़े शहरों में जलसंकट गहराता जा रहा है। जलसंरक्षण करना अब बड़ी चुनौती बनता जा रहा है और भविष्य में पानी को लेकर ही युद्ध होगा। इसलिए जलसंरक्षण के लिए चिंता करने की आवश्यकता है।
गोंडवाना की महारानी दुर्गावती का साम्राज्य लगभग 70 हजार वर्ग कि.मी. फैला था। रानी दुर्गावती के शासनकाल में केन्द्रीकृत शासन व्यवस्था थी, परंतु राजस्व और प्रशासन की सुविधा के लिए विकेन्द्रीकरण किया गया था। विपरीत परिस्थितियों में भी रानी ने न केवल साम्राज्य को संजोए रखा, बल्कि वे विश्व की पहली ऐसी पहली वीरांगनी थीं, जिन्होंने 52 युद्ध लड़े और 51 युद्ध में विजय प्राप्त की।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत जैंसे देशों को विश्व अर्थव्यवस्था के कुचक्र और अमेरिका की टेरिफ नीति से निपटना है, और विश्व व्यापी गहराते जल संकट का समाधान करना है, तो विश्व की श्रेष्ठतम वीरांगना रानी दुर्गावती की आत्मनिर्भर अर्थ नीति और जल प्रबंधन का मॉडल आज अनुकरणीय है।
डॉ.आनंद सिंह राणा,
श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत।