Lifestyle | सर्दियों में तेल मालिश: आयुर्वेद का अमृत उपाय, जो देता है स्वास्थ्य और सुकून
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सर्दियों में तेल मालिश वात दोष को संतुलित कर जोड़ों, त्वचा और स्नायु तंत्र को मजबूती देती है।
तिल, सरसों और नारियल जैसे आयुर्वेदिक तेल शरीर को ऊष्मा, पोषण और मानसिक शांति प्रदान करते हैं।
नियमित अभ्यंग से तनाव घटता है, नींद सुधरती है और आधुनिक विज्ञान भी इसके लाभों की पुष्टि करता है।
AGCNN / सर्दियों का मौसम आते ही शरीर पर इसका सीधा असर दिखाई देने लगता है। त्वचा का रूखापन, जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों में जकड़न, थकान और नींद की कमी जैसी समस्याएं आम हो जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार यह सब वात दोष के बढ़ने के कारण होता है, क्योंकि ठंड, शुष्कता और तेज हवा वात को उत्तेजित करती हैं। ऐसे में आयुर्वेद एक सरल, सुलभ और प्रभावी समाधान बताता है—तेल मालिश, जिसे अभ्यंग भी कहा जाता है।
आयुर्वेदिक ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है कि नियमित अभ्यंग करने से बुढ़ापा, थकान और वात विकारों में कमी आती है। तेल त्वचा के रोमछिद्रों के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर धातुओं को पोषण देता है, स्नायु तंत्र को मजबूत करता है और शरीर में स्थिरता व ऊष्मा बनाए रखता है। सर्दियों में जब बाहरी ठंड शरीर की प्राकृतिक गर्मी को प्रभावित करती है, तब तेल मालिश शरीर के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करती है।
विशेषज्ञों के अनुसार सर्दी में त्वचा की नमी तेजी से कम होती है, जिससे त्वचा फटने लगती है और खुजली की समस्या बढ़ती है। तेल मालिश त्वचा को अंदर से पोषण देकर उसकी प्राकृतिक चमक लौटाती है और ड्राइनेस को कम करती है। इसके साथ ही जोड़ों में अकड़न और दर्द से राहत मिलती है, क्योंकि तेल स्नायु और मांसपेशियों को लचीला बनाता है।
आयुर्वेद में अलग-अलग प्रकृति और जरूरत के अनुसार तेलों का चयन बताया गया है। तिल का तेल सर्दियों में सबसे अधिक उपयोगी माना गया है, क्योंकि यह वातनाशक है और शरीर को गर्मी देता है। नारियल तेल पित्त प्रकृति वालों और सिर की मालिश के लिए उपयुक्त है। सरसों का तेल ठंड में शरीर को ऊष्मा देने और मांसपेशियों की जकड़न दूर करने में सहायक होता है। वहीं, महा नारायण तेल या बला तेल विशेष रूप से जोड़ों, नसों और कमर दर्द में लाभकारी माने जाते हैं।
तेल मालिश की सही विधि भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद के अनुसार तेल को हल्का गुनगुना कर सिर, कान, नाभि, रीढ़, जोड़ों और पैरों पर विशेष ध्यान देते हुए हल्के दबाव से गोलाकार गति में मालिश करनी चाहिए। 20 से 30 मिनट बाद गुनगुने पानी से स्नान करना लाभकारी होता है। साबुन की जगह बेसन या हर्बल क्लींजर का उपयोग बेहतर माना जाता है, ताकि त्वचा का प्राकृतिक तेल संतुलन बना रहे।
तेल मालिश का सही समय सुबह स्नान से पहले या शाम को स्नान से पहले बताया गया है। सप्ताह में 3–4 बार तेल मालिश पर्याप्त मानी जाती है, जबकि वृद्ध और कमजोर व्यक्ति रोजाना हल्की मालिश कर सकते हैं। रात में विशेष रूप से पैरों और सिर में तेल लगाने से गहरी और शांत नींद आती है।
आधुनिक विज्ञान भी तेल मालिश के लाभों को स्वीकार करता है। शोध बताते हैं कि नियमित मालिश से ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल का स्तर घटता है, नींद की गुणवत्ता सुधरती है और त्वचा की बैरियर फंक्शन मजबूत होती है। यही कारण है कि आज वेलनेस और लाइफस्टाइल विशेषज्ञ भी आयुर्वेदिक अभ्यंग को सर्दियों की दिनचर्या में शामिल करने की सलाह दे रहे हैं।
हालांकि कुछ परिस्थितियों में तेल मालिश से बचने की भी सलाह दी जाती है। तेज बुखार, अपच, दस्त, सर्दी-जुकाम के तीव्र चरण, त्वचा संक्रमण या खुले घाव होने पर मालिश नहीं करनी चाहिए। ऐसी स्थिति में चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है।
निष्कर्षतः, तेल मालिश आयुर्वेद का एक सरल लेकिन गहरा उपचार है, जो सर्दियों में शरीर को भीतर से सुरक्षित रखता है। यह केवल बाहरी देखभाल नहीं, बल्कि नसों, जोड़ों, मन और प्रतिरक्षा शक्ति को पोषण देने की संपूर्ण प्रक्रिया है। सही तेल, सही समय और सही विधि से किया गया अभ्यंग औषधि के समान प्रभाव दिखाता है और सर्दियों को स्वस्थ व सुखद बनाता है।