NHRC ने मानवाधिकार रक्षकों की सुरक्षा और न्याय सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दोहराई
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NHRC ने मानवाधिकार रक्षकों की सुरक्षा और बिना भय कार्य करने की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए समर्पित तंत्र और संस्थागत समर्थन दोहराया।
दिल्ली घोषणापत्र के माध्यम से एशिया–प्रशांत देशों ने मानवाधिकार रक्षकों की भूमिका की अंतरराष्ट्रीय मान्यता और सहयोग को नई दिशा दी।
खुली सुनवाई और शिविर बैठकों के जरिए एनएचआरसी ने राज्यों के साथ समन्वय बढ़ाकर शिकायत निवारण व मानवाधिकार रक्षा तंत्र को मजबूत किया।
Delhi/ संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 9 दिसंबर 1998 को अपनाए गए मानवाधिकार रक्षकों पर घोषणापत्र की वर्षगांठ के अवसर पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने देश और दुनिया भर के मानवाधिकार रक्षकों के प्रति अपनी निष्ठा और समर्थन को दोहराया है। यह घोषणापत्र मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं के संवर्धन एवं संरक्षण की दिशा में कार्य करने वालों के अधिकारों को वैश्विक मान्यता प्रदान करता है।
NHRC ने कहा कि मानवाधिकार रक्षक न्याय, स्वतंत्रता और समानता की लड़ाई का महत्वपूर्ण आधार हैं और समाज के अंतिम व्यक्ति की आवाज़ को मंच देने में उनकी भूमिका अत्यंत केंद्रीय है। आयोग ने आश्वासन दिया कि भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करने वाले व्यक्तियों और समूहों के अधिकारों को हर स्तर पर संरक्षित किया जाएगा और वे बिना किसी भय, दबाव या पक्षपात के अपना मिशन जारी रख सकें, इसके लिए सभी आवश्यक सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
अपने 32वें स्थापना दिवस (16 अक्टूबर 2025) पर एनएचआरसी ने महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भूमिका को विशेष रूप से सराहा और बताया कि मानवाधिकार रक्षकों से संबंधित मामलों को प्राथमिकता से निपटाया जाता है। आयोग ने मानवाधिकार रक्षकों के लिए फोकल प्वाइंट, एक समर्पित ईमेल, वार्षिक रिपोर्ट में अलग अध्याय और विभिन्न संवादात्मक मंच विकसित करके उनके नेटवर्क और आवाज़ को मजबूत किया है।
आयोग ने हाल ही में ओडिशा के भुवनेश्वर और तेलंगाना के हैदराबाद में ‘खुली सुनवाई और कैंप बैठकें’ आयोजित कीं, जिनमें नागरिक समाज समूहों और शिकायतकर्ताओं से प्रत्यक्ष संवाद किया गया और राज्य सरकारों को आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए गए। इसके अलावा, एशिया–प्रशांत देशों के 28वें सम्मेलन से दिल्ली घोषणापत्र भी जारी किया गया, जिसमें मानवाधिकार रक्षकों की अहम भूमिका को अंतरराष्ट्रीय सहमति मिली।
एनएचआरसी ने कहा कि मानवाधिकार रक्षकों के प्रयासों ने कमजोर, हाशिए पर बसे और वंचित समूहों की आवाज़ को न केवल आगे बढ़ाया है बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि समाज में कोई भी व्यक्ति पीछे न रह जाए।