बच्चों की मोबाइल आदत पर न बिगाड़ें संबंध, प्यार से समझाएँ तभी बदलेंगे व्यवहार
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
बच्चों के अत्यधिक मोबाइल उपयोग से मानसिक स्वास्थ्य, नींद और पढ़ाई पर नकारात्मक असर बढ़ रहा है, जिसे प्यार और संवाद से ही नियंत्रित किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि माता-पिता द्वारा डांटने या झगड़ा करने से बच्चे मोबाइल छिपाकर इस्तेमाल करते हैं, जिससे संबंध और व्यवहार दोनों बिगड़ते हैं।
सकारात्मक संवाद, स्पष्ट नियम, और वैकल्पिक गतिविधियाँ बच्चों में जिम्मेदार डिजिटल आदतें विकसित करती हैं और परिवार में सामंजस्य बढ़ाती हैं।
एजीसीएनएन/ आज के डिजिटल युग में मोबाइल फ़ोन बच्चों का सबसे आकर्षक उपकरण बन चुका है। ऑनलाइन गेम, रील्स, चैटिंग ऐप्स और लगातार बढ़ते डिजिटल कंटेंट ने बच्चों को स्क्रीन की दुनिया में इतना व्यस्त कर दिया है कि माता-पिता के लिए उन्हें संतुलित उपयोग की ओर मोड़ना दिन-ब-दिन चुनौती बनता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों से मोबाइल को लेकर झगड़ा करना, डाँटना या संबंध बिगाड़ना कभी समाधान नहीं है। इसके बजाय, प्यार, संवाद और सकारात्मक आदत निर्माण ही वह तरीका है जो बच्चों की जीवनशैली, पढ़ाई, नींद और मानसिक स्वास्थ्य को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकता है।
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, जब माता-पिता बच्चों पर मोबाइल कम करने का दबाव डालते हैं, तो बच्चे विद्रोही व्यवहार दिखा सकते हैं। कई बार बच्चे मोबाइल छिपाकर इस्तेमाल करने लगते हैं, जिससे स्थिति और खराब हो जाती है। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि लगातार तनाव और डांट से बच्चा भावनात्मक रूप से दूर हो सकता है, जिसका प्रभाव भविष्य के व्यवहार पर भी पड़ता है।
समाधान संबंधों में नहीं, संवाद में है।
कुछ अध्ययन बताते हैं कि जिन बच्चों के माता-पिता उनसे खुलकर बातचीत करते हैं और स्पष्ट नियम बनाते हैं, वे अधिक अनुशासित और जिम्मेदार डिजिटल व्यवहार विकसित करते हैं। मोबाइल उपयोग का समय तय करना, विकल्प के रूप में रोचक गतिविधियाँ देना, और तकनीक का सही उपयोग सिखाना बच्चों को संतुलन की ओर ले जाता है।
विशेषज्ञ यह भी सुझाव देते हैं कि माता-पिता खुद भी “डिजिटल रोल मॉडल” बनें। यदि माता-पिता लगातार मोबाइल में व्यस्त रहते हैं, तो बच्चे स्वाभाविक तौर पर उसी व्यवहार की नकल करते हैं। इसलिए, एक स्वस्थ घरेलू डिजिटल वातावरण बनाना बेहद जरूरी है। स्कूलों और शिक्षकों ने भी चेतावनी दी है कि अत्यधिक स्क्रीन समय बच्चों की एकाग्रता, नींद, भाषा कौशल, शारीरिक गतिविधि और सामाजिक कौशल को प्रभावित करता है। इसके कारण चिड़चिड़ापन, आलस, आंखों की कमजोरी और मोटापा जैसी समस्याएँ भी बढ़ सकती हैं।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बच्चों को मोबाइल से दूर करने का तरीका “बदलाव” नहीं, “विकल्प” होना चाहिए। जैसे आउटडोर गतिविधियाँ, कहानियाँ, क्राफ्ट, सामाजिक खेल और परिवार के साथ समय। इन गतिविधियों के बढ़ने से बच्चे स्वाभाविक रूप से स्क्रीन टाइम कम करने लगते हैं। अंत में, विशेषज्ञों का यही कहना है कि बच्चे को मोबाइल से दूर करना संभव है, लेकिन गुस्से से नहीं, प्यार, समझ और संवाद से। यही तरीका बच्चों और माता-पिता दोनों के बीच स्वस्थ संबंध और स्वस्थ डिजिटल आदतें विकसित करेगा।