कंडोम पर टैक्स बढ़ाकर चीन का बड़ा संकेत: जनसंख्या बढ़ाने की नई रणनीति
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कंडोम और गर्भनिरोधक उत्पादों पर टैक्स बढ़ाकर चीन ने जन्मदर बढ़ाने का अप्रत्यक्ष संदेश दिया है।
घटती आबादी, बुजुर्गों की बढ़ती संख्या और श्रम संकट चीन की सबसे बड़ी चिंता बन चुकी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक और सामाजिक सुधार बिना टैक्स नीति के प्रभाव सीमित रहेंगे।
China / चीन ने एक बार फिर दुनिया को चौंकाने वाला फैसला लिया है। बीजिंग सरकार ने कंडोम समेत कई गर्भनिरोधक उत्पादों पर टैक्स में उल्लेखनीय बढ़ोतरी कर दी है। यह फैसला ऐसे समय पर आया है, जब चीन लंबे समय से घटती जनसंख्या, बूढ़ी होती आबादी और श्रम शक्ति में कमी जैसी गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम केवल टैक्स नीति नहीं, बल्कि चीन की बदली हुई जनसंख्या नीति का स्पष्ट संकेत है।
दरअसल, दशकों तक चीन ने “वन चाइल्ड पॉलिसी” के जरिए आबादी पर सख्त नियंत्रण रखा। इसका उद्देश्य था तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाना और आर्थिक संसाधनों पर दबाव कम करना। लेकिन समय के साथ इस नीति के दुष्परिणाम सामने आए। जन्मदर में तेज गिरावट, युवा आबादी की कमी और बुजुर्गों की संख्या में भारी वृद्धि ने चीन की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को चुनौती दी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, चीन की कुल प्रजनन दर अब प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे आ चुकी है। कई प्रांतों में स्कूल बंद हो रहे हैं, क्योंकि बच्चों की संख्या घटती जा रही है। फैक्ट्रियों और उद्योगों को पर्याप्त युवा श्रमिक नहीं मिल पा रहे हैं। पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव लगातार बढ़ रहा है। इन्हीं परिस्थितियों में शी जिनपिंग सरकार ने जनसंख्या बढ़ाने के लिए नीतिगत बदलाव शुरू किए हैं।
पहले चरण में चीन ने दो बच्चों और फिर तीन बच्चों की अनुमति दी। इसके बाद मातृत्व अवकाश, टैक्स में छूट, हाउसिंग सब्सिडी और बच्चों की देखभाल से जुड़ी सुविधाओं की घोषणा की गई। अब गर्भनिरोधक वस्तुओं पर टैक्स बढ़ाने का फैसला उसी श्रृंखला का अगला कदम माना जा रहा है। सरकार का अप्रत्यक्ष संदेश साफ है—जन्म नियंत्रण को हतोत्साहित करना और परिवारों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करना।
हालांकि इस फैसले पर चीन के भीतर और बाहर तीखी बहस शुरू हो गई है। आलोचकों का कहना है कि टैक्स बढ़ाने से गर्भनिरोधक साधन महंगे होंगे, जिससे खासकर शहरी और गरीब वर्ग पर असर पड़ेगा। महिलाओं के स्वास्थ्य और प्रजनन अधिकारों को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञों का तर्क है कि केवल टैक्स बढ़ाकर जन्मदर नहीं बढ़ाई जा सकती, जब तक युवाओं की आर्थिक असुरक्षाएं, महंगी शिक्षा, आवास संकट और करियर की अनिश्चितता दूर न की जाए।
वहीं समर्थकों का मानना है कि यह फैसला प्रतीकात्मक जरूर है, लेकिन सरकार की मंशा को दर्शाता है। चीन यह स्वीकार कर चुका है कि जनसंख्या में गिरावट उसके दीर्घकालिक आर्थिक विकास, सैन्य क्षमता और वैश्विक प्रभाव के लिए खतरा बन सकती है। इसलिए वह हर संभव उपाय आजमा रहा है।
इस फैसले के वैश्विक निहितार्थ भी हैं। भारत जैसे देश, जहां अभी जनसंख्या युवा है, चीन के अनुभव से सबक ले सकते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अनियंत्रित जनसंख्या नियंत्रण भविष्य में गंभीर संकट पैदा कर सकता है। संतुलित नीति, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के साथ परिवार नियोजन को जोड़ा जाए, ज्यादा टिकाऊ समाधान है।
कुल मिलाकर, कंडोम और अन्य गर्भनिरोधक वस्तुओं पर हाई टैक्स लगाना चीन की बदली हुई सोच का संकेत है। यह फैसला दिखाता है कि जिस देश ने कभी जनसंख्या रोकने के लिए सख्त कदम उठाए थे, वही आज जनसंख्या बढ़ाने के लिए नीतियों को पलट रहा है। आने वाले वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ऐसे कदम चीन की गिरती जन्मदर को सचमुच पलट पाएंगे या नहीं।