शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बुर्का विवाद पर नीतीश कुमार की निंदा की
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शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने सरकारी समारोह में मुस्लिम महिला का बुर्का हटाने की घटना की निंदा, इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बुर्का विवाद पर नीतीश कुमार की निंदा करते हुए उम्र और नेतृत्व को लेकर सक्रिय राजनीति से विराम की सलाह दी।
नागपुर/ शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक सरकारी समारोह से जुड़े कथित घटनाक्रम की कड़ी निंदा की है। आरोप है कि कार्यक्रम के दौरान एक मुस्लिम महिला का बुर्का हटाया गया, जिसे शंकराचार्य ने संवैधानिक मर्यादाओं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि किसी भी सार्वजनिक मंच पर किसी नागरिक की धार्मिक पहचान या पहनावे के साथ हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने बयान में कहा कि देश की विविधता उसकी ताकत है और शासन की जिम्मेदारी इसे सम्मान देने की होती है। उनके अनुसार, धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा केवल कानून से नहीं, बल्कि आचरण से भी होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकारी कार्यक्रमों में सभी समुदायों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए।
नीतीश कुमार की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए शंकराचार्य ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि अब मुख्यमंत्री की उम्र अधिक हो चुकी है और उनकी मानसिक स्थिति पहले जैसी नहीं रही है। ऐसे में, उनके मुताबिक, नीतीश कुमार को सक्रिय राजनीति से विराम लेकर अपनी पार्टी में किसी अन्य नेता को आगे बढ़ने का अवसर देना चाहिए। उन्होंने इसे किसी व्यक्ति पर हमला नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक हित में दिया गया सुझाव बताया।
इस बयान के बाद राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सरकार से स्पष्टीकरण की मांग करते हुए कहा कि महिलाओं की गरिमा और धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़े सवालों को हल्के में नहीं लिया जा सकता। वहीं सत्तारूढ़ खेमे के कुछ नेताओं का कहना है कि पूरे प्रकरण को संदर्भ से काटकर देखा जा रहा है और वास्तविकता की जांच जरूरी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद केवल एक घटना तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्ता, संवेदनशीलता और सार्वजनिक आचरण जैसे व्यापक सवाल खड़े करता है। बिहार जैसे राज्य में, जहां सामाजिक ताना-बाना विविध है, नेताओं के वक्तव्य और व्यवहार का असर दूरगामी हो सकता है।
कुल मिलाकर, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बयान बिहार की राजनीति में नैतिकता, जवाबदेही और नेतृत्व पर नई बहस छेड़ता दिख रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि सरकार और राजनीतिक दल इस आलोचना को कैसे लेते हैं और क्या इससे नीतिगत या आचरणगत बदलाव की कोई पहल होती है।