डॉ. पी.के. मिश्र: मानव गरिमा, अधिकार और समावेशी विकास को सुशासन का मूल आधार बताया
ताजा खबरों से अपडेट रहने के लिए हमारे Whatsapp Channel को Join करें |
सम्मेलन में डॉ. मिश्र ने मानवाधिकारों के विस्तार, तकनीकी न्याय, डिजिटल गोपनीयता और समावेशी विकास को आधुनिक शासन की केंद्रीय आवश्यकता बताया।
2014 के बाद लागू योजनाओं-आवास, स्वच्छता, स्वास्थ्य, वित्तीय समावेशन और डीबीटी-को गरिमा आधारित मानवाधिकार क्रियान्वयन का मजबूत आधार कहा गया।
उन्होंने जलवायु न्याय, डेटा संरक्षण, एआई निष्पक्षता और गिग वर्कर्स की सुरक्षा को राष्ट्रीय मानवाधिकार ढांचे में शामिल करने की आवश्यकता पर बल दिया।
Delhi/ प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्र ने विश्व मानवाधिकार दिवस के उपलक्ष्य में नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन किया। सम्मेलन का विषय था-“रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएं सुनिश्चित करना: सार्वजनिक सेवाएं और सभी के लिए गरिमा”, जिसमें उन्होंने मानवाधिकारों के वास्तविक अर्थ, उनके विस्तार और भारत के दृष्टिकोण पर विस्तृत विचार प्रस्तुत किए।
अपने संबोधन में डॉ. मिश्र ने कहा कि मानवाधिकार दिवस महज़ एक अवसर नहीं, बल्कि रोजमर्रा की गरिमा पर पुनर्विचार का आह्वान है। उन्होंने बताया कि 1948 में अपनाई गई मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 25(1) ने प्रत्येक व्यक्ति को भोजन, आवास, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा और संकट समय संरक्षण का अधिकार दिया। इस सिद्धांत को भारत ने न सिर्फ स्वीकार किया, बल्कि नीति और क्रियान्वयन के माध्यम से इसे विस्तृत बनाया।
उन्होंने डॉ. हंसा मेहता के ऐतिहासिक योगदान का उल्लेख करते हुए कहा कि “सभी मनुष्य स्वतंत्र और समान जन्म लेते हैं” वाक्यांश भारत की दूरदर्शी सोच का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार अब केवल स्वतंत्रता और राजनीतिक अधिकारों तक सीमित नहीं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, डिजिटल गोपनीयता और तकनीकी न्याय तक भी विस्तृत हो चुके हैं।
डॉ. मिश्र ने 2014 के बाद मानवाधिकारों की दिशा में भारत की प्रगति का उल्लेख करते हुए बताया कि सरकार का दृष्टिकोण “कागज़ी अधिकारों” से “कार्यान्वित अधिकारों” की ओर बढ़ा है। प्रधानमंत्री आवास योजना, जल जीवन मिशन, उज्ज्वला, आयुष्मान भारत, स्वच्छ भारत और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण जैसे अभियान गरिमा से जीवन जीने की बुनियाद बन चुके हैं।
उन्होंने कहा कि बीते दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले हैं और यह उपलब्धि मानवाधिकारों की सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है। उन्होंने इसे नागरिक-केंद्रित सुशासन, वित्तीय समावेशन, महिला सशक्तिकरण और तकनीक-सक्षम सेवाओं के बल पर संभव बताया।
डॉ. मिश्र ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से उभरती चुनौतियों-जलवायु न्याय, डेटा सुरक्षा, एआई नैतिकता, गिग वर्कर्स के अधिकार और डिजिटल निगरानी-पर नये ढांचे तैयार करने का आग्रह किया।
उन्होंने अंत में कहा कि सुशासन स्वयं एक मौलिक अधिकार है, जिसे पारदर्शिता, दक्षता, त्वरित निवारण और समय पर सेवाएं सुनिश्चित करती हैं। विकसित भारत 2047 की यात्रा में “नागरिक गरिमा” भारत की केंद्रिय शक्ति बनी रहेगी।