150th Anniversary of the National Song: प्रियंका गांधी, सरकार असली मुद्दों से ध्यान हटाना चाहती है

Mon 08-Dec-2025,11:42 PM IST +05:30

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150th Anniversary of the National Song: प्रियंका गांधी, सरकार असली मुद्दों से ध्यान हटाना चाहती है
  • प्रियंका गांधी ने लोकसभा में कहा कि वंदे मातरम् पर चर्चा असली मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश है और प्रधानमंत्री मोदी तथ्यात्मक रूप से कमजोर दिखते हैं।

Delhi / Delhi :

लोकसभा में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर आयोजित विशेष चर्चा के दौरान आज राजनीतिक माहौल बेहद गर्म रहा। चर्चा में भाग लेते हुए कांग्रेस महासचिव और वायनाड से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा पर सीधा हमला बोला।

प्रियंका गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री अच्छे भाषण देते हैं, लेकिन तथ्यों के मामले में “कमज़ोर” नज़र आते हैं। उन्होंने दावा किया कि वंदे मातरम् पर चर्चा कराने का उद्देश्य असल मुद्दों- जैसे बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्याएं और इंडिगो फ्लाइट संकट से ध्यान भटकाना है।

प्रियंका गांधी ने कहा कि वंदे मातरम् कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा में बसने वाला भाव है, जो देश के हर नागरिक के हृदय में समाहित है। उनके अनुसार, इस राष्ट्रीय गीत को लेकर संसद में बहस की कोई आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि यह पहले से ही देश की एकता, संघर्ष और स्वतंत्रता का प्रतीक है।

उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर आरोप लगाया कि उनका आत्मविश्वास लगातार घट रहा है, इसलिए वह विपक्ष को निशाना बनाने और भावनात्मक मुद्दों को उछालने की रणनीति अपना रहे हैं। प्रियंका ने कहा कि देश को आगे ले जाने के लिए सरकार को संवेदनशीलता, जवाबदेही और सच्ची नीयत की आवश्यकता है, लेकिन मौजूदा नीतियां “देश को कमजोर कर रही हैं।”

प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय गीत पर बहस जरूरी मुद्दों से ध्यान हटाने की सोची-समझी कोशिश है। उन्होंने भाजपा पर व्यंग्य करते हुए कहा कि उनकी राजनीति “प्रतीकवाद और शो-मैनशिप” पर आधारित है, लेकिन देश को वास्तविक सुधार चाहिए, न कि सतही भाषण।

लोकसभा में इस बहस के दौरान कांग्रेस और भाजपा सांसदों के बीच कई बार तकरार भी हुई। विपक्ष का आरोप है कि यह “राजनीतिक एजेंडा” है, जबकि भाजपा कहती है कि यह स्वतंत्रता आंदोलन के महान प्रतीक के सम्मान का विषय है। कुल मिलाकर, वंदे मातरम् पर हुई यह बहस फिर से इस बात को उजागर करती है कि संसद में भावनात्मक मुद्दों और राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुकाबला अब और तेज़ होने वाला है।