Maharashtra Maratha quota politics | मराठा आंदोलन पर फडणवीस का दांव, विपक्ष पर भारी पड़े

Tue 02-Sep-2025,10:56 PM IST +05:30

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Maharashtra Maratha quota politics | मराठा आंदोलन पर फडणवीस का दांव, विपक्ष पर भारी पड़े Ganeshotsav Maratha agitation resolution
  • फडणवीस सरकार ने जरांगे की 6 मांगें मानीं, अनशन खत्म हुआ।

  • मराठा आंदोलन के शांतिपूर्ण अंत से विपक्ष पर दबाव।

  • हैदराबाद गैजेट लागू होने से मराठाओं को ओबीसी आरक्षण का लाभ।

Maharashtra / Mumbai :

Mumbai / महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन एक बार फिर सियासी बहस का बड़ा मुद्दा बना। सोमवार की शाम तक ऐसा लग रहा था कि मनोज जरांगे पाटिल का आंदोलन सरकार के लिए गहरी मुश्किल खड़ी कर देगा। मुंबई में मराठाओं की भारी उपस्थिति और विपक्ष का जरांगे को खुला समर्थन फडणवीस सरकार पर दबाव बढ़ा रहा था। राजनीतिक विश्लेषक मान रहे थे कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस चुनौती से कैसे निपटेंगे। लेकिन मंगलवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई से पहले ही उन्होंने पूरा खेल पलट दिया।

दरअसल, सरकार ने जरांगे की आठ में से करीब छह मांगें मान लीं। इसके बाद जरांगे ने अनशन खत्म करने की घोषणा कर दी। आजाद मैदान में मौजूद हजारों समर्थक देर रात तक विजय का ऐलान करते हुए अपने-अपने गांव लौटने लगे। आंदोलन को लेकर बीते 24 घंटे बेहद अहम रहे, जिनमें फडणवीस ने संयम और रणनीति दोनों का परिचय दिया।

जरांगे लगातार सरकार और खासतौर पर फडणवीस पर तीखे बयान दे रहे थे। उन्होंने मुख्यमंत्री की तुलना गिरगिट तक से कर दी, लेकिन फडणवीस ने प्रतिक्रिया देने के बजाय धैर्य दिखाया। उन्होंने साफ कहा कि वे मराठा विरोधी नहीं हैं। इस संयम का असर तब दिखा जब बातचीत के बाद जरांगे ने खुद स्वीकार किया कि सरकार ने बड़ा कदम उठाया है।

सरकार द्वारा हैदराबाद गैजेट को मान लिए जाने से मराठवाड़ा के कई मराठा कुनबी जाति में शामिल हो सकेंगे। चूंकि कुनबी पहले से ही ओबीसी वर्ग में है, इसलिए मराठाओं को आरक्षण का लाभ मिलेगा। सतारा गैजेट पर कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार ने अतिरिक्त समय मांगा, जिसे जरांगे ने भी मान लिया। साथ ही आंदोलन के दौरान पुलिस फायरिंग में मारे गए लोगों के परिजनों को नौकरी देने और दर्ज मामलों को वापस लेने पर भी सहमति बनी।

जरांगे ने आंदोलन स्थल पर यह भी कहा कि "थोड़ा-थोड़ा खाना ठीक है, ज्यादा खाएंगे तो पेट खराब हो जाएगा।" उनके इस बयान से साफ है कि सरकार के कदमों से वे संतुष्ट हैं। इस बीच, सरकार ने राधाकृष्ण विखे पाटिल, शिवेंद्र राजे भोसले, माणिकराव कोकाटे, उदय सामंत और जयकुमार गोरे जैसे नेताओं का प्रतिनिधिमंडल जरांगे के पास भेजा। सभी मराठा नेताओं को शामिल करने का यह दांव कारगर साबित हुआ।

राजनीतिक विश्लेषक दयानंद नेने का कहना है कि यह स्थिति सरकार और जरांगे दोनों के लिए "विन-विन" रही। जरांगे ने अपनी बड़ी मांगें मनवा लीं और सरकार ने आंदोलन को शांति से खत्म कराया। फडणवीस ने बड़प्पन दिखाया और विपक्ष को बढ़त लेने का कोई मौका नहीं दिया।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस समाधान से बीजेपी को आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में फायदा मिलेगा। विपक्ष जिस नैरेटिव के सहारे फडणवीस को मराठा विरोधी बताने की कोशिश कर रहा था, वह भी कमजोर पड़ा। साथ ही गणेशोत्सव जैसे बड़े त्योहार से पहले आंदोलन का शांतिपूर्ण समाधान सरकार के लिए राहत भरा रहा।

जरांगे ने जाते-जाते यह भी कहा कि उनके समर्थकों की खुशी को हुड़दंग न माना जाए। सरकार ने यह मांग भी मान ली। इस तरह पांच दिन चले आंदोलन का अंत सहमति और सियासी रणनीति के साथ हुआ, जिसमें फडणवीस ने विपक्ष को मात देकर बाजी अपने पक्ष में कर ली।