प्रोजेक्ट चीता 2025 में दूसरी पीढ़ी में पहुँचा, भारत में कुल संख्या 30 तक पहुँची
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भारत का प्रोजेक्ट चीता 2025 में दूसरी पीढ़ी में प्रवेश कर गया। कुनो में कुल 30 चीते, भारत में जन्मी मुखी ने पाँच शावकों को जन्म दिया।
भारतीय जन्मी चीतीन ‘मुखी’ द्वारा पाँच शावकों का जन्म परियोजना के दूसरी पीढ़ी चरण में प्रवेश का वैज्ञानिक और संरक्षणात्मक प्रमाण प्रस्तुत करता है।
ग्रामीण समुदाय को 380+ रोजगार, 450 चीता मित्र, और इको-टूरिज्म राजस्व का साझा मॉडल प्रोजेक्ट चीता को सामाजिक-आर्थिक सफलता बनाता है।
एजीसीएनएन/ भारत का ‘प्रोजेक्ट चीता’ दुनिया में संरक्षण मॉडल के रूप में तेज़ी से उभर रहा है। 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से आए आठ अफ्रीकी चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में छोड़े जाने के साथ ही भारत ने विलुप्त घोषित प्रजाति के पुनर्वास की ऐतिहासिक यात्रा की शुरुआत की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा परियोजना की शुरुआत न केवल एक प्रतीकात्मक कदम था, बल्कि भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता और जैव-विविधता संरक्षण का बड़ा घोषणा-पत्र भी साबित हुआ।
1952 में चीते को भारत में आधिकारिक रूप से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। अत्यधिक शिकार, आवास विनाश और शिकार प्रजातियों की कमी ने इस तेज़ धावक को भारतीय परिदृश्य से गायब कर दिया था। दशकों बाद IUCN दिशानिर्देशों के आधार पर वैज्ञानिकों ने पुनर्वास योजना तैयार की और 2022 से कुनो राष्ट्रीय उद्यान को प्रजाति पुनर्बहाली का मुख्य केंद्र बनाया गया।
पिछले तीन वर्षों में प्रोजेक्ट चीता ने उल्लेखनीय सफलताएँ दर्ज की हैं। फरवरी 2023 में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों का आगमन, 2023 में भारत में पहले चीता शावकों का जन्म, तथा 2025 तक कुल 30 चीतों की उपस्थित- इन उपलब्धियों ने इस परियोजना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अत्यंत सफल मॉडल बना दिया है। सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि दिसंबर 2025 में देखने को मिली, जब भारत में जन्मी मादा मुखी ने खुद पाँच स्वस्थ शावकों को जन्म दिया, जो इस परियोजना के दूसरी पीढ़ी में प्रवेश का संकेत है।
परियोजना के दायरे में 17,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक कुनो-गांधी सागर परिदृश्य शामिल है, जिसमें 60–70 चीतों की आत्मनिर्भर मेटापॉपुलेशन तैयार करने का लक्ष्य है। इस दिशा में वैज्ञानिक मॉनिटरिंग, GPS कॉलर, ट्रांसेक्ट सर्वे और शिकार घनत्व आकलन जैसे आधुनिक तरीकों का उपयोग किया जा रहा है।
प्रोजेक्ट चीता सिर्फ पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूत कर रहा है। 450 से अधिक "चीता मित्रों" को प्रशिक्षण दिया गया, 380 से अधिक स्थानीय लोगों को ट्रैकर, गाइड और इको-गार्ड के रूप में रोजगार मिला, और इको-टूरिज्म से होने वाली कमाई का पाँच प्रतिशत सीधे स्थानीय समुदायों के साथ साझा किया जा रहा है। इससे यह परियोजना संरक्षण और समुदाय विकास के संतुलित मॉडल के रूप में स्थापित हुई है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग इस परियोजना का महत्वपूर्ण आधार रहा है। नामीबिया एवं दक्षिण अफ्रीका के साथ हुए समझौतों ने न केवल स्वस्थ जीन पूल उपलब्ध कराया, बल्कि विशेषज्ञता और प्रशिक्षण भी प्रदान किया। साथ ही, भारत द्वारा स्थापित इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA) ने वैश्विक संरक्षण नेतृत्व में देश की भूमिका को और मजबूत किया है।
दूसरी पीढ़ी के सफल जन्म के साथ प्रोजेक्ट चीता अब एक स्थायी भारतीय चीता जनसंख्या की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा चुका है। यह केवल प्रजाति पुनर्वास नहीं, बल्कि भारत की वैज्ञानिक दृष्टि, राजनीतिक इच्छाशक्ति और वैश्विक सहयोग का प्रमाण है—यह संदेश देते हुए कि विलुप्त प्रजातियाँ भी पुनर्जीवित हो सकती हैं।