The Rise of COPD in India: भारत में प्रदूषण, धूम्रपान और घरेलू चूल्हों के धुएँ के कारण COPD के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही
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भारत में प्रदूषण, धूम्रपान और घरेलू चूल्हों के धुएँ के कारण COPD के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
विशेषज्ञों ने कहा कि समय पर पहचान, स्वच्छ ईंधन और प्रदूषण नियंत्रण से COPD के खतरे को काफी कम किया जा सकता है।
नई दिल्ली / भारत में क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (COPD) एक तेजी से बढ़ती सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती बनकर उभर रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि देश में बढ़ते प्रदूषण, धूलकणों के बढ़ते स्तर, धूम्रपान, घरेलू चूल्हों से निकलने वाला धुआँ और औद्योगिक क्षेत्रों में लंबे समय तक काम करने जैसे कारक इस बीमारी के मामलों में लगातार वृद्धि का कारण बन रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत COPD से होने वाली मौतों में विश्व में शीर्ष देशों में शामिल है।
शहरी क्षेत्रों में बढ़ते वाहन प्रदूषण और ग्रामीण इलाकों में ठोस ईंधन के उपयोग के कारण फेफड़ों से संबंधित बीमारियाँ अधिक फैल रही हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि COPD धीरे–धीरे विकसित होती है, पर इसका पता अक्सर तब चलता है जब फेफड़ों को गंभीर नुकसान हो चुका होता है। यही कारण है कि कई मरीज इलाज के लिए देर से आते हैं, जिससे बीमारी को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है।
चिकित्सकों ने चेतावनी दी है कि लगातार खांसी, सांस लेने में कठिनाई, सीने में जकड़न और बार–बार फेफड़ों में संक्रमण जैसे लक्षण आमतौर पर COPD के संकेत हो सकते हैं। भारत में अधिकांश लोग इस बीमारी को सामान्य खांसी–जुकाम समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे स्थिति और खराब हो जाती है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि वायु गुणवत्ता में सुधार, धूम्रपान पर रोक, औद्योगिक क्षेत्रों में सुरक्षा उपकरणों का उपयोग, घरों में स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना और नियमित स्वास्थ्य जांच से COPD के मामलों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। बढ़ते मामलों के मद्देनजर सरकार और स्वास्थ्य संस्थान जन-जागरूकता अभियान भी तेज कर रहे हैं। COPD भारत के लिए एक गंभीर स्वास्थ्य संकट बनता जा रहा है। यदि समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में इसका प्रभाव और भी अधिक भयावह हो सकता है।