उपराष्ट्रपति ने 180 दिवसीय तप महापर्ण में जैन धर्म के अहिंसा व सत्य सिद्धांतों की सराहना की

Mon 08-Dec-2025,05:37 PM IST +05:30

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उपराष्ट्रपति ने 180 दिवसीय तप महापर्ण में जैन धर्म के अहिंसा व सत्य सिद्धांतों की सराहना की
  • उपराष्ट्रपति राधाकृष्णन ने जैन धर्म के अहिंसा, सत्य और अपरिग्रह सिद्धांतों को वैश्विक शांति और सतत जीवनशैली के आधार स्तंभ के रूप में रेखांकित किया।

  • सरकार द्वारा प्राकृत भाषा को बढ़ावा देने और जैन पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए ज्ञानभारतम मिशन जैसी पहलों की उपराष्ट्रपति ने सराहना की।

Delhi / New Delhi :

Delhi/ उपराष्ट्रपति श्री सी.पी. राधाकृष्णन ने श्री हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज जी के आठवें 180 उपवास महापर्ण समारोह में भाग लिया और दिव्य तपस्वी आचार्य के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि इतने महान आध्यात्मिक अनुष्ठान का साक्षी बनना अत्यंत सौभाग्य और प्रेरणा का क्षण है।

सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने जैन धर्म के अमूल्य योगदानों को रेखांकित किया, विशेषकर अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और अनेकांतवाद की शिक्षाएं, जिन्होंने भारत और पूरी दुनिया को गहरे स्तर पर प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी द्वारा अपनाई गई अहिंसा सिर्फ स्वतंत्रता संघर्ष तक सीमित नहीं रही, बल्कि वैश्विक शांति आंदोलनों का मार्गदर्शन करती रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि शाकाहार, पशु करुणा, और सतत जीवनशैली के जैन सिद्धांत आज पर्यावरणीय उत्तरदायित्व के वैश्विक आदर्श के रूप में स्वीकार किए जा रहे हैं। अपनी व्यक्तिगत यात्रा का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने पहली बार काशी की यात्रा के बाद 25 वर्ष पूर्व शाकाहार अपनाया, जिससे उनमें विनम्रता और समभाव का गुण विकसित हुआ।

उपराष्ट्रपति ने सरकार द्वारा जैन संस्कृति और विरासत को संरक्षित करने के लिए किए जा रहे कार्यों—जैसे प्राकृत को ‘शास्त्रीय भाषा’ का दर्जा देने और ज्ञानभारतम मिशन के तहत जैन पांडुलिपियों का संरक्षण की सराहना की।

उन्होंने तमिलनाडु में जैन धर्म की ऐतिहासिक गहराई और साहित्यिक विरासत पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने बताया कि संगम काल और संगमोत्तर काल के दौरान जैन विद्वानों ने तमिल साहित्य को अमूल्य रचनाओं से समृद्ध किया। उपराष्ट्रपति ने इलांगो आदिगल की ‘शिलप्पादिकारम’, कोंगु वेलिर की ‘पेरुंगथाई’ तथा ‘तिरुक्कुरल’ में जैन प्रभाव का उल्लेख किया और कहा कि अहिंसा, सत्य और तप जैसी आध्यात्मिक अवधारणाएं आज भी मानवता को मार्गदर्शन देती हैं।

उपराष्ट्रपति ने आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज की दीर्घकालीन तपस्या, संयम और समाज के प्रति समर्पण की सराहना की। उन्होंने कहा कि आचार्य जी का संदेश “संस्कृति बचाओ, परिवार बचाओ, राष्ट्र निर्माण” भारत के नैतिक और सामाजिक ढांचे को मजबूत बनाने वाला मार्गदर्शन है।

आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज द्वारा 180 दिनों का उपवास आठवीं बार पूरा किया गया है, जो उनके तप, अनुशासन और मानवता के कल्याण के प्रति समर्पण को दर्शाता है। यह महापर्ण समारोह करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा, संयम और आध्यात्मिक उत्थान की यादगार मिसाल बन गया।