माँ लक्ष्मी का अवतरण, महारास और महर्षि वाल्मीकि जयंती की त्रिवेणी - शरद पूर्णिमा

Mon 06-Oct-2025,11:45 AM IST +05:30

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माँ लक्ष्मी का अवतरण, महारास और महर्षि वाल्मीकि जयंती की त्रिवेणी - शरद पूर्णिमा सामाजिक समरसता और धर्म चेतना का प्रतीक उत्सव
  • शरद पूर्णिमा: माँ लक्ष्मी का आगमन और अमृत वर्षा का पर्व.

  • भगवान श्रीकृष्ण के महारास की दिव्य रात्रि.

  • महर्षि वाल्मीकि जयंती: रामायण के रचयिता का स्मरण.

Madhya Pradesh / Jabalpur :

Jabalpur / शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा - कौन जागता है? क्योंकि माँ लक्ष्मी आज गृह प्रवेश करती हैं। रास पूर्णिमा के आलोक में आज समुद्र मंथन में माँ लक्ष्मी का अवतरण हुआ, भगवान् श्रीकृष्ण ने आज कामदेव के मद को चूर करने किया "महारास, चंद्रमा माँ लक्ष्मी का प्रिय भाई है, आज 16 कलाओं से युक्त सर्वशक्तिमान होगा और ऊर्जा स्वरुप अमृत वर्षा होगी इसलिए खीर रखें और ऊर्जा प्राप्त कर रसास्वादन करने का दिन है। अश्विन माह की पूर्णिमा तिथि 6 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी, वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन यानी 7 अक्टूबर को सुबह 09 बजकर बजकर 16 मिनट पर होगा। अतः 6 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा मनाई जाएगी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दृष्टि से पूर्णिमा अर्थात् पूर्णचंद्र, स्वच्छ, श्वेत, निर्दोष चंद्र अमृत की वर्षा अर्थात् संपूर्ण समाज परिवर्तन में अमृत की वर्षा है। अतः संघ शरद पूर्णिमा उत्सव अपने समाज को संगठित, उत्साहित, सफल व जागृत करने के उद्देश्य से मनाता है। वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
शरद पूर्णिमा का एक नाम कोजागरी पूर्णिमा भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है। एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है। केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है। चंद्रमा की सोलह कलाएँ क्रमशः अमृत, मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वस्थता), तुष्टि ( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख) होती हैं।

आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है। चंद्रमा को वेद-पुराणों में मन के समान माना गया है- चंद्रमा मनसो जात:। वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है। 

ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।

शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है। लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।

शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं। कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।

गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। उड़ीसा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं। शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।

शरद पूर्णिमा को ही आदिकवि, सामाजिक समरसता के पुरोधा शस्त्र और शास्त्रों के ज्ञाता विश्व के सर्वोच्च ग्रन्थ 'रामायण' के रचयिता - महर्षि वाल्मीकि की जयंती आती है। आज हमारा प्रश्न है और चुनौती है❓ उन वामपंथियों को, उन पाश्चात्य विद्वानों को, एक दल विशेष के समर्थक इतिहासकारों को और उन वर्णसंकरों को, तथाकथित सेक्यूलरों को, जिन्होंने भारतीय सामाजिक समरसता को जातिवाद और वर्णव्यवस्था की आड़ में दुर्भावना से प्रेरित होकर दुष्प्रचार किया और कर रहे हैं - ताकि अखंड भारत और उसकी विरासत खंड - खंड हो जाए!!! परंतु ऐंसा होनेवाला नहीं हैं हमारे पास महर्षि वाल्मीकि हैं जो इनको कभी सफल नहीं होने देंगे!!! प्रथमत: यह कि हिन्दुओं का सर्वोच्च धर्म ग्रंथ 'रामायण' - महर्षि वाल्मीकि ने ही लिखा है और वही शिरोधार्य है, तो फिर जातिवाद और वर्णव्यवस्था को लेकर विवाद कौन करा रहा है? सावधान रहिए! उपर्युक्त षड्यंत्रकारियों से। 

द्वितीयत:यह कि भगवान् श्रीराम की धर्मपत्नी माता सीता(जगत जननी) अयोध्या से एक प्रयोजनार्थ निष्कासित हुईं तो, गर्भावस्था में कहीं अन्यत्र भी जा सकती थीं, परंतु महर्षि वाल्मीकि के यहाँ ही क्यों गईं? उत्तर यही है महर्षि वाल्मीकि शस्त्र और शास्त्रों के महाज्ञाता थे और सहृदय संत - उनसे बेहतर कोई नहीं हो सकता था इसलिए सुरक्षा और भावी संतान के उज्ज्वल भविष्य के लिए महर्षि वाल्मीकि का आश्रम ही उपयुक्त था! इन सभी के साक्षी स्वयं महर्षि वाल्मीकि ही हैं। तो फिर यक्ष प्रश्न यही है कि वर्ण व्यवस्था और जातिवाद के सिद्धांतों की गलत व्याख्या कर और आचरण में लाने के लिए किसने षडयंत्र किया है? उत्तर हम ऊपर दे चुके हैं। आईये आज हम सभी शरद पूर्णिमा की पावन तिथि और महर्षि वाल्मीकि जयंती पर  शपथ लें कि तथाकथित वर्ण व्यवस्था और जातिवाद के तथाकथित षड्यंत्रपूर्वक रोपित विष वृक्षों को उखाड़ फेकेंगे।

डॉ. आनंद सिंह राणा,
विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति