महात्मा गांधी के विचारों की वर्तमान में प्रासंगिकता
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गांधी का हिन्द स्वराज: भविष्य की दिशा.
स्वदेशी और ग्राम स्वराज का महत्व.
शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गांधी के विचार.
Wardha / महात्मा गांधी जिन्होंने अपना जीवन सत्य-अहिंसा की कसौटी पर जिया। ऐसा इसलिए क्योंकि महात्मा गांधी सत्य और अहिंसा के पुजारी थे दुनिया आज तृतीय विश्व युद्ध की गिरफ्त में है दुनिया के कई देश एक दूसरे को खत्म करने पर तुले हैं ऐसे में दुनिया को महात्मा गांधी के विचारो की प्रासंगिकता समझ आती है और कोई विकल्प नजर नहीं आता। महात्मा गांधी संपूर्ण जीवन, दर्शन विचारों का एक व्यापक संग्रह है, जिसमें सत्याग्रह, अहिंसा, सर्वोदय, स्वदेशी, ट्रस्टीशिप जैसे प्रमुख विचार इतने गहन हैं कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी अपने आपको कभी अपमानित महसूस नहीं कर सकता। क्योंकि गांधी के विचारों को मानने वाले व्यक्ति में इतना आत्मबल होता है। ऐसे ही महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज पुस्तक के माध्यम से अपने विचारों को बताने का प्रयास किया है कि देश दुनिया के सामने जब कोई चुनौती आएगी तो गांधी की ओर दुनिया विकल्प के तौर पर देखेगी।
महात्मा गांधी की पुस्तक हिन्द स्वराज केवल बीसवीं सदी की परिस्थितियों का दस्तावेज़ नहीं है बल्कि यह इक्कीसवीं सदी की चुनौतियों का समाधान भी प्रस्तुत करती है।
गांधी ने इस कृति में औद्योगिकरण, पश्चिमी सभ्यता और सत्ता की हिंसात्मक प्रवृत्ति की आलोचना करते हुए स्पष्ट किया था कि असली स्वराज केवल राजनीतिक स्वतंत्रता से प्राप्त नहीं होगा बल्कि यह आत्मनिर्भरता, नैतिकता और ग्राम-आधारित जीवन पद्धति से ही संभव है। उन्होंने कपड़ा उद्योग का उदाहरण देकर बताया कि कैसे भारत की कपास इंग्लैंड जाकर मशीनों से कपड़ा बनता है और वही कपड़ा महँगे दामों पर भारत लौटता है, इससे भारतीय श्रम, कुटीर उद्योग और आत्मनिर्भरता नष्ट होती है। यह स्थिति आज भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और वैश्विक पूँजीवाद के रूप में हमारे सामने है जहाँ स्थानीय उत्पादन और कुटीर उद्योग बड़े बाज़ार के दबाव में समाप्त हो रहे हैं। गांधी का स्वदेशी और ग्राम स्वराज का विचार इस संकट का व्यावहारिक समाधान है क्योंकि यह स्थानीय उत्पादन, रोजगार और आत्मनिर्भरता को महत्व देता है। गांधी ने शिक्षा को केवल डिग्री या नौकरी तक सीमित नहीं रखा बल्कि उसे जीवन जीने की कला बताया। उनका मानना था कि सच्ची शिक्षा वही है जो चरित्र, श्रम और नैतिकता का निर्माण करे। आज की शिक्षा व्यवस्था जब पूरी तरह प्रतियोगी, बाज़ारोन्मुख और अंकों पर आधारित हो गई है, तब गांधी का यह विचार पहले से अधिक प्रासंगिक लगता है। स्वास्थ्य के बारे में गांधी का मानना था कि बीमारियों का संबंध हमारी जीवनशैली और आहार से है। उन्होंने प्राकृतिक जीवनशैली, सादा भोजन और संयमित दिनचर्या पर बल दिया। आज जब लोग तनाव, मोटापा और हृदय रोग जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे हैं, गांधी का स्वास्थ्य-दर्शन एक सशक्त विकल्प बनकर उभरता है। न्याय व्यवस्था पर गांधी की सोच भी आज मार्गदर्शन देती है। उन्होंने कहा कि छोटे-छोटे विवाद ग्राम स्तर पर सुलझाए जाएँ, ताकि लोगों को अदालतों और जटिल कानूनी प्रक्रियाओं में न उलझना पड़े। आज जब अदालतों में लाखों मुकदमे लंबित हैं और न्याय महँगा तथा विलंबित हो गया है, गांधी का ग्राम न्याय मॉडल एक व्यावहारिक उपाय प्रस्तुत करता है। राजनीति के क्षेत्र में गांधी ने पश्चिमी संसदीय व्यवस्था की आलोचना करते हुए कहा था कि यह सत्ता संघर्ष का अखाड़ा बन गई है। उन्होंने सत्य और अहिंसा पर आधारित सेवा भावी नेतृत्व की आवश्यकता बताई। वर्तमान भारतीय राजनीति में जब जातीयता, भ्रष्टाचार, धनबल और बाहुबल का वर्चस्व दिखाई देता है, तब गांधी का नैतिक नेतृत्व का आदर्श लोकतंत्र की सेहत के लिए सबसे ज़रूरी है। पर्यावरण के संदर्भ में भी गांधी की सोच आज के लिए अमृत है। उन्होंने कहा था कि “पृथ्वी हर व्यक्ति की ज़रूरत के लिए पर्याप्त है लेकिन हर व्यक्ति के लालच के लिए नहीं।” जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों की लूट से त्रस्त आज की दुनिया के लिए यह चेतावनी बेहद सार्थक है। गांधी का सादा जीवन और टिकाऊ विकास का दर्शन ही हमें इस संकट से बचा सकता है।
स्पष्ट है कि हिन्द स्वराज केवल इतिहास की पुस्तक नहीं बल्कि भविष्य की दिशा है। गांधी का स्वराज आज भी हमें यह सिखाता है कि असली आज़ादी तभी है जब राजनीति सेवा पर आधारित हो, शिक्षा चरित्र निर्माण करे, स्वास्थ्य प्राकृतिक जीवनशैली से जुड़ा हो, अर्थव्यवस्था स्थानीय उत्पादन पर टिकी हो और समाज अहिंसा व सत्य पर आधारित हो। वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री ने भी लोकल उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए वोकल फॉर लोकल के लिए लगतार आवाहन कर रहे हैं इसलिए महात्मा गांधी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने सौ वर्ष पहले थे और यदि हम इन्हें व्यवहार में लाएँ तो निश्चित ही एक न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और टिकाऊ समाज की स्थापना संभव है।
.....श्रेया पटेल
एम. ए. जनसंचार
म. गां. अं. हि. वि. वर्धा