लोकसभा में वंदे मातरम् बहस: गौरव गोगोई के बयान ने बंगाल की विरासत और राष्ट्रगीत की राजनीति में नई हलचल मचा दी
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
Vande-Mataram-Debate_-Gaurav-G-Gogoi-Speech
वंदे मातरम् और आनंदमठ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर जोर।
बंगाल की महान विभूतियों के योगदान का उल्लेख।
स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांतिकारी गीतों और नारों की भूमिका पर प्रकाश।
Delhi / वंदे मातरम् पर लोकसभा में गोगोई का बयान, बंगाल की विरासत और राष्ट्रगीत की राजनीति को लेकर नया विवाद, इतिहास और वर्तमान टकराव के बीच बहस तेज हुई। गौरव गोगोई ने कहा-
मैं वंदे मातरम् पर हो रही महत्वपूर्ण चर्चा में शामिल होने के लिए खड़ा हूं, और सबसे पहले उस पवित्र बंगाल भूमि को प्रणाम करता हूं, जिसने इस देश को वह महान व्यक्तित्व दिए, जिनकी विचारधारा और संघर्ष आज भी हमारे दिलों में ऊर्जा भरते हैं। यह वही भूमि है जहां से ईश्वरचंद्र विद्यासागर, राजा राममोहन रॉय, बंकिम चंद्र चटर्जी, स्वामी विवेकानंद, अरबिंदो घोष, खुदीराम बोस, कवि नज़रुल इस्लाम, रवींद्रनाथ टैगोर और नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे महानायक उभरे। बंगाल की मिट्टी में एक अद्भुत शक्ति है—ऐसी शक्ति जिसने राष्ट्र को न केवल राष्ट्रगान दिया, बल्कि राष्ट्रगीत भी दिया।
उस समय के कवियों, लेखकों और चिंतकों ने ऐसे शब्द गढ़े, ऐसी कविताएँ और गीत रचे जिनके साहसिक भावों ने लाखों स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेजी शासन की यातनाएँ झेलने की ताकत दी। वंदे मातरम् से लेकर रवींद्रनाथ टैगोर के Where the mind is without fear, "झंडा ऊंचा रहे हमारा", "सरफ़रोशी की तमन्ना", "इंकलाब जिंदाबाद", "करो या मरो", "जय हिंद", "सत्यमेव जयते" और "भारत छोड़ो" जैसे नारे केवल शब्द नहीं थे, बल्कि वे जलते हुए मशाल थे जिन्होंने देश की आत्मा को जगाया।
मंगल पांडे के विद्रोह की असफलता के बाद देश में गहरी बेचैनी थी। अंग्रेजों के जुल्म बढ़ते जा रहे थे, जनता त्रस्त थी, और युवाओं में रोष उबल रहा था। ऐसे कठिन समय में बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1872 में वंदे मातरम् की शुरुआती दो पंक्तियाँ लिखीं, जो बाद में हमारे राष्ट्रगीत का आधार बनीं। लगभग 9–10 साल बाद जब उन्होंने आनंदमठ लिखा, तब उन्हीं पंक्तियों को विस्तार देते हुए उन्होंने पूरा गीत रचा, जो स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा बन गया।
जब आनंदमठ लिखा जा रहा था, तब ईस्ट इंडिया कंपनी किसानों पर इतने भारी कर थोप चुकी थी कि उनका जीवन लगभग असहनीय हो गया था। वही पीड़ा, वही संघर्ष, और वही अन्याय बंकिम चटर्जी की लेखनी में धधकते हुए दिखाई देता है। उनकी रचना ने उस समय के असंख्य युवाओं के दिलों में आग भर दी, उन्हें अन्याय के खिलाफ खड़े होने का साहस दिया और एक ऐसी राष्ट्रीय चेतना जगाई, जिसने आगे चलकर स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत दिशा दी।
वंदे मातरम् केवल गीत नहीं—यह भारत की आत्मा की आवाज है, और आज भी हमें वही शक्ति, वही एकता और वही साहस प्रदान करती है।