संत गाडगे महाराज : त्याग, सेवा और सामाजिक जागरण के महान प्रतीक

Sat 20-Dec-2025,07:23 PM IST +05:30

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संत गाडगे महाराज : त्याग, सेवा और सामाजिक जागरण के महान प्रतीक Sant-Gadge-Maharaj
  • संत गाडगे महाराज: समाज सुधार और मानव सेवा के प्रतीक.

  • स्वच्छता, शिक्षा और समानता के अग्रदूत.

  • अंधविश्वास और सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष.

Uttar Pradesh / Lakhimpur :

Lakhimpur / भारतीय संत परंपरा में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं जिन्होंने आध्यात्मिकता को केवल पूजा-पाठ तक सीमित न रखकर समाज सुधार का सशक्त माध्यम बनाया। इन्हीं संतों की परंपरा में संत गाडगे महाराज का नाम अत्यंत सम्मान और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। संत गाडगे महाराज न केवल एक संत थे, बल्कि वे समाज सुधारक, स्वच्छता के अग्रदूत, शिक्षा के प्रेरक और सामाजिक समानता के निर्भीक पक्षधर भी थे। उनका पूरा जीवन सेवा, त्याग और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित रहा।

प्रारंभिक जीवन और साधारण पृष्ठभूमि
संत गाडगे महाराज का जन्म 23 फरवरी 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शेंडगांव नामक ग्राम में हुआ। उनका बचपन का नाम **डेबूजी जिंगराजी जानोरकर** था। वे एक अत्यंत साधारण और गरीब परिवार से थे। बचपन से ही उन्होंने गरीबी, सामाजिक असमानता और श्रम का वास्तविक अर्थ समझ लिया था। औपचारिक शिक्षा उन्हें बहुत अधिक नहीं मिल पाई, लेकिन जीवन की पाठशाला से उन्होंने जो सीखा, वही आगे चलकर समाज के लिए प्रेरणास्रोत बना।

बाल्यावस्था से ही डेबूजी का मन सांसारिक आकर्षणों से हटकर सेवा और वैराग्य की ओर झुकने लगा था। वे साधारण वस्त्र पहनते, न्यूनतम आवश्यकताओं में जीवन जीते और दूसरों की सहायता करने में आनंद अनुभव करते थे। यही गुण आगे चलकर उन्हें “गाडगे महाराज” के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।

संत बनने की यात्रा
डेबूजी ने गृहस्थ जीवन को त्यागकर संन्यास का मार्ग अपनाया और संत गाडगे महाराज के रूप में समाज के बीच प्रकट हुए। वे अपने हाथ में झाड़ू रखते थे और जहां भी जाते, वहां सफाई करते थे। उनके लिए स्वच्छता केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक शुद्धता का प्रतीक थी। वे कहते थे कि “गंदगी केवल सड़कों पर नहीं, बल्कि विचारों में भी होती है।”

उनका वेश अत्यंत साधारण होता था—फटे-पुराने कपड़े, सिर पर टोपी और हाथ में झाड़ू। लेकिन इसी साधारण वेश में वे समाज को गहरे संदेश दे जाते थे। वे कभी किसी मंदिर, मठ या आश्रम के बंधन में नहीं रहे, बल्कि पूरा समाज ही उनका आश्रम था।

सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष
संत गाडगे महाराज ने अपने समय की अनेक सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अंधविश्वास, छुआछूत, जातिगत भेदभाव और नशाखोरी का खुलकर विरोध किया। वे मानते थे कि जब तक समाज इन बुराइयों से मुक्त नहीं होगा, तब तक सच्चा विकास संभव नहीं है।

वे अपने कीर्तन और प्रवचनों के माध्यम से आम लोगों तक सरल भाषा में गहरी बातें पहुंचाते थे। उनके कीर्तन मनोरंजन नहीं, बल्कि सामाजिक शिक्षा का माध्यम थे। वे धर्म के नाम पर फैलाए जाने वाले पाखंड के सख्त विरोधी थे और कहते थे कि “सच्चा धर्म मानव सेवा है 

शिक्षा और स्वच्छता के अग्रदूत
संत गाडगे महाराज शिक्षा को समाज परिवर्तन का सबसे बड़ा हथियार मानते थे। वे भिक्षा में मिले धन का उपयोग अपने लिए नहीं, बल्कि स्कूल, छात्रावास, धर्मशालाएं और कुष्ठरोगियों के आश्रम बनाने में करते थे। उन्होंने अमरावती, वर्धा, नागपुर सहित अनेक स्थानों पर शिक्षा और सेवा से जुड़े संस्थानों के निर्माण में योगदान दिया।

स्वच्छता को लेकर उनका दृष्टिकोण अपने समय से बहुत आगे था। वे सार्वजनिक स्थानों, गांवों और मेलों में स्वयं झाड़ू लगाते थे और लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करते थे। आज जब “स्वच्छ भारत अभियान” की बात होती है, तो संत गाडगे महाराज को उसका वैचारिक अग्रदूत कहा जाता है।

मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर भक्ति
संत गाडगे महाराज का स्पष्ट मत था कि भूखे को भोजन कराना, रोगी की सेवा करना और अशिक्षित को शिक्षा देना—यही ईश्वर की सच्ची पूजा है। वे मंदिरों में चढ़ावे और दिखावे के खिलाफ थे। उनका मानना था कि यदि समाज में गरीबी, अशिक्षा और बीमारी है, तो केवल पूजा-पाठ से कुछ नहीं बदलेगा।

उन्होंने समाज को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दी और श्रम को सम्मान दिलाया। उनके विचार आज भी सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों और युवाओं के लिए मार्गदर्शक हैं।

विचारधारा और विरासत
संत गाडगे महाराज किसी एक धर्म, जाति या वर्ग के संत नहीं थे। वे पूरे मानव समाज के संत थे। उनका जीवन बताता है कि बिना बड़े मंच, बिना सत्ता और बिना संसाधनों के भी समाज में बड़ा परिवर्तन लाया जा सकता है। 20 दिसंबर 1956 को उनका देहावसान हुआ, लेकिन उनके विचार आज भी जीवित हैं। महाराष्ट्र सहित पूरे देश में उनके नाम से अनेक शिक्षण संस्थान, सामाजिक संगठन और शोध केंद्र संचालित हो रहे हैं।

संत गाडगे महाराज का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्ची महानता सादगी, सेवा और संवेदना में निहित होती है। उन्होंने अपने आचरण से समाज को जो संदेश दिया, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। स्वच्छता, शिक्षा, समानता और मानव सेवा—ये चार स्तंभ संत गाडगे महाराज की सामाजिक सोच के आधार थे। आज के समय में जब समाज अनेक चुनौतियों से जूझ रहा है, तब संत गाडगे महाराज के विचार हमें सही दिशा दिखाने की क्षमता रखते हैं।