लक्षद्वीप में मत्स्य पालन निवेश को नई दिशा, पहली निवेशक बैठक से खुले अवसर
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लक्षद्वीप की पहली निवेशक बैठक से टूना, समुद्री शैवाल और अपतटीय मत्स्य पालन में निजी निवेश और रोजगार सृजन के नए अवसर खुले।
विशाल लैगून और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के कारण लक्षद्वीप को टिकाऊ नीली अर्थव्यवस्था के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित करने की योजना।
एकल-खिड़की स्वीकृति प्रणाली और 500 करोड़ रुपये से अधिक के संभावित निवेश प्रस्तावों ने क्षेत्रीय विकास को नई गति दी।
लक्षद्वीप/ लक्षद्वीप केंद्र शासित प्रदेश में समुद्री संसाधनों के सतत और व्यावसायिक उपयोग को बढ़ावा देने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल करते हुए मत्स्य पालन विभाग ने पहली बार निवेशकों की बैठक का आयोजन किया। यह सम्मेलन 13 दिसंबर 2025 को बंगाराम द्वीप में आयोजित हुआ, जिसका उद्देश्य लक्षद्वीप में मत्स्य पालन और समुद्री कृषि की अब तक अप्रयुक्त क्षमताओं को उजागर करना था। इस कार्यक्रम ने लक्षद्वीप की “नीली अर्थव्यवस्था” को वैश्विक निवेश मानचित्र पर लाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम रखा है।
इस उच्चस्तरीय सम्मेलन में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री श्री राजीव रंजन सिंह, राज्य मंत्री प्रो. एस.पी. सिंह बघेल, श्री जॉर्ज कुरियन और लक्षद्वीप के प्रशासक श्री प्रफुल्ल पटेल सहित कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। देशभर से आए लगभग 22 निवेशकों और उद्यमियों ने इस बैठक में भाग लिया, जिन्होंने लक्षद्वीप की समुद्री क्षमता में गहरी रुचि दिखाई।
सम्मेलन के दौरान मत्स्य विभाग ने चार प्रमुख निवेश क्षेत्रों को प्रस्तुत किया, जिनमें टूना एवं गहरे समुद्र की मत्स्य पालन, समुद्री शैवाल की खेती, सजावटी मत्स्य पालन और अपतटीय पिंजरा पालन शामिल हैं। अधिकारियों ने बताया कि लक्षद्वीप भारत के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा कवर करता है, जिससे यहां समुद्री संसाधनों की अपार संभावनाएं मौजूद हैं।
विशेष रूप से टूना मत्स्य पालन को लक्षद्वीप की सबसे बड़ी ताकत बताया गया। वर्तमान में जहां लगभग 15 हजार टन उत्पादन हो रहा है, वहीं वास्तविक क्षमता लगभग एक लाख टन आंकी गई है। आधुनिक मछली पकड़ने, प्रसंस्करण, डिब्बाबंदी, ब्रांडिंग और निर्यात आधारित मूल्य श्रृंखला विकसित कर लक्षद्वीप की टूना को अंतरराष्ट्रीय प्रीमियम बाजारों में स्थापित किया जा सकता है। पारंपरिक और पर्यावरण-अनुकूल मछली पकड़ने की तकनीकें इसे वैश्विक प्रमाणन के लिए भी उपयुक्त बनाती हैं।
समुद्री शैवाल की खेती को भी भविष्य का बड़ा अवसर बताया गया। 4200 वर्ग किलोमीटर से अधिक लैगून क्षेत्र के कारण लक्षद्वीप इस क्षेत्र के लिए आदर्श स्थान है। पीएमएमएसवाई के तहत स्थापित बीज बैंक और हैचरी, तथा प्रस्तावित पट्टा नीति से निजी निवेश को बल मिलने की उम्मीद है। समुद्री शैवाल आधारित उद्योग न केवल आर्थिक लाभ देते हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक हैं।
इसके अलावा, सजावटी मत्स्य पालन में मौजूद जैव विविधता लक्षद्वीप को अंतरराष्ट्रीय सजावटी मछली बाजार का केंद्र बना सकती है। टिकाऊ प्रजनन और निर्यात-उन्मुख इकाइयों के माध्यम से स्थानीय रोजगार और संरक्षण दोनों को बढ़ावा मिल सकता है। वहीं अपतटीय पिंजरा पालन को बड़े पैमाने पर समुद्री कृषि का भविष्य बताया गया, जिसकी तकनीकी और व्यावसायिक व्यवहार्यता देश के अन्य हिस्सों में सिद्ध हो चुकी है।
निवेश को आसान बनाने के लिए लक्षद्वीप प्रशासन एकल-खिड़की स्वीकृति प्रणाली विकसित कर रहा है। सम्मेलन के बाद 500 करोड़ रुपये से अधिक के संभावित निवेश प्रस्तावों की परिकल्पना की गई है। यह पहल लक्षद्वीप को सतत, समावेशी और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी नीली अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।