सुशासन से बदली भारतीय कृषि की तस्वीर, खेतों से भविष्य तक
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सुशासन, प्रशिक्षण और डिजिटल योजनाओं के अभिसरण से भारत में कृषि एक टिकाऊ और सम्मानजनक आजीविका के रूप में उभर रही है।
महिला किसानों और एफपीओ मॉडल ने आय विविधीकरण, बाजार पहुंच और सामुदायिक सशक्तिकरण को मजबूत किया है।
पीएम-किसान, कृषि अवसंरचना कोष और सिंचाई योजनाओं ने कृषि जोखिम घटाकर निवेश और नवाचार को बढ़ावा दिया।
नागपुर/ भारत की कृषि आज केवल परंपरा नहीं, बल्कि नवाचार, उद्यमिता और सुशासन की एक जीवंत मिसाल बनती जा रही है। देश के अलग-अलग हिस्सों से सामने आ रही जमीनी कहानियाँ बताती हैं कि जब नीतियाँ, संस्थागत समर्थन और किसानों की पहल एक-दूसरे से जुड़ती हैं, तो खेती एक सम्मानजनक और टिकाऊ आजीविका में बदल जाती है। महाराष्ट्र से बिहार और तेलंगाना से हरियाणा तक के उदाहरण इस परिवर्तनशील कृषि परिदृश्य को स्पष्ट रूप से रेखांकित करते हैं।
नासिक की भावना निकम: आधुनिक तकनीक से एकीकृत कृषि की मिसाल
महाराष्ट्र के नासिक जिले के दाभाड़ी गांव की श्रीमती भावना नीलकंठ निकम ने स्नातक होने के बावजूद नौकरी के बजाय कृषि को व्यवसाय के रूप में अपनाया। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) द्वारा दिए गए संरचित क्षमता-निर्माण प्रशिक्षण और राज्य कृषि विभाग के सहयोग से उन्होंने 2,000 वर्ग मीटर का पॉलीहाउस स्थापित किया।
ड्रिप सिंचाई, कृषि मशीनीकरण, वर्षा जल संचयन तालाब और मत्स्य पालन व मुर्गी पालन जैसी संबद्ध गतिविधियों को जोड़कर उन्होंने अपने खेत को एक आदर्श एकीकृत कृषि प्रणाली में बदल दिया। शिमला मिर्च, टमाटर, सेम और अंगूर जैसी उच्च-मूल्य फसलों की खेती से न केवल उनकी आय में वृद्धि हुई, बल्कि सूखे मौसम में भी सिंचाई सुनिश्चित हो सकी।
उनके नवाचार को पहचानते हुए महाराष्ट्र सरकार ने 2021 में ‘इननोवेटिव महिला किसान सम्मान पत्र’ सहित कई पुरस्कार प्रदान किए। आज उनका खेत आसपास के किसानों के लिए एक लाइव लर्निंग सेंटर बन चुका है, जिसे देखकर कई किसान समान तकनीकों को अपना रहे हैं।
बांका की बिनीता कुमारी: मशरूम से महिला सशक्तिकरण
सैकड़ों किलोमीटर दूर बिहार के बांका जिले में श्रीमती बिनीता कुमारी की कहानी सुशासन और कौशल विकास की ताकत को दर्शाती है। किसान परिवार से जुड़ी बिनीता ने KVK बांका से मशरूम उत्पादन और स्पॉन निर्माण का प्रशिक्षण लिया।
सिर्फ 25 मशरूम बैग से शुरुआत कर उन्होंने धीरे-धीरे कई किस्मों का उत्पादन शुरू किया और साल-भर उत्पादन मॉडल अपनाया। आज वह 2.5–3 लाख रुपये वार्षिक आय अर्जित कर रही हैं और अन्य किसानों को स्पॉन भी उपलब्ध करा रही हैं।
उनकी पहल से करीब 300 महिला किसान मशरूम की खेती को स्थायी आय स्रोत के रूप में अपना चुकी हैं। अब वह एक मशरूम स्पॉन प्रयोगशाला स्थापित करने की योजना बना रही हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार और बढ़ेगा।
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का आधार
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई हैं।
सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में योगदान: लगभग 16%
आजीविका निर्भरता: 46.1% आबादी
खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ कृषि क्षेत्र का प्रभाव प्रसंस्करण, परिवहन और निर्यात जैसे अनुप्रवाह उद्योगों पर भी पड़ता है। यही कारण है कि हाल के वर्षों में शासन सुधारों का केंद्र एक व्यापक कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण रहा है।
सरकारी पहलें: आय, सिंचाई और सुरक्षा का मजबूत ढांचा
पीएम-किसान सम्मान निधि: 21 किस्तों में 3.88 लाख करोड़ रुपये प्रत्यक्ष आय सहायता के रूप में जारी।
कृषि अवसंरचना कोष: 23 दिसंबर 2025 तक 2.87 लाख लाभार्थी, 57,000 करोड़ रुपये का निवेश।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना: सूक्ष्म-सिंचाई और जल-दक्ष फसलों को बढ़ावा।
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY): फसल विविधीकरण, कृषि मशीनीकरण, स्टार्ट-अप और मृदा स्वास्थ्य पर जोर।
ई-नाम (e-NAM): बाजार पहुंच और मूल्य पारदर्शिता में सुधार।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: 16.06 लाख किसानों को जोखिम सुरक्षा।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: संतुलित उर्वरक उपयोग और दीर्घकालिक उत्पादकता।
तेलंगाना और हरियाणा: सामुदायिक मॉडल की सफलता
तेलंगाना के संगारेड्डी जिले में NABARD समर्थित परियोजना के तहत जनजातीय किसानों ने आम-आधारित बागवानी और सहफसली खेती अपनाई।
500 एकड़ बागवानी
औसत आय में तीन से चार गुना वृद्धि
बाहरी प्रवासन में 10% की कमी
वहीं हरियाणा के रेवाड़ी जिले में धरचाना फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी ने 500 से अधिक किसानों, जिनमें 90% महिलाएं थीं, को संगठित किया। बिचौलियों को हटाकर किसानों को 200 रुपये प्रति क्विंटल अतिरिक्त आय मिली और एफपीसी ने लाभ अर्जित किया।
सुशासन से खेती में भरोसा
भारत जब सुशासन दिवस मना रहा है, तब ये कहानियाँ स्पष्ट संदेश देती हैं-
कृषि में प्रभावी शासन केवल पैदावार नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन, स्थिर आय और भविष्य की सुरक्षा का माध्यम है।
नीतियों की निरंतरता, संस्थागत सहयोग और किसानों की भागीदारी ने भारत की कृषि गाथा को नए सिरे से गढ़ना शुरू कर दिया है, खेतों से लेकर भविष्य तक।