उपराष्ट्रपति ने ‘महामना वांग्मय’ का विमोचन किया, मालवीय के राष्ट्रदृष्टि पर प्रकाश
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महामना वांग्मय विमोचन से पंडित मदन मोहन मालवीय की राष्ट्रवादी, शैक्षिक और सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास।
उपराष्ट्रपति ने मालवीय के विचारों को आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया और विकसित भारत 2047 से जोड़ा।
नई दिल्ली/ उपराष्ट्रपति श्री सी. पी. राधाकृष्णन ने नई दिल्ली के भारत मंडपम में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की संकलित रचनाओं की अंतिम श्रृंखला ‘महामना वांग्मय’ का विमोचन किया। इस अवसर पर उन्होंने महामना मालवीय को एक ऐसे राष्ट्रपुरुष के रूप में स्मरण किया, जिन्होंने भारत की सांस्कृतिक जड़ों और आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों के बीच सेतु का कार्य किया।
सभा को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि पंडित मालवीय केवल स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता ही नहीं थे, बल्कि वे एक दूरदर्शी शिक्षाविद, समाज सुधारक, पत्रकार और विधिवेत्ता भी थे। उनका दृढ़ विश्वास था कि भारत का भविष्य उसके अतीत को नकारने में नहीं, बल्कि उसे पुनर्जीवित कर आधुनिक संदर्भों में ढालने में निहित है।
उन्होंने मालवीय जी की वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकीय शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान के समन्वय का उत्कृष्ट उदाहरण है। औपनिवेशिक शासन के दौर में शिक्षा को राष्ट्रीय जागरण का सशक्त माध्यम मानते हुए मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो आज भी उनके शैक्षिक दृष्टिकोण का जीवंत प्रमाण है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि एक आत्मनिर्भर, सशक्त और प्रबुद्ध भारत का महामना मालवीय का स्वप्न आज आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया और विकसित भारत@2047 जैसे राष्ट्रीय अभियानों में प्रतिध्वनित होता है। उन्होंने यह भी कहा कि समावेशी, मूल्य-आधारित और कौशल-केंद्रित शिक्षा पर मालवीय का जोर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।
‘महामना वांग्मय’ को उन्होंने केवल ग्रंथों का संग्रह नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बौद्धिक विरासत और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मार्गदर्शक दस्तावेज बताया। अंतिम श्रृंखला में 12 खंडों में लगभग 3,500 पृष्ठों का संकलन है, जिसमें मालवीय जी के लेखन और भाषण शामिल हैं। कार्यक्रम में कई केंद्रीय मंत्री, सांसद और सांस्कृतिक संस्थानों के प्रमुख उपस्थित रहे।