दलित प्रोफेसर एल कारुण्यकरा को कब मिलेगा न्याय, कुछ ही माह में निलंबन के पूरे हो जाएंगे दो वर्ष
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प्रो. एल. कारुण्यकरा और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान
हाई कोर्ट ने मंत्रालय की नियुक्ति को अवैध बताया, फिर भी प्रोफेसर को निलंबित किया गया।
दलित प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा के VC चार्ज विवाद ने शिक्षा मंत्रालय की भूमिका पर प्रश्न उठाए।
विश्वविद्यालय प्रशासनिक पारदर्शिता और न्याय के मुद्दे फिर से चर्चा में।
वर्धा / आए दिन चर्चा में किसी न किस कारण रहने वाला महाराष्ट्र का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय एक बार फिर चर्चा में बना हुआ है। आज हम बात करेंगे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के सबसे वरिष्ठ दलित प्रोफेसर एल. कारुण्यकरा की। इसके लिए विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति रजनीश शुक्ल ने कुछ विवादों के चलते जब इस्तीफा देकर चले गए, तब विश्वविद्यालय के एक्ट के अनुसार विश्वविद्यालय के सीनियर प्रोफेसर को प्रभारी कुलपति का चार्ज दिया जाना था, ऐसे में प्रो. एल. कारुण्यकरा ही प्रोफेसरों के सूची में वरिष्ठ थे तो चार्ज उनको दिया गया। लेकिन दलित होने के नाते यह बात शिक्षा मंत्रालय को नागवार गुजरी और नागपुर आई आई एम के निदेशक को पत्र जारी कर प्रभारी कुलपति बना दिया गया। मंत्रालय के इस आदेश को प्रो. एल. कारुण्यकरा ने नागपुर उच्च न्यायालय में चुनौती दी। इस चुनौती में प्रो. एल. कारुण्यकरा को जीत मिली और मंत्रालय को हार। माननीय उच्च न्यायलय ने मंत्रालय के आई आई एम के निदेशक को कुलपति का प्रभारी चार्ज दिया जाना, फर्जी करार दिया। अब बारी थी कि विश्वविद्यालय का प्रभारी कुलपति कौन बनेगा? जो कि नियमानुसार विश्वविद्यालय का वरिष्ठ प्रोफेसर ही बन सकता है।
प्रोफेसर कारुण्यकरा ने विश्वविद्यालय की नियमावली के अनुसार कुलपति का कार्यभार लेने की सूचना मंत्रालय को भेज दी। लेकिन उसे शिक्षा मंत्रालय मानने को तैयार नहीं है। बल्कि शिक्षा मंत्रालय ने इन कार्रवाइयों को ‘मनमानी’ माना और 5 अप्रैल को कार्यकारी परिषद की बैठक बुलाने और कारुण्यकरा के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक पत्र लिखा। इस पत्र में कहा गया है कि कारुण्यकरा ने ‘स्वयं कई मनमाने पत्र-व्यवहार /आदेश’ जारी किए हैं। यह सब दर्शाता है कि शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और शिक्षा मंत्रालय को दलित प्रोफेसर का कुलपति की कुर्सी पर बैठना नागवार गुजरी।
इतना सब होने के बाद कार्य परिषद से प्रो. एल. कारुण्यकरा को निलंबित कर दिया गया और यह सब भारत के प्रधानमंत्री मोदी के न्याय की गारंटी को धूल में मिलने के लिए काफी है। क्या प्रोफेसर एल कारुण्यकरा का दलित होना और एक उच्च शिक्षाविद्द होना इस सरकार को स्वीकार नहीं है। देखना यह होगा कि शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और शिक्षा मंत्रालय इस मुद्दे पर क्या कदम उठाएगा।