शिमला IGMC मारपीट मामला: सुक्खू सरकार ने सीनियर डॉक्टर राघव नरूला को नौकरी से निकाला

Thu 25-Dec-2025,01:58 AM IST +05:30

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शिमला IGMC मारपीट मामला: सुक्खू सरकार ने सीनियर डॉक्टर राघव नरूला को नौकरी से निकाला IGMC-Doctor-Marij-Marpit
  • जांच समिति ने डॉक्टर को मरीज से हाथापाई का दोषी माना.

  • रेजिडेंट डॉक्टर नीति 2025 के तहत सेवा समाप्त.

  • मरीज के परिजनों ने दर्ज कराई FIR.

Himachal Pradesh / Shimla :

Shimla / हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से सामने आए इस मामले ने सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर–मरीज संबंधों और कार्यसंस्कृति पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (IGMC) के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. राघव नरूला को सुक्खू सरकार ने मरीज के साथ मारपीट के आरोपों के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया है। यह कार्रवाई अनुशासनात्मक जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर की गई है, जिसमें डॉक्टर को दोषी माना गया।

स्वास्थ्य विभाग के निदेशालय चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान की ओर से इस संबंध में आधिकारिक आदेश जारी किए गए हैं। आदेश में स्पष्ट किया गया है कि IGMC की अनुशासनात्मक जांच समिति से सरकार को प्रारंभिक जांच रिपोर्ट प्राप्त हुई थी। इस रिपोर्ट में सामने आया कि पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर डॉ. राघव नरूला और मरीज अरुण (36 वर्ष) के बीच अस्पताल परिसर में हाथापाई हुई थी।

इस घटना के बाद मामले की गंभीरता को देखते हुए अनुशासनात्मक समिति ने पहले आरोपी डॉक्टर को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश की थी। वहीं, मरीज के परिजनों ने भी डॉक्टर के खिलाफ स्थानीय थाने में एफआईआर दर्ज कराई। मामले से जुड़ा एक वीडियो क्लिप भी सामने आया, जिसे जांच का अहम आधार बनाया गया। वीडियो और प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने पहले डॉ. राघव नरूला को सस्पेंड कर दिया था।

सरकार ने इसके बाद 72 घंटों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देने के निर्देशों के साथ एक जांच समिति गठित की। 24 दिसंबर को IGMC के प्रिंसिपल ने यह रिपोर्ट सरकार को सौंपी। रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया कि घटना के लिए दोनों पक्ष—मरीज और सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर—जिम्मेदार थे। हालांकि, एक सरकारी डॉक्टर होने के नाते आचरण और अनुशासन के उच्च मानकों का पालन न करने को गंभीर उल्लंघन माना गया।

सरकार ने अपने टर्मिनेशन ऑर्डर में कहा कि यह मामला रेजिडेंट डॉक्टर नीति, 2025 के स्पष्ट उल्लंघन के अंतर्गत आता है। नीति की धारा-9 के प्रावधानों के अनुसार, अस्पताल परिसर में इस तरह का व्यवहार अस्वीकार्य है। इसी आधार पर डॉ. राघव नरूला की सेवाएं तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दी गई हैं।

इस फैसले के बाद प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों के बीच मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। जहां एक ओर मरीजों और आम लोगों का मानना है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों के साथ किसी भी तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिए, वहीं कुछ डॉक्टर संगठनों का कहना है कि अस्पतालों में बढ़ते तनाव, काम के अत्यधिक दबाव और सुरक्षा की कमी जैसे मुद्दों पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

यह मामला साफ तौर पर संकेत देता है कि सरकार अब स्वास्थ्य संस्थानों में अनुशासन और जवाबदेही को लेकर सख्त रुख अपनाने के मूड में है। साथ ही, यह घटना डॉक्टर–मरीज संबंधों में विश्वास, संवाद और संवेदनशीलता की अहमियत को भी रेखांकित करती है। भविष्य में ऐसे मामलों से बचने के लिए नीतिगत सुधार और अस्पतालों में बेहतर कार्य वातावरण की जरूरत पर भी बहस तेज हो गई है।