कार्यक्रम से पहले ही कबीर ने आरोप लगाया था कि इस आयोजन को रोकने की साजिशें रची जा रही हैं और हिंसा भड़काने की कोशिशें हो रही हैं। उनका दावा था कि दक्षिण बंगाल से लाखों समर्थक इन प्रयासों को नाकाम कर देंगे और वे हर हाल में मस्जिद की नींव रखेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें संविधान के तहत पूजा स्थल बनाने का अधिकार है और 2000 से अधिक वॉलंटियर पूरे संयम और व्यवस्था के साथ कार्यक्रम संभाल रहे हैं।
लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने राजनीतिक हलचल को और तेज कर दिया। बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने ममता बनर्जी सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार मुस्लिम भावनाओं का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए निलंबित विधायक हुमायूं कबीर का इस्तेमाल कर रही है। मालवीय ने यह भी दावा किया कि स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार कबीर के समर्थक ईंटें लेकर एक ऐसी संरचना का निर्माण करते पाए गए जिसे वे बाबरी मस्जिद कह रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस और राज्य प्रशासन इस गतिविधि को समर्थन दे रहे हैं, जो स्थिति को और ज्यादा संवेदनशील बना देता है।
बेलडांगा पश्चिम बंगाल के सबसे साम्प्रदायिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में से एक माना जाता है। यहां पहले भी कई बार झड़पें हो चुकी हैं और सांप्रदायिक तनाव लंबे समय से मौजूद है। अमित मालवीय का कहना है कि अगर इस क्षेत्र में फिर से अशांति भड़की, तो इसका असर नेशनल हाईवे-12 पर भी पड़ सकता है, जो उत्तर बंगाल और राज्य के बाकी हिस्सों को जोडऩे वाली जीवनरेखा है। ऐसी किसी भी स्थिति के राज्य की आंतरिक एकता और राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
मालवीय ने यह भी कहा कि यह मस्जिद परियोजना कोई धार्मिक कदम नहीं बल्कि एक राजनीतिक रणनीति है, जिसका उद्देश्य वोट बैंक को मजबूत करना है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह कदम बंगाल की सामाजिक स्थिरता के लिए खतरा बन सकता है और इससे साम्प्रदायिक तनाव और भी बढ़ सकता है। उन्होंने ममता बनर्जी पर आरोप लगाया कि वह अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए राज्य को अस्थिर करने में भी पीछे नहीं हटेंगी।
दूसरी ओर, हुमायूं कबीर ने कोर्ट के निर्देशों का जिक्र करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने मस्जिद निर्माण पर रोक लगाने से इनकार किया था। कोर्ट ने सिर्फ यह कहा था कि कार्यक्रम के दौरान शांति और कानून-व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी। कोर्ट के आदेश के बाद ही उन्होंने शिलान्यास किया। कार्यक्रम में सऊदी अरब से भी धार्मिक नेता पहुंचे थे, जिससे यह आयोजन और भी चर्चाओं में रहा।
इस आयोजन का पैमाना भी काफी बड़ा था। लगभग 25 बीघा जमीन पर यह कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें 150 फीट लंबा और 80 फीट चौड़ा स्टेज बनाया गया था। स्टेज पर 400 लोगों के बैठने की व्यवस्था थी। आयोजन में आने वाले लोगों के लिए 60 हजार से ज्यादा बिरयानी पैकेट बांटे गए। करीब 2 हजार वॉलंटियर्स व्यवस्था संभालने में लगे थे। कबीर ने पहले से ही दावा किया था कि 3 लाख से ज्यादा लोग इस आयोजन में शामिल होंगे।
इस विवाद पर बीजेपी नेता दिलीप घोष ने कहा कि आज का दिन शौर्य दिवस है, संहति दिवस नहीं। उन्होंने कहा कि बाबरी ढांचे को गिराकर विदेशी आक्रांताओं के निशान मिटाए गए थे और इसके बाद कोर्ट के आदेश पर एक भव्य राम मंदिर बना। घोष का आरोप था कि हुमायूं कबीर और टीएमसी के बीच अंदरूनी तालमेल है और यह सब मुस्लिम वोट बैंक को खींचने की राजनीति है।
इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब 28 नवंबर को बेलडांगा में बाबरी मस्जिद के शिलान्यास के पोस्टर दिखाई देने लगे। पोस्टर में 6 दिसंबर को कार्यक्रम होने की घोषणा थी, और हुमायूं कबीर को आयोजक बताया गया था। इसके बाद विवाद तेजी से बढ़ा। कांग्रेस ने इस कार्यक्रम का समर्थन किया तो भाजपा ने इसका विरोध किया। 3 दिसंबर को टीएमसी ने साफ कर दिया कि इस घोषणा से पार्टी का कोई संबंध नहीं है और यह कबीर का निजी फैसला है। अंततः स्थिति बिगड़ते देख 4 दिसंबर को टीएमसी ने कबीर को निलंबित कर दिया।
निलंबन के बाद कबीर ने कहा कि वे अपने बयान पर कायम हैं और 22 दिसंबर को अपनी नई पार्टी की घोषणा करेंगे। उन्होंने दावा किया कि वे विधानसभा चुनाव में 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे और टीएमसी व बीजेपी दोनों के खिलाफ लड़ेंगे।
बाबरी विवाद की पृष्ठभूमि भी इस पूरे विवाद से जुड़ती है। 1992 में राम जन्मभूमि-बाबरी ढांचा गिराए जाने के बाद यह मुद्दा देशभर में साम्प्रदायिक रूप से सबसे संवेदनशील विषयों में शामिल रहा। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित जमीन रामलला को देने का निर्णय सुनाया और मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ अलग जमीन आवंटित करने का आदेश दिया। लेकिन अयोध्या में धन्नीपुर की उस जमीन पर अब तक मस्जिद का निर्माण शुरू नहीं हो पाया है, क्योंकि अयोध्या विकास प्राधिकरण ने मस्जिद के लेआउट को मंजूरी नहीं दी है।
इस विवाद के बीच बंगाल की राजनीति में एक और मोड़ तब आया जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि चुनाव आयोग अब निष्पक्ष नहीं रहा और वह पूरी तरह बीजेपी के प्रभाव में काम कर रहा है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उन्हें बंगाल में चुनौती मिली, तो वे पूरे देश में बीजेपी की नींव हिला देंगी।
मुर्शिदाबाद का यह विवाद सांप्रदायिक, राजनीतिक और प्रशासनिक हर स्तर पर बड़े सवाल खड़ा कर रहा है। मस्जिद शिलान्यास की वैधता, उसके राजनीतिक मायने, और उसके पीछे छिपे इरादों को लेकर चर्चा पूरे देश में फैल चुकी है। एक ओर धार्मिक स्वतंत्रता की बात की जा रही है, तो दूसरी ओर साम्प्रदायिक तनाव के खतरे की चेतावनी भी बढ़ती जा रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में यह विवाद किस दिशा में जाता है और बंगाल की राजनीति को किस तरह प्रभावित करता है।