देश के 53वें CJI बने जस्टिस सूर्यकांत : क्या हिंदी में शपथ लेकर दिया न्यायपालिका में भाषाई बदलाव का संकेत ?

Wed 26-Nov-2025,04:12 PM IST +05:30

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देश के 53वें CJI बने जस्टिस सूर्यकांत : क्या हिंदी में शपथ लेकर दिया न्यायपालिका में भाषाई बदलाव का संकेत ?
  • हिंदी में शपथ लेकर CJI सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट में अंग्रेज़ी के एकाधिकार को चुनौती देते हुए ऐतिहासिक संदेश दिया।

  • भाषाई बदलाव से न्याय प्रक्रिया आम नागरिकों के लिए अधिक सरल, पारदर्शी और समझने योग्य बनने की उम्मीद बढ़ी। विशेषज्ञों को उम्मीद कि यह पहल भारतीय भाषाओं में फैसले, अनुवाद प्रणाली और क्षेत्रीय भाषा न्यायालयों को गति देगी।

Delhi / New Delhi :

नई दिल्ली / भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने सोमवार को एक ऐसा कदम उठाया, जिसने भारतीय न्यायपालिका में नए अध्याय की नींव रख दी। अंग्रेज़ी को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की परंपरागत, लगभग अनिवार्य भाषा माना जाता रहा है, लेकिन CJI सूर्यकांत ने इस व्यवस्था को चुनौती देते हुए हिंदी में शपथ लेकर यह स्पष्ट कर दिया कि अब न्याय की भाषा जनता के और करीब लाई जाएगी।

राष्ट्रपति भवन में आयोजित सादे लेकिन ऐतिहासिक समारोह में जस्टिस सूर्यकांत ने जब हिंदी में शपथ ग्रहण की, तो पूरा देश इस पल का गवाह बना। यह क्षण सिर्फ व्यक्तिगत चुनाव नहीं था, बल्कि एक संस्थागत संदेश था न्यायपालिका बदलते भारत के अनुरूप खुद को ढालने के लिए तैयार है।
जहाँ देश की 70% से अधिक आबादी भारतीय भाषाओं में संवाद करती है, वहीं अदालतों में अंग्रेज़ी की अनिवार्यता हमेशा एक बाधा की तरह रही है। कई बार आम नागरिकों को अपने ही मामलों को ठीक से समझने के लिए वकीलों और अनुवाद पर निर्भर रहना पड़ता है।

CJI सूर्यकांत के कदम से यह उम्मीद जगी है कि आने वाले समय में निचली अदालतों से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक भारतीय भाषाओं को नए सिरे से महत्व मिलेगा। यह बदलाव न सिर्फ कानूनी प्रक्रिया को सरल बना सकता है, बल्कि न्याय को अधिक सुगम, पारदर्शी और जनसुलभ बनाने की दिशा में क्रांतिकारी कदम साबित हो सकता है।

यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ वर्षों में कई महत्वपूर्ण फैसले भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराए गए, लेकिन प्रक्रिया अभी शुरुआती अवस्था में है। विशेषज्ञों का मानना है कि CJI सूर्यकांत का यह कदम इस अभियान को नई ऊर्जा देगा।
उनकी यह पहल न्यायपालिका को "जनभाषा न्याय" के मॉडल की ओर ले जाने की शुरुआत मानी जा रही है जहाँ भाषा न्याय तक पहुँच का पुल नहीं, बल्कि बाधा न बने। इससे यह संकेत भी मिलता है कि आने वाले वर्षों में शीर्ष अदालतों में बहुभाषी अनुवाद प्रणाली, क्षेत्रीय भाषा न्यायालय और भारतीय भाषाओं में आदेश/फैसले नियमित होने की संभावनाएँ मजबूत हो रही हैं।

कुल मिलाकर, जस्टिस सूर्यकांत का यह निर्णय न्यायपालिका की भाषा को भारतीय बनाने की दिशा में सबसे बड़ा और ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है एक ऐसा कदम जिसकी गूंज आने वाले समय में दूर तक सुनाई देगी।