गुरु तेग बहादुर : 350वां शहीदी दिवस, हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहीद हुए

Mon 24-Nov-2025,04:57 PM IST +05:30

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 गुरु तेग बहादुर : 350वां शहीदी दिवस, हिंदू धर्म की रक्षा के लिए शहीद हुए Guru Teg Bahadur sacrifice
  • गुरु तेग बहादुर का बलिदान औरंगजेब के अत्याचारों के खिलाफ.

  • सिख धर्म और हिंदुत्व की रक्षा में उनका योगदान.

  • शीशगंज गुरुद्वारे में उनकी शहादत का ऐतिहासिक महत्व.

Madhya Pradesh / Jabalpur :

Jabalpur / विश्व इतिहास में स्वधर्म, स्वदेश मानवीय मूल्यों, मानवाधिकारों, "स्व" के आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग़ बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय और कालजयी है। इसलिए उन्हें सृष्टि की चादर, हिंद दी चादर, भारत की ढाल और मानवता के पिता, जैंसी उपमाएं दी गई हैं।

सिखों (सिक्खों) के नौवें गुरु तेग बहादुर जी का जन्म, सिख नानकशाही पंचांग (जंतरी), संवत 557 के अनुसार, वैशाख कृष्ण पंचमी को हुआ था। गुरु तेगबहादुर सिंह के पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह था। उनके बचपन का नाम त्यागमल था। गुरु तेग बहादुर बाल्यावस्था से ही संत, विचारवान, उदार प्रकृति, निर्भीक स्वभाव के थे। हिंदुत्व और मानवता की रक्षा के लिए उन्होंने 11 नवंबर, सन् 1675 को बलिदान दिया था, जिसे नानकशाही पंचांग में तिथि के अनुसार 24 नवम्बर निर्धारित किया गया है। भारत की अस्मिता के लिए उनके बलिदान के बारे में यह कहा गया है कि- "वे झुके नहीं, बलिदान किया स्‍वीकार"। 

गुरु तेग बहादुर, महापापी और महाक्रूर औरंगजेब के सामने हिन्दुत्व की रक्षा के लिए किसी कीमत पर नहीं झुके, इसका परिणाम यह हुआ क‍ि उनका सिर कलम करवा दिया गया। महाधूर्त और मक्कार औरंगजेब ने उन्‍हें जबरन मुस्लिम धर्म अपनाने को कहा था, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से भरी सभा में स्पष्ट मना कर दिया। गुरु तेग बहादुर के बलिदान के चलते उन्हें 'हिंद दी चादर' के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि दिल्ली का 'शीशंगज गुरुद्वारा' वही जगह है जहां औरंगजेब ने लालकिले के प्राचीर पर बैठ उनका सिर कलम करवाया था। 

वस्तुत: औरंगज़ेब, इब्लीस का अवतार था। भारतीय इतिहास में औरंगजेब का नाम आते ही भारत में एक ऐसे महापापी, महाक्रूर मक्कार, धूर्त और नर पिशाच मुगल शासक की छवि उभरती है, जो भारत के इतिहास के लिए कलंक है।

औरंगजेब भारत के इतिहास का वह दुर्दांत हत्यारा था जिसने अपने भाइयों अपने पुत्रों को भी ना छोड़ा और अपने पिता शाहजहां की दुर्गति कर दी थी। वह पूरे हिंदुस्तान से हिंदू धर्म को मिटाकर इस्लाम धर्म फैलाना चाहता था। औरंगजेब ने हिंदुस्तान में मथुरा, गुजरात, उड़ीसा, बनारस, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश समेत पूरे भारत में मंदिरों की तोड़फोड़ करा दी थी।

औरंगजेब ने हिंदुओं पर अधिकतम कर लगा दिया था, तथा अपने अधिकारियों को आदेश दिया था, कि हिंदुओं के माथे से तिलक मिटा दिए जाएं और उनके जनेऊ उतार कर ज़बरदस्ती मुसलमान बना दिया जाए। औरंगजेब का आदेश था कि हर रोज, सवा मन जनेऊ (लगभग 46 किलो) हिंदुओं के गले से उतारकर (अर्थात उनका धर्म परिवर्तन कर या उन्हें मारकर) उसके सामने पेश किए जाएं। यह आदेश तेजी से लागू होने लगा परिणामस्वरुप अनेक हिंदुओं ने इस्लाम कबूल कर लिया जिन्होंने विरोध किया उनको मौत के घाट उतार दिया गया।

ऐसी ही विषम परिस्थितियों में 500 कश्मीरी पंडितों का एक जत्था, गुरु तेग बहादुर के दरबार में आनंदपुर गया और उन्हें औरंगजेब की दर्दनाक अत्याचारों द्वारा हिंदुओं को मुसलमान बनाने से अवगत कराया। उनके मुखिया पंडित किरपा राम ने गुरु जी से फरियाद की -"दीनबंधु! हमें बादशाह, औरंगजेब के जुल्म से बचाओ, उसने हुक्म दिया है कि हिंदुओं को मुसलमान बना दिया जाए।" गुरुजी इस्लाम के विरुद्ध नहीं थे, परंतु बलपूर्वक किसी को धर्म त्यागने के लिए मजबूर किया जाए, यह बर्दाश्त नहीं था।

यह वार्तालाप चल रहा था, कि गुरुजी के पुत्र गोबिंद राय जी आ पहुंचे और उन्होंने अपने पिता से पूछा कि- "पिताजी, यह कौन है? आप क्या सोच रहे हैं?"
"बेटा !औरंगजेब हिंदू धर्म मिटाना चाहता है। उसने हिंदुओं को मुसलमान बनाने का हुक्म दे दिया है।"- गुरु जी ने कहा।
"यह क्यों पिताजी ?"बालक गोबिंद ने पूछा। 
गुरुजी - "औरंगजेब समझता है कि इस्लाम ही सच्चा मजहब है। "बालक गोबिंद -"पिताजी, फिर उसके अत्याचारों को कैसे रोका जाए।"
गुरुजी - "किसी महापुरुष की कुर्बानी से ही औरंगजेब के जुल्म को रोका जा सकता है।"
"पिताजी, आपसे बड़ा महापुरुष और कौन है, जो इतनी बड़ी कुर्बानी दे सके।" बाल गोबिंद ने सहजता से कहा।

गुरुजी, अपने बेटे के इस निडरता साहसिक उत्तर से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने कुर्बानी देने का मन बना लिया, उन्होंने उदास बैठे कश्मीरी पंडितों से कहा "जाओ अपने इलाके की हाकिम इफ्तिखार खान से कहो कि वह पहले गुरु तेग बहादुर को इस्लाम कबूल करने के लिए मनाए, फिर हम सब मुसलमान बन जाएंगे।" दुखी और उदास कश्मीरी पंडितों की जान में जान आई।

कश्मीरी पंडितों ने गुरु जी को प्रणाम किया और शीघ्र ही इफ्तिखार खान को गुरु जी का संदेश सुना दिया। इफ्तिखार खान ने अविलंब औरंगजेब को सूचित किया। औरंगजेब आग बबूला हो गया और उसने गुरु तेग बहादुर को गिरफ्तार कर फौरन दिल्ली लाए जाने का फरमान जारी किया तथा गुरुजी की गिरफ्तारी पर इनाम भी घोषित कर दिया।

अतः यह स्पष्ट है, कि गुरु तेग बहादुर की औरंगजेब से जंग तब हुई, जब वह हिंदू धर्म के विनाश पर आमादा था और कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने पर तुला हुआ था। कश्मीरी पंडित इसका विरोध कर रहे थे, इसके लिए उन्होंने गुरु तेग बहादुर की सहायता ली, इसके बाद गुरु तेग बहादुर ने उनकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व अपने सिर से ले लिया। गुरु तेग बहादुर अपने तीन शिष्यों के साथ मिलकर आनंदपुर से दिल्ली के लिए चल पड़े।

इतिहासकारों का मानना है कि मुगल बादशाह ने उन्हें गिरफ्तार करवा कर तीन-चार महीने तक कैद करके रखा और पिजड़े में बंद करके उन्हें सल्तनत की राजधानी दिल्ली लाया गया। यह सब व्यर्थ ही गया क्योंकि औरंगजेब के आगे नहीं झुके गुरु तेग बहादुर। 

औरंगजेब की सभा में गुरु तेग बहादुर और उनके शिष्यों को पेश किया गया, जहां उनके ही सामने उनके शिष्यों के सिर कलम कर दिये गए लेकिन उनकी आंखों में डर का तिनका तक नहीं था। वहीं उनके भाई मति दास के शरीर के दो टुकड़े कर डाले, भाई दयाल सिंह और तीसरे भाई सति दास को भी दर्दनाक अंत दिया गया, लेकिन उन्‍होंने अपनी बहादुरी का परिचय देते हुए इस्लाम धर्म कबूल करने से इंकार कर दिया।

दिल्ली के चांदनी चौक स्थित शीशगंज गुरुद्वारा वह स्थान है, जहां 11 नवंबर, 1675 को औरंगजेब ने लाल किले के प्राचीर पर बैठ, उनका सिर कलम करवाया था। यह तिथि नानकशाही जंतरी के अनुसार 24 नवम्बर अवधारित है।

ज्ञातव्य हो कि अपनी शहादत से पहले ही गुरु तेग बहादुर ने 8 जुलाई, 1675 को गुरु गोविंद सिंह को सिखों का 10वां गुरु घोषित कर दिया था। विदित हो, कि गुरु तेग बहादुर ने "करतारपुर की जंग" में मुगल सेना के विरुद्ध लोहा लिया था इसलिए, उनका नाम गुरु तेग बहादुर पड़ा था। वहीं 16 अप्रैल 1664 में उन्हें सिखों के नौवें गुरु बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनके जीवन का प्रथम और आखिरी उपदेश यही था कि 'धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है।"

यह कितना दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिन्दू धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने महान् सिख गुरुओं के त्याग और बलिदान की विरासत को सिख समाज के कतिपय भटके ख़ालिस्तानी सिख जन धूमिल कर रहे हैं। 

खालिस्तान की मांग करने वाले मतांतरित सिक्ख,ईसाइयों और मुसलमानों से मिलकर हिंदुत्व को नष्ट करने के लिए आक्रमण कर रहे हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण कनाडा से मिलता है, जहां हाल ही में खालिस्तानी सिखों ने हिंदू मंदिर पर आक्रमण कर, हिंदुओं को मारा।

खालिस्तानी चरमपंथी पन्नू ने अयोध्या में स्थित श्री राम मंदिर को उड़ाने की धमकी दी है। ये ख़ालिस्तानी चरमपंथी, उन्हीं मुसलमानों की गोद में जाकर बैठ रहे हैं, जिन्होंने 3 सिख गुरुओं क्रमशः गुरु अर्जन देव, गुरु तेग बहादुर, गुरु गोविंद सिंह की हत्या की और सिखों के सर्वनाश के लिए तत्पर रहे। इसलिए गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस की मार्मिक किंतु वीरोचित गाथा का लोकव्यापीकरण होना ही चाहिए, तभी भटके हुए खालिस्तानी सिख भी अपने घर लौटेंगे और कतिपय  सिखों का भटकना बंद होगा। भगवान इन्हें सद्बुद्धि दे। गुरु तेग बहादुर कहते थे, कि "हार और जीत आपकी सोच पर निर्भर है..मान लो तो हार है, ठान लो तो जीत है।"  

डॉ आनंद सिंह राणा,

श्रीजानकीरमण महाविद्यालय एवं इतिहास संकलन समिति महाकौशल प्रांत

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