बांके बिहारी मंदिर में दर्शन समय विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, परंपरा बनाम व्यवस्था

Wed 17-Dec-2025,02:10 AM IST +05:30

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बांके बिहारी मंदिर में दर्शन समय विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, परंपरा बनाम व्यवस्था
  • बांके बिहारी मंदिर में दर्शन समय बढ़ाने पर विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। मंदिर समिति ने परंपरा और भगवान के विश्राम समय का हवाला दिया।

Uttar Pradesh / Mathura :

मथुरा/ वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में भगवान कृष्ण के विश्राम और दर्शन समय को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है, जो अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुकी है। विवाद की जड़ में श्रद्धालुओं के लिए दर्शन समय बढ़ाने का फैसला है, जिसका कुछ वर्गों द्वारा विरोध किया जा रहा है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक High-Powered Committee ने लिया था, जिसका उद्देश्य मंदिर की व्यवस्थाओं को सुव्यवस्थित करना बताया गया है।

इस हाई-पावर्ड कमेटी की अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश कर रहे हैं। समिति ने सितंबर महीने में श्रद्धालुओं के लिए दर्शन समय को ढाई घंटे बढ़ाने का निर्णय लिया। इसके साथ ही समिति ने दो अन्य अहम फैसले भी किए देहरी पूजा को बंद करना और VIP पास के जरिए दर्शन की व्यवस्था समाप्त करना। इन फैसलों को मंदिर में समानता, भीड़ प्रबंधन और पारदर्शिता से जोड़कर देखा गया।

हालांकि, बांके बिहारी मंदिर प्रबंधन समिति ने इन फैसलों का कड़ा विरोध किया है और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। समिति का तर्क है कि बांके बिहारी भगवान कृष्ण का बाल स्वरूप हैं, जिन्हें ‘कान्हा’ के रूप में जीवंत मानकर पूजा की जाती है। मंदिर में होने वाली सभी धार्मिक क्रियाएं, जागरण, श्रृंगार, भोग और शयन, सदियों पुरानी परंपराओं के अनुसार तय समय पर होती रही हैं।

मंदिर प्रबंधन के अनुसार, भगवान बांके बिहारी को प्रतिदिन विशेष पूजा के साथ सुबह जगाया जाता है। इसके बाद श्रृंगार और भोग लगाकर श्रद्धालुओं को दर्शन दिए जाते हैं। दोपहर में पुनः भोग लगाया जाता है और फिर भगवान को विश्राम कराया जाता है। इसी तरह शाम के समय भी पूजा और दर्शन की एक निश्चित प्रक्रिया है। उनका कहना है कि दर्शन समय बढ़ाने से भगवान के विश्राम और पूजा की परंपरागत व्यवस्था प्रभावित होती है।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी वर्ष मंदिर के प्रशासन और संचालन से जुड़े मामलों को देखने के लिए इस समिति का गठन किया था। अब अदालत के सामने परंपरा और प्रशासनिक सुधारों के बीच संतुलन साधने की चुनौती है। आने वाले दिनों में कोर्ट का फैसला यह तय करेगा कि श्रद्धालुओं की सुविधा और धार्मिक परंपराओं के बीच किसे प्राथमिकता दी जाएगी।