वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में फिर शुरू हुई सुनवाई

Thu 15-May-2025,11:53 AM IST +05:30

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वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में फिर शुरू हुई सुनवाई वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट में फिर शुरू हुई सुनवाई
  • वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई।

  • ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की वैधता पर सवाल।

  • मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई की नई बेंच कर रही सुनवाई।

Delhi / New Delhi :

सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई फिर से शुरू होगी। यह सुनवाई मुख्य न्यायाधीश बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ द्वारा की जाएगी। इससे पहले इस मामले की सुनवाई पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच कर रही थी, जो 13 मई को सेवानिवृत्त हो गए।

17 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट संकेत दिया था कि वह इस विवादास्पद कानून के कुछ प्रावधानों पर अस्थायी रोक लगाने पर विचार कर रहा है। खासतौर पर ‘वक्फ-बाय-यूजर’ की अवधारणा, वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व, और विवादित वक्फ संपत्ति की स्थिति को बदलने के लिए कलेक्टर को दिए गए अधिकारों पर कोर्ट की विशेष चिंता रही है।

‘वक्फ-बाय-यूजर’ का मतलब उन संपत्तियों से है जिनका उपयोग लंबे समय से मुस्लिम धार्मिक या मजहबी उद्देश्यों के लिए होता रहा है, चाहे वे संपत्तियाँ रजिस्टर्ड हों या नहीं। वक्फ अधिनियम 2025 इस प्रावधान को समाप्त कर देता है, जिससे उन संपत्तियों की वैधता पर सवाल खड़े हो सकते हैं जिन्हें परंपरागत रूप से वक्फ माना जाता रहा है।

पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने इस बिंदु पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि 'वक्फ-बाय-यूजर' को रजिस्टर करना काफी कठिन है, इसलिए इसमें अस्पष्टता बनी रहती है। उन्होंने यह भी माना कि इस व्यवस्था का दुरुपयोग संभव है, लेकिन इसके साथ-साथ वास्तविक वक्फ उपयोग भी मौजूद है, जिससे इन सभी मामलों को एक ही दृष्टिकोण से नहीं देखा जा सकता।

सुनवाई कर रही पहले की बेंच में जस्टिस पी वी संजय कुमार और के वी विश्वनाथन भी शामिल थे। अब इस मामले की अगुवाई सीजेआई बी आर गवई करेंगे।

बी आर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की और बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस के साथ-साथ सरकारी वकील, अतिरिक्त लोक अभियोजक, और नगर निगमों के स्थायी वकील जैसे कई पदों पर कार्य किया।

यह मामला न केवल धार्मिक संपत्तियों से जुड़ा है, बल्कि भारत की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था और संपत्ति अधिकारों से संबंधित संवैधानिक विमर्श का भी महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आगे चलकर वक्फ प्रबंधन और विवाद समाधान की दिशा तय कर सकता है।