लाल गलियारे से मुक्ति: 2014–2025 में नक्सलवाद के खिलाफ भारत की निर्णायक जीत

Mon 15-Dec-2025,02:57 AM IST +05:30

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लाल गलियारे से मुक्ति: 2014–2025 में नक्सलवाद के खिलाफ भारत की निर्णायक जीत
  • 2014 से 2025 के बीच नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 126 से घटकर 11 रह गई, जो आंतरिक सुरक्षा में ऐतिहासिक बदलाव दर्शाती है।

  • निर्णायक सुरक्षा अभियानों, बुनियादी ढांचे और आत्मसमर्पण नीति ने नक्सलवाद की सैन्य और वैचारिक ताकत को कमजोर किया।

  • सड़क, मोबाइल नेटवर्क, बैंकिंग और कौशल विकास ने नक्सल प्रभावित इलाकों में राज्य की स्थायी उपस्थिति सुनिश्चित की।

Delhi / Delhi :

दिल्ली/ भारत का आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य वर्ष 2014 से पहले तक वामपंथी उग्रवाद, जिसे सामान्यतः नक्सलवाद कहा जाता है, के कारण गंभीर चुनौती झेल रहा था। “लाल गलियारा” देश के मध्य और पूर्वी हिस्सों में राज्य की प्रशासनिक, सुरक्षा और विकासात्मक उपस्थिति को लगातार चुनौती दे रहा था। छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बड़े हिस्से दशकों तक नक्सली हिंसा, जबरन वसूली और वैकल्पिक शासन संरचना के प्रभाव में रहे।

🔹 नीतिगत बदलाव की शुरुआत

2014 के बाद केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को केवल कानून-व्यवस्था की समस्या मानने के बजाय राष्ट्रीय सुरक्षा, विकास और सामाजिक न्याय से जुड़ा मुद्दा माना। इसी सोच के तहत एक बहुआयामी रणनीति अपनाई गई, जिसका मूल मंत्र रहा-
संवाद, सुरक्षा और समावेशी विकास।

इस रणनीति ने पूर्व की प्रतिक्रियात्मक नीति की जगह प्रो-एक्टिव और परिणामोन्मुख दृष्टिकोण को स्थापित किया।

🔹 लाल गलियारे का संकुचन

2014 में जहां देश के 126 जिले नक्सल प्रभावित माने जाते थे, वहीं 2025 तक यह संख्या घटकर केवल 11 जिलों तक सिमट गई। सबसे अधिक प्रभावित जिलों की संख्या 36 से घटकर मात्र 3 रह जाना इस बात का संकेत है कि नक्सलवाद अब व्यापक आंदोलन नहीं बल्कि सीमित अवशेष बन चुका है।

यह परिवर्तन केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि ज़मीनी स्तर पर प्रशासन, पुलिस और विकास एजेंसियों की वापसी का प्रतीक भी बना।

🔹 हिंसा में ऐतिहासिक गिरावट

सरकारी आंकड़ों के अनुसार:

  • नक्सली हिंसक घटनाओं में 50% से अधिक की कमी आई

  • सुरक्षा बलों की शहादत में 70% से अधिक गिरावट दर्ज हुई

  • नागरिक मौतों में भी लगभग 70% की कमी आई

यह गिरावट दर्शाती है कि राज्य की वैध शक्ति और नागरिकों का विश्वास पुनः स्थापित हुआ है।

🔹 निर्णायक सुरक्षा अभियान

2024–25 का कालखंड नक्सल विरोधी अभियानों के लिए निर्णायक साबित हुआ। इस दौरान सैकड़ों सक्रिय नक्सली मारे गए, गिरफ्तार हुए या उन्होंने आत्मसमर्पण किया। कई शीर्ष कैडर के निष्क्रिय होने से संगठन की कमांड-चेन टूट गई।

विशेष अभियानों के माध्यम से दशकों पुराने नक्सली गढ़- जैसे अबूझमाड़, बुद्धा पहाड़ और पारसनाथ को मुक्त कराया गया। ये क्षेत्र कभी नक्सली रणनीति के केंद्र माने जाते थे।

🔹 सुरक्षा अवसंरचना का विस्तार

सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों में किलेबंद पुलिस स्टेशनों, नए सुरक्षा शिविरों और हेलीपैड्स का जाल बिछाया। इससे न केवल सुरक्षा बलों की मौजूदगी बढ़ी, बल्कि त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता भी मजबूत हुई।

इसके साथ ही, 12,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का निर्माण हुआ, जिससे दूरस्थ क्षेत्रों में सालभर संपर्क संभव हो सका।

🔹 आर्थिक और वित्तीय दबाव

नक्सलवाद की रीढ़ मानी जाने वाली वित्तीय संरचना पर भी सीधा प्रहार किया गया। जांच एजेंसियों द्वारा अवैध संपत्तियों की जब्ती, शहरी नेटवर्क पर निगरानी और फंडिंग चैनलों को बंद करने से संगठन की आर्थिक क्षमता कमजोर हुई।

🔹 मोबाइल कनेक्टिविटी और बैंकिंग पहुंच

मोबाइल टावरों, बैंक शाखाओं, एटीएम और डाकघरों की स्थापना ने उन इलाकों में राज्य की वैकल्पिक व्यवस्था समाप्त कर दी, जहां पहले नक्सली समानांतर शासन चलाते थे। डिजिटल और वित्तीय समावेशन ने ग्रामीण आबादी को मुख्यधारा से जोड़ा।

🔹 शिक्षा और कौशल विका

नक्सल प्रभावित जिलों में आईटीआई और कौशल विकास केंद्रों की स्थापना से युवाओं को रोजगार के अवसर मिले। इससे नक्सली संगठनों की भर्ती क्षमता पर सीधा असर पड़ा। बंदूक की जगह अब युवाओं के हाथ में हुनर और प्रमाणपत्र हैं।

🔹 आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति

सरकार की आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास नीति नक्सल विरोधी रणनीति का मानवीय पहलू बनी। आर्थिक सहायता, प्रशिक्षण और रोजगार गारंटी ने बड़ी संख्या में नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया।

2014 से 2025 के बीच भारत ने नक्सलवाद के विरुद्ध निर्णायक बढ़त हासिल की है। यह सफलता केवल सुरक्षा अभियानों का परिणाम नहीं, बल्कि सुरक्षा, विकास, विश्वास के संतुलित मॉडल की देन है।

हालांकि कुछ सीमित क्षेत्र अब भी चुनौती बने हुए हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि नक्सलवाद की वैचारिक, सैन्य और आर्थिक रीढ़ टूट चुकी है। भारत अब नक्सलवाद से लड़ नहीं रहा, बल्कि उसे निर्णायक रूप से समाप्त करने की दिशा में अग्रसर है।