मणिपुर में राष्ट्रपति शासन छह महीने और बढ़ा: अशांति के बीच केंद्र सरकार का फैसला
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मणिपुर में राष्ट्रपति शासन छह महीने बढ़ाया गया।
जातीय संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है।
विस्थापितों के पुनर्वास की योजना पर केंद्र का ध्यान।
Manipur / मणिपुर में जारी अशांति और प्रशासनिक अस्थिरता को देखते हुए केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन को छह महीने के लिए और बढ़ाने का फैसला किया है। यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत लिया गया है। 24 जुलाई को यह प्रस्ताव लोकसभा में पारित हुआ और अब 25 जुलाई को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह इसे राज्यसभा में पेश करेंगे। राज्यसभा द्वारा जारी नोटिस में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्वारा 13 फरवरी 2025 को जारी की गई उद्घोषणा को 13 अगस्त 2025 से छह महीने की अतिरिक्त अवधि के लिए लागू रखने का अनुमोदन किया जाएगा।
मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की पृष्ठभूमि जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता रही है। राज्य में मैतेई और कुकी समुदायों के बीच चल रही हिंसा ने प्रशासन को पंगु कर दिया है। यह संघर्ष 3 मई 2023 से शुरू हुआ था, जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) द्वारा एक 'ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च' निकाला गया। यह मार्च मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने के विरोध में था। इसी दौरान व्यापक हिंसा भड़क उठी, जिससे कई इलाकों में आगजनी, झड़पें और दंगे हुए।
इस जातीय संघर्ष में अब तक 250 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और लगभग 60 हजार लोग विस्थापित हो चुके हैं। इन हालात में राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई, जिससे राज्य प्रशासन प्रभावी ढंग से कार्य करने में असमर्थ रहा। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद 13 फरवरी 2025 को केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।
राष्ट्रपति शासन के तहत केंद्र सरकार राज्य में शांति स्थापित करने, कानून व्यवस्था सुधारने और विधानसभा चुनाव कराने की संभावना पर विचार कर रही है। हालांकि, अब तक कोई ठोस राजनीतिक समाधान नहीं निकल पाया है। मैतेई और नागा समुदायों के विधायक लगातार सरकार बहाल करने की मांग कर रहे हैं। एनडीए के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण बन गई है क्योंकि उसके सहयोगी भी राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करने के पक्ष में हैं।
वहीं, केंद्र सरकार ने इस वर्ष के अंत तक हिंसा से विस्थापित हुए लोगों को फिर से उनके घरों में बसाने की योजना जताई है। लेकिन 26 महीनों से अधिक समय बीत जाने के बावजूद मैतेई और कुकी समुदायों के बीच आपसी बातचीत शुरू नहीं हो पाई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर जल्द ही मणिपुर में किसी ठोस समाधान की दिशा में कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट और अधिक गहराता जाएगा। राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाकर सरकार ने जहां एक ओर संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने की कोशिश की है, वहीं दूसरी ओर यह भी स्पष्ट हो गया है कि मणिपुर की समस्या सिर्फ कानून व्यवस्था की नहीं, बल्कि गहराई से जुड़ी सामाजिक और राजनीतिक असहमति की भी है, जिसे सुलझाने के लिए सभी पक्षों को साथ मिलकर काम करना होगा।