Sridhar Vembu ने अपने गांव से जोहो कंपनी को बनाया 1.03 लाख करोड़ रुपये का साम्राज्य
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श्रीधर वैम्बू ने जोहो को गांव से शुरू किया और बूटस्ट्रैप्ड मॉडल में वैश्विक स्तर पर 50+ उत्पादों के साथ सफलता हासिल की।
जोहो के उत्पाद 180 से अधिक देशों में उपयोग हो रहे हैं और माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और व्हाट्सएप को चुनौती दे रहे हैं।
कंपनी का मूल्य 1.03 लाख करोड़ रुपये है और यह पूरी तरह नॉट लिस्टेड रहते हुए भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग में शीर्ष पर है।
Tamil Nadu/ तमिलनाडु के तंजावुर जिले के एक छोटे से गांव में जन्मे श्रीधर वैम्बू ने आईआईटी मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक किया और अमेरिका की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से पीएचडी हासिल की। 1994 में उन्होंने क्वालकॉम में सिस्टम इंजीनियर के रूप में करियर शुरू किया, लेकिन दो साल बाद उन्होंने अमेरिका छोड़कर भारत लौटने का साहसिक निर्णय लिया। हालांकि, वे दिल्ली, बेंगलुरु या हैदराबाद जैसे महानगर नहीं गए, बल्कि अपने गृहनगर तमिलनाडु के तेनकाशी में लौटे। यह असामान्य निर्णय उस समय सभी को चौंकाने वाला था, लेकिन अब यह उनके दृष्टिकोण और ग्रामीण प्रतिभाओं को सशक्त बनाने के संदेश का प्रतीक बन गया है।
1996 में, श्रीधर वैम्बू ने अपने दोस्तों और परिवार के सहयोग से एडवेंटनेट की स्थापना की, जिसका लक्ष्य वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने वाली भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी बनाना था। आगे चलकर यह कंपनी जोहो बन गई। आज जोहो के 50 से अधिक उत्पाद हैं, जो सीधे माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी दिग्गज कंपनियों को टक्कर दे रहे हैं। यहां तक कि व्हाट्सएप जैसी सेवाओं को भी जोहो के उत्पाद चुनौती दे रहे हैं। कंपनी के उत्पाद वर्तमान में 180 से अधिक देशों में उपयोग किए जा रहे हैं।
श्रीधर वैम्बू ने जोहो को हमेशा बूटस्ट्रैप्ड मॉडल के तहत संचालित किया। उन्होंने किसी भी बाहरी फंडिंग का विरोध किया और कंपनी को पूरी तरह अपनी बचत और मुनाफे से विकसित किया। इस समय वे जोहो में CEO नहीं हैं, बल्कि कंपनी के चीफ साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत हैं, जबकि शैलेश कुमार डेवी CEO हैं। 19 फरवरी 2024 को जारी बर्गंडी प्राइवेट हुरुन इंडिया 500 रिपोर्ट के अनुसार, जोहो कॉर्पोरेशन बूटस्ट्रैप्ड नॉट लिस्टेड कंपनियों की सूची में शीर्ष पर है।
वर्तमान में जोहो का मूल्य 1.03 लाख करोड़ रुपये आंका गया है, जो अदाणी समूह के बराबर माना जा रहा है। मार्केट में लिस्ट न होने के बावजूद, जोहो की यह सफलता भारतीय सॉफ्टवेयर उद्योग और ग्रामीण प्रतिभाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी हुई है।
श्रीधर वैम्बू का उदाहरण इस बात का प्रमाण है कि विश्वस्तरीय तकनीक और नवाचार के लिए महानगर जरूरी नहीं हैं। सही दृष्टिकोण, प्रतिभा और परिश्रम के साथ गांव से भी वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा की जा सकती है।