Pabhiya Village Uttarakhand Road Issue | 96 साल की अम्मा अब भी पहाड़ चढ़ रही है — कब जागेगी सरकार?

Sun 23-Nov-2025,03:12 PM IST +05:30

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Rural Backwardness Uttarakhand
  • पभ्या गांव में आज भी सड़क की कमी.

  • पलायन और विकास की असमानता की मार.

  • बुजुर्गों और ग्रामीणों को कठिन जीवन का सामना.

Uttarakhand / Pithoragarh :

Pabhiya / उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित पभ्या गांव सिर्फ एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि संघर्ष, उम्मीद और उपेक्षा की जीवित कहानी है। गंगोलीहाट तहसील के इस गांव में कभी लगभग 110 परिवार रहते थे। घरों में जीवन था, खेतों में काम और गांव में रिश्तों की गर्माहट। लेकिन आज इस गांव की हालत किसी उजड़े पहाड़ सी है — जहां सिर्फ 30 परिवार बचे हैं और बाकी पलायन कर चुके हैं।

महामारी के बीच एक संघर्ष
पांच साल पहले जब पूरा देश और दुनिया कोविड-19 महामारी के बीच डर और अनिश्चितता में थी, तब पभ्या के लोगों ने एक अलग ही जंग लड़ी। छोटे बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सभी ने अपने हाथों से गांव तक पहुंचने के लिए सड़क बनाने की कोशिश की। यह सड़क सिर्फ मिट्टी और पत्थरों की नहीं थी, यह उम्मीदों की सड़क थी। उन्हें यकीन था कि उनका प्रयास कभी न कभी शासन-प्रशासन की नजर तक जरूर पहुंचेगा।

विकास का वादा, लेकिन हकीकत वहीं की वहीं
चुनाव हुए, सरकार बदली या दोबारा आई — लेकिन गांव का भाग्य नहीं बदला। चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई आज भी गांव वालों की नियति है। 96 वर्ष की एक अम्मा इस रास्ते को रोजमर्रा की मजबूरी की तरह झेलती हैं। जब भी उन्हें नीचे जाना होता है, वह पहले पैदल यह कठिन दूरी पार करती हैं और फिर वापस डोली में बैठकर चढ़ाई तय करती हैं। यह दृश्य सिर्फ दर्दनाक नहीं, बल्कि व्यवस्था पर सवाल भी उठाता है।

खामोश होता गांव और बढ़ती दूरी
यह कहानी सिर्फ पभ्या तक सीमित नहीं है। देश में ऐसे अनगिनत गांव हैं जहां विकास पहुंच ही नहीं पाया। जहां जनसंख्या कम होती है, वहां आवाज भी कम सुनी जाती है — और ठीक यही वजह है कि पभ्या जैसे गांव सरकार की प्राथमिकता में कभी जगह ही नहीं बना सके।

आवश्यकता सिर्फ सड़क की नहीं, संवेदना की भी है
पभ्या गांव की सबसे बड़ी त्रासदी सिर्फ सड़क का न बन पाना नहीं है, बल्कि यह है कि इस गांव की पीड़ा किसी तक पहुंच ही नहीं पाई। आज़ादी के 70 साल बाद भी यदि लोग इलाज, शिक्षा और जिंदगी की बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो सवाल विकास मॉडल पर उठना स्वाभाविक है।

यह गांव अब भी इंतजार में है—किसी सुनने वाले के, किसी जवाब देने वाले के… और शायद किसी बदलाव के।