काशी तमिल संगमम् 4.0 में थंजावुर थलैयाट्टी बोम्मई बनी आकर्षण, पारंपरिक कला ने दर्शकों को मोहा
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थंजावुर की छह पीढ़ियों पुरानी थलैयाट्टी बोम्मई कला काशी तमिल संगमम् 4.0 में लोगों का मुख्य आकर्षण बनी, बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचे।
श्री हरि प्रसंथ बूपाथी द्वारा संचालित स्टॉल 28 पर प्रदर्शित गुड़िया बृहदीश्वर मंदिर की स्थापत्य शैली से प्रेरित और अंतरराष्ट्रीय बाजार में लोकप्रिय हैं।
कारीगर कार्यशालाओं और सरकारी मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण केंद्र के माध्यम से इस पारंपरिक हस्तशिल्प को नई पीढ़ी तक पहुँचाने की सक्रिय पहल कर रहे हैं।
Kashi/ काशी तमिल संगमम् 4.0 में परंपरा और सांस्कृतिक विरासत का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है। नमो घाट पर आयोजित भव्य प्रदर्शनी में स्टॉल संख्या-28 ‘थंजावुर थलैयाट्टी बोम्मई’ विशेष आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, जहाँ दक्षिण भारत की सदियों पुरानी कला अपनी जीवंत उपस्थिति दर्ज करा रही है। इस स्टॉल का संचालन तमिलनाडु के थंजावुर से आए युवा हस्तशिल्प उद्यमी श्री हरि प्रसंथ बूपाथी कर रहे हैं, जो पहली बार वाराणसी पहुंचे हैं और अपने साथ छह पीढ़ियों से संरक्षित इस पारंपरिक गुड़िया कला की विरासत लेकर आए हैं।
थलैयाट्टी बोम्मई, जिन्हें हिलने-डुलने वाली गुड़िया के नाम से भी जाना जाता है, दक्षिण भारतीय हस्तशिल्प की एक अत्यंत लोकप्रिय शैली है। इन गुड़ियों की विशेषता यह है कि इनका ऊपरी हिस्सा स्थिर रहता है जबकि निचला हिस्सा हिलता है, जिससे एक आकर्षक प्राकृतिक गति दिखाई देती है। इनके डिजाइन थंजावुर के ऐतिहासिक बृहदीश्वर मंदिर की स्थापत्य शैली से प्रेरित होते हैं। यही कारण है कि इन्हें आपदा-प्रतिरोधक संरचना का प्रतीक भी माना जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे मंदिर की प्रतिष्ठित इमारत सदियों से प्राकृतिक चुनौतियों का सामना करती रही है।
इन गुड़ियों में मुख्य रूप से राजा-रानी की आकृतियाँ बनाई जाती हैं, जो दक्षिण भारतीय संस्कृति, शाही परंपरा और लोकनृत्यों की भव्यता को दर्शाती हैं। श्री हरि प्रसंथ बूपाथी बताते हैं कि उनका पूरा व्यवसाय B2B मॉडल पर आधारित है और वे अमेरिका, कनाडा सहित कई देशों में इन गुड़ियों का निर्यात करते हैं। उनकी कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान इस परंपरा की मजबूती और वैश्विक आकर्षण को दर्शाती है।
हरि प्रसंथ न केवल उद्यमी हैं, बल्कि कला संरक्षण के प्रति गहरी प्रतिबद्धता भी रखते हैं। वे स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएँ आयोजित कर युवाओं को इस परंपरागत शिल्प की बारीकियाँ सिखाते हैं। इसके अलावा, वे केंद्र सरकार के हस्तशिल्प प्रशिक्षण मंच पर एक मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण केंद्र भी चलाते हैं, जहाँ नए कारीगरों को इस दुर्लभ कला में प्रशिक्षित किया जाता है।
काशी तमिल संगमम् 4.0 के दौरान उनके स्टॉल पर भारी भीड़ देखने को मिली। बड़ी संख्या में लोग, पर्यटक और स्थानीय नागरिक इन हस्तनिर्मित गुड़ियों को देखकर न केवल उत्साहित दिखे, बल्कि कई आगंतुकों ने इन्हें अपने लिए और उपहार के रूप में खरीदने में भी गहरी रुचि दिखाई। यह प्रदर्शनी न केवल काशी और तमिलनाडु के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत कर रही है, बल्कि पारंपरिक भारतीय कला को वैश्विक पटल पर आगे बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।