550 छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ी, हिंदी विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली और प्रशासन पर उठते सवाल

Thu 20-Nov-2025,04:40 PM IST +05:30

ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |

Follow Us

550 छात्रों ने पढ़ाई बीच में छोड़ी, हिंदी विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली और प्रशासन पर उठते सवाल MGAHV Campus Photo
  • आंतरिक विवाद, सुविधाओं की कमी और विकल्पों की अधिकता-ड्रॉप आउट के संभावित कारण। 

  • सीयूईटी के बाद भी कई विभागों में छात्रों की संख्या बेहद कम। 

  • पिछले तीन साल से पीएचडी में एक भी प्रवेश नहीं, शोध कार्य प्रभावित। 

  • 2019 से 2024 के बीच 550 छात्रों ने बीच सत्र में पढ़ाई छोड़ी। 

Maharashtra / Wardha :

Wardha / महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, जो देश-विदेश में हिंदी भाषा के प्रसार और संवर्धन के लिए स्थापित हुआ है, लेकिन आए दिन विवादों में घिरे रहना विश्वविद्यालय का पठन-पाठन से ज्यादा जरूरी हो गया है। आरटीआई के माध्यम से हुए खुलासे में चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 से 2024 के बीच कुल 550 छात्र बीच सत्र में ही पढ़ाई छोड़ चुके हैं। हिंदी माध्यम से उच्च शिक्षा प्रदान करने वाला यह देश का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के बावजूद लगातार बढ़ते ड्रॉप आउट से कई प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे हैं। विश्वविद्यालय की स्थापना हिंदी साहित्य, भाषा, अनुवाद, जनसंचार, सामाज कार्य, नाटक और फ़िल्म, विधि(कानून), शिक्षाशास्त्र जैसे विविध विषयों में हिंदी माध्यम से शिक्षा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गई थी। देश ही नहीं, विदेश के छात्र भी यहाँ हिंदी सीखने आते हैं। लेकिन कुछ वर्षों से विदेशी छात्रों की संख्या में भी गिरावट आई है। इन सब बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि छह वर्षों में छात्रों का लगातार पढ़ाई छोड़ना शिक्षा की गुणवत्ता, सुविधाओं और विश्वविद्यालय के आंतरिक विवादों पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है? 
 
सबसे गंभीर स्थिति यह है कि पिछले तीन वर्षों से पीएचडी प्रवेश नहीं हुआ है, जबकि केंद्र सरकार हिंदी में शोध को बढ़ावा देने पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय के कुलसचिव ने छात्रों की संख्या कम क्यों है तो बताया कि सीयूईटी परीक्षा से प्रवेश मिलने के बाद भी कई विभागों में छात्रों की संख्या कम हुई है। लेकिन सवाल यह है कि 2019 से जिन 550 छात्रों ने विश्वविद्यालय से पढ़ाई बीच में छोड़ दी है उसका कारण क्या है? विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि प्रवेश प्रक्रिया में देरी, छात्रों का अन्य विकल्पों की ओर झुकाव भी ड्रॉप आउट का कारण हो सकते हैं। 
 
विश्वविद्यालय लगातार प्रत्येक वर्ष स्पॉट एड्मिशन, पहले आओ-पहले पाओ की तर्ज पर प्रवेश प्रक्रिया भी आयोजित कर रहा है, फिर विभागों में छात्र नहीं हैं। कुछ विभाग तो ऐसे हैं जिनमें 5 छात्रों से भी कम संख्या है। कुछ एक विभाग के शिक्षक रहते हुए एम. ए. का कोर्स बंद हो चुका है।
 
विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों की संख्या बढ़े या न बढ़े, पीएचडी प्रवेश हो या न हो, इस पर ज़ोर देता नजर नहीं आ रहा है लेकिन विश्वविद्यालय में शिक्षकों की संख्या बढ़ जाए इसके लिए लगातार विज्ञापन निकाला जा रहा है। महाराष्ट्र का एक मात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय होने के बावजूद क्या शिक्षा मंत्रालय का ध्यान इस विश्वविद्यालय की ओर क्यों नही जा रहा है? शिक्षा मंत्रालय को इस विषय पर संज्ञान लेकर विश्वविद्यालय के हित में काम करना चाहिए।